रवींद्रनाथ टैगोर नोबेल पुरस्कार हासिल करने वाले पहले भारतीय थे. लेकिन उनके बाद कई और भारतीयों ने नोबेल पुरस्कार हासिल करके देश का नाम रोशन किया. भारत को साइंस, साहित्य, और शांति के साथ-साथ इकोनॉमिक्स के क्षेत्र में भी नोबेल मिला है. भारत को दो बार अर्थशास्त्र में नोबेल मिला है.
इकोनॉमिक्स में पहला नोबेल साल 1998 में भारत के मशहूर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को मिला और इसके लंबे अरसे बाद, साल 2019 में दूसरा नोबेल अभिजीत बनर्जी को मिला. इन दोनों ही नोबेल पुरस्कार विजेताओं को ताल्लुक पश्चिम बंगाल से है.
टैगोर ने रखा था अमर्त्य का नाम
अमर्त्य सेन का जन्म और पालन-पोषण विश्व भारती कैंपस में हुआ था. मशहूर संस्कृत स्कॉलर क्षिति सेन उनकी नानी थी और वह टैगोर के करीब थीं. उनके कहने पर टैगोर ने अमर्त्य का नाम रखा. प्रारंभिक शिक्षा के बाद सेन ने प्रेजिडेंसी कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएन की और इसके बाद हावर्ड यूनिवर्सिटी चले गए. बहुत कम लोग जानते हैं कि 18 साल की उम्र में सेन को ओरल कैंसर हुआ था. इस बीमारी से वह बहुत मुश्किल से उभरे. उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री पूरी की.
उन्होंने भारत के कई मशहूर कॉलेज और यूनिवर्सिटी में अपनी सर्विस दी. सेन को यूनाइटेड नेशन्स के Human Development Index (HDI) पर काम करने के लिए भी जाना जाता है. सेन ने इसे पाकिस्तानी इकोनॉमिस्ट महबूब उल-हक के साथ मिलकर बनाया था. सेन ने गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में काम किया है. उन्होंने तर्क दिया कि आर्थिक विकास हासिल करने के लिए, सामाजिक सुधार - जैसे शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार - आर्थिक सुधार से पहले होने चाहिए. सेन ने गरीबी मापने के तरीके तैयार किए जिससे गरीबों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए उपयोगी जानकारी मिली.
उन्हें साल 1998 में उनके काम के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया और साल 1999 में उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया.
21 साल बाद अर्थशास्त्र में मिला दूसरा नोबेल
भारतीय मूल के एमआईटी प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी को उनके काम के लिए, पीएचडी स्कॉलर, एस्थर डुफ्लो और हार्वर्ड प्रोफेसर माइकल क्रेमर के साथ अर्थशास्त्र में 2019 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. बनर्जी अग्रणी विकास अर्थशास्त्रियों में से एक हैं. बनर्जी ने नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जाने से पहले 1981 में प्रेजिडेंसी कॉलेज से ही विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली. उन्होंने 1988 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली. बनर्जी विकास के आर्थिक विश्लेषण में अनुसंधान ब्यूरो के पूर्व अध्यक्ष, एनबीईआर के अनुसंधान सहयोगी और सीईपीआर अनुसंधान फेलो, कील इंस्टीट्यूट के अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान फेलो, अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज एंड इकोनोमेट्रिक सोसाइटी के फेलो और और गुगेनहाइम फेलो और अल्फ्रेड पी स्लोअन फेलो और इंफोसिस पुरस्कार के विजेता रहे हैं.
बनर्जी बड़ी संख्या में लेखों और चार पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें 'पुअर इकोनॉमिक्स' भी शामिल है, जिसने 2011 में गोल्डमैन सैक्स बिजनेस बुक ऑफ द ईयर पुरस्कार जीता था. उन्होंने 2015 के बाद के विकास एजेंडे पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के उच्च-स्तरीय पैनल में भी काम किया. बनर्जी के 'गरीबी उन्मूलन के प्रयोगात्मक दृष्टिकोण' ने भारत में पॉलिसी मेकर्स का सहयोग किया है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बनर्जी के मॉडल का इस्तेमाल तमिलनाडु, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे विभिन्न राज्यों में किया गया है.