

जगुआर (Jaguar) ने अपना नया लोगो लॉन्च किया है. हालांकि, इस ब्रांडिंग स्ट्रेटेजी पर लोगों के अलग-अलग रिएक्शंस आ रहे हैं. नए लोगो को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब यूजर्स ने ब्रांड के प्रोमोशनल्स कंटेंट में गाड़ियों के न होने की बात कही. एक यूजर ने व्यंग्य करते हुए पूछा, "इस विज्ञापन में गाड़ियां कहां हैं? क्या यह फैशन का प्रमोशन है?" इसपर जगुआर ने रिप्लाई किया, “हो सकता है.” हालांकि, इसके बाद भी यूजर्स ने ट्रोल करना नहीं छोड़ा.
जाने-माने उद्योगपति और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क (Tesla CEO Elon Musk) ने भी चुटकी लेते हुए पूछा, "क्या आप गाड़ियां बेचते हैं?" इस पर जगुआर ने मस्क को दिसंबर में मियामी में अपने शोकेस में शामिल होने का न्योता दे डाला.
हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब जब जगुआर ने खुद को नए सिरे से परिभाषित किया हो. वह इससे पहले भी ऐसा कर चुकी है.
Copy nothing. #Jaguar pic.twitter.com/BfVhc3l09B
— Jaguar (@Jaguar) November 19, 2024
साइडकार से लग्जरी गाड़ियों तक का सफर
जगुआर की शुरुआत एक कार मैन्युफैक्चरर के रूप में नहीं हुई थी और न ही इसकी शुरुआत "जगुआर" नाम से हुई थी. 1922 में, मोटरसाइकिल के प्रति उत्साही दो युवाओं, विलियम लायंस और विलियम वॉल्म्सले ने स्वालो साइडकार कंपनी की स्थापना की. जैसा कि नाम से नजर आ रहा है, कंपनी शुरू में मोटरसाइकिल के साइडकार बनाती थी. उनके डिजाइन जल्दी ही पॉपुलर हो गए, और 1930 तक कंपनी ने कारों के कोचबिल्डिंग में कदम रखा.
इसके बाद 1934 में कंपनी ने अपना नाम बदलकर स्वालो कोचबिल्डिंग कंपनी कर दिया. यह वह समय था जब कंपनी ने खुद को पूरी तरह एक कार मैन्युफैक्चरर के रूप में स्थापित करने का फैसला किया. 1936 में, एसएस कार्स के नाम से एक नई पहचान के साथ, कंपनी ने जगुआर मॉडल लॉन्च किया. यह कार इतनी शानदार थी कि यह कंपनी की पहचान बन गई.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, जगुआर सहित ज्यादातर कार कंपनियों का प्रोडक्शन बंद हो गया. लेकिन 1945 में जब कंपनी ने फिर से प्रोडक्शन शुरू किया, तो इसे जगुआर कार्स लिमिटेड नाम दिया गया.
युद्ध के बाद का समय
युद्ध के बाद, जगुआर ने स्पोर्ट्स कारों पर फोकस किया. यह सिर्फ कोई स्पोर्ट्स कार नहीं, बल्कि ऐसी कारें थीं जो अपने समय से आगे थीं. 1948 में, कंपनी ने XK120 लॉन्च की, जो 133 मील प्रति घंटे की स्पीड के साथ दुनिया की सबसे तेज प्रोडक्शन कार थी.
रेसिंग जगुआर की पहचान का एक अभिन्न हिस्सा बन गया. 1951 में, XK120 ने 24 आवर्स ऑफ ले मैंस में अपनी पहली जीत दर्ज की. अगले दशक में, जगुआर ने पांच बार यह प्रतिष्ठित खिताब जीता. यह जीतें सी-टाइप और डी-टाइप जैसे एडवांस मॉडलों की बदौलत संभव हुईं.
1957 में, जगुआर ने Le Mans में इतिहास रचते हुए टॉप छह में से पांच स्थान हासिल किए. इन जीतों का प्रभाव जगुआर की रोड कारों पर भी पड़ा, खासकर ई-टाइप पर. 1961 में लॉन्च हुई यह कार अपनी सुंदरता और तकनीकी के कारण पॉपुलर हो गई.
ब्रिटिश मोटर होल्डिंग्स का हिस्सा बनी कंपनी
1960 के दशक में जगुआर में बड़े बदलाव हुए. 1966 में कंपनी ब्रिटिश मोटर होल्डिंग्स का हिस्सा बनी, जो 1968 में ब्रिटिश लेलैंड बन गया. इस दौरान, कंपनी ने Mark X और XJ जैसे लग्जरी सेडान पर फोकस किया.
1980 के दशक में ब्रिटिश लेलैंड में पैसों की समस्या हुई और 1984 में जगुआर फिर से स्वतंत्र हो गई. इसके बाद कंपनी ने रेसिंग में वापसी की और 1988 व 1990 में ले मैंस में दो और जीत हासिल की. इन जीतों के बाद ही XJ220 सुपरकार बनीं.
1990 में फोर्ड ने जगुआर को अपने अंडर ले लिया था. 2008 में, टाटा मोटर्स ने जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण किया और उन्हें एक साथ लाकर जगुआर लैंड रोवर बनाया.
साइडकार मैन्युफैक्चरर से लग्जरी आइकन और अब इलेक्ट्रिक व्हीकल तक, जगुआर सब कुछ ट्राई कर चुकी है. आलोचनाओं के बावजूद, जगुआर का इतिहास इस बात का सबूत है कि परिवर्तन इसकी पहचान का हिस्सा है.