नेचर जर्नल में पब्लिश हुई एक स्टडी के मुताबिक, भारत में हर साल लगभग 58 लाख टन प्लास्टिक वेस्ट जलाया जाता है है और इसके अलावा, 35 लाख टन प्लास्टिक पर्यावरण (धरती, हवा और पानी) में इकट्ठा होता है. दुनिया में 93 लाख टन प्लास्टिक पॉल्यूशन सिर्फ भारत से होता है. इसका सबसे बड़ा कारण है प्लास्टिक वेस्ट का सही से निपटान न होना. प्लास्टिक वेस्ट को डिस्पोज करना नामुमकिन है इसलिए जरूरी है कि इसे रिसायकल या अपसायकल किया जाए यानी कि प्लास्टिक वेस्ट को प्रोसेस करके कोई नया रूप दे दिया जाए जिसकी सोसायटी में जरूरत और मांग है.
प्लास्टिक को रिसायकल करके हम अलग-अलग सेक्टर की जरूरत पूरी कर सकते हैं और इससे हमारे दूसरे जैविक संसाधनों पर भार कम होगा. पिछले कुछ सालों में भारत में प्लास्टिक वेस्ट पर काम करने वाले लोगों की संख्या काफी ज्यादा बढ़ी है. आज हम आपको ऐसे ही दो युवाओं के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने प्लास्टिक वेस्ट की समस्या को हल करने का अनोखा आइडिया निकाला और अब यह एक सफल बिजनेस बन चुका है.
शुरू किया अनोखा स्टार्टअप
केरल के कोचीन में 29 वर्षीय एल्विन जॉर्ज और 29 वर्षीय सिद्धार्थ एके ने प्लास्टिक पॉल्यूशन पर काम करते हुए एक क्लीन-टेक स्टार्टअप, कार्बन एंड व्हेल (Carbon and Whale) लॉन्च किया. वैसे तो एल्विन इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं और सिद्धार्थ एक बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन ग्रेजुएट. लेकिन पर्यावरण के प्रति उनका समर्पण उन दोनों को जोड़ता है. अपने मिशन में उन्हें सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ़ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPET) के प्रोफेसर सूरज वर्मा का साथ मिला. यहां से उन्होंने प्लास्टिक वेस्ट के समाधान खोजना शुरू किया.
ओपन डाइजेस्ट से बात करते हुए उन्होंने बताया कि प्लास्टिक के कचरे की रिसायक्लिंग हो रही है, लेकिन यह सस्टेनेबल समाधान नहीं है. उनका स्टार्टअप, सिंगल यूज प्लास्टिक को मॉड्यूलर फर्नीचर में बदल रहा है. स्टार्टअप का फोकस इस बात पर है कि प्लास्टिक वेस्ट के लाइफ स्पैन को और 15 से 20 साल बढ़ाएं और फिर इसे किसी और तरह से काम में लाया जाए. इस स्टार्टअप ने अब तक दो टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरे को स्टूल और बेंच से लेकर स्टाइलिश, सस्टेनेबल फर्नीचर में बदला है.
बनाया पांच करोड़ का बिजनेस
एल्विन और सिद्धार्थ जो मॉड्यूलर फर्नीचर बना रहे हैं वह फंक्शनल और इको-फ्रेंडली है. वर्तमान में वह कई कॉरपोरेट्स के साथ साझेदारी में काम कर रहे हैं और उन्होंने पार्क, मॉल जैसी पब्लिक जगहों के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक वेस्ट को फर्नीचर में बदला है. उन्होंने एर्नाकुलम के सरकारी लॉ कॉलेज के साथ एक प्रोजेक्ट किया और 60 किलोग्राम प्लास्टिक वेस्ट से कॉलेज परिसर में बैठने के लिए सुंदर बेंच बनाई.
इसी तरह उन्होंने ब्रिजवे ग्रुप और सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ इंजनीयरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPET) के साथ मिलकर 400 किलोग्राम प्लास्टिक के कचरे को रिसायकल करके बेंचों में बदला है. और इन प्रोजेक्ट्स से उनकी कमाई भी हो रही है. बताया जा रहा है कि उनके बिजनेस का रेवेन्यू आज पांच करोड़ सालाना पहुंच रहा है.