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बादशाह मसाले पर डाबर का मालिकाना हक, जानिए कैसे गरम मसाले से शुरू होकर खड़ा हुआ करोड़ों का साम्राज्य

डाबर इंडिया लिमिटेड जल्द ही बादशाह मसाला लिमिटेड में मेजॉरिटी स्टेक खरीदने वाली है, इसके लिए कंपनी ने एग्रीमेंट भी साइन कर लिया है. डाबर बादशाह मसाला का 51% स्टॉक अभी ले लिया है और बाकी का 49% बाद में लेगी.

बादशाह मसाले बादशाह मसाले
हाइलाइट्स
  • डाबर ने बादशाह मसालों पर किया अधिग्रहण

  • 1958 में हुई ब्रांड की स्थापना

  • सिगरेट के डिब्बे में बेचते थे मसाले

डाबर इंडिया लिमिटेड ने हाल ही में बादशाह मसाला लिमिटेड में मेजॉरिटी स्टेक हासिल करने के लिए एग्रीमेंट साइन किया है. ये डील 587.52 करोड़ रुपए की है. एक्सचेंज फाइलिंग में कहा गया कि डाबर इंडिया, बादशाह में 51% हिस्सेदारी पर अधिग्रहण कर रही है, और बाकी के 49% को पांच साल की अवधि में खरीदने का प्लान कर रही है. डाबर ने ये भी कहा कि बादशाह की एंटरप्राइज वैल्यू 1152 करोड़ रुपए आंकी गई है.

डाबर ने बादशाह मसालों पर किया अधिग्रहण
दरअसल डाबर ने तीन साल में अपने फूड बिजनेस को 500 करोड़ रुपए बढ़ाने का प्लान बनाया, ये अधिग्रहण भी इसी प्लान के अनुरूप है.  इस टेकओवर से डाबर की भारत के 25,000 करोड़ रुपए से ज्यादा के ब्रांडेड मसालों के बाजार में एंट्री होगी. वहीं बादशाह मसाला भी काफी पुराना ब्रांड है, इस मार्केट में आने की कहानी भी काफी दिलचस्प है, तो चलिए आज आपको वो कहानी बताते हैं.

1958 में हुई ब्रांड की स्थापना
इस ब्रांड की स्थापना 1958 में हुई थी. अपनी स्थापना के बाद इस ब्रांड ने करोड़ों लोगों का दिल जीता है. लेकिन फिर भी कई लोग इसके पीछे की कहानी को नहीं जानते हैं. 1958 में जवाहरलाल जमनादास झावेरी ने मुंबई में सिर्फ गरम मसाला और चाय मसाला के साथ कारोबार शुरू किया था.

सिगरेट के डिब्बे में बेचते थे मसाले
जमनादास झावेरी सिगरेट बेचने के लिए इस्तेमाल होने वाले टिन के डिब्बे इकट्ठा करते थे. फिर उन्हें साफ करते, उन पर लगे लेबल छुटाते, और उनमें मसाला पैक कर बेचते थे. अपनी साइकिल पर सवार होकर, वह उन्हें आस-पास के इलाकों में बेच देते थे. धीरे-धीरे वो मसाला फेमस हो गया, क्योंकि उनके मसालों में क्वालिटी थी.

जमनादास ने इसके बाद मुंबई के घाटकोपर में इस मसाले की एक और यूनिट खोली. जो देखते ही देखते गुजरात के उम्बार्गों में 6 हजार वर्ग फुट के बड़े कारखाने में अपग्रेड हो गया. धीरे-धीरे कंपनी ने पाव भाजी मसाला, चाट मसाला और चना मसाला मार्केट में पेश किया और अपनी ऑफरिंग का विस्तार किया.

पिता के बाद बेटे ने संभाला कारोबार
1996 तक ये बिजनेस जमनादास ने खूब अच्छे से चलाया, लेकिन उसके बाद उनका निधन हो गया, जिसके बाद उनके बेटे हेमंत ने कंपनी की बागडोर संभाली. हेमंत ने कॉलेज के ठीक बाद 1994 में  बिजनेस में एंट्री ली थी. उन्होंने अपने पिता से कई सारे बिजनेस फंडे सीखे थे. वो जब 23 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया. कंपनी हाथ में आते ही हेमंत का सिर्फ एक लक्ष्य था, मसालों की पहुंच को बढ़ाना. 

धीरे-धीरे उन्होंने पूरे देश में अपना विस्तार किया, और आज बादशाह मसाला 20 से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है. ये ब्रांड 450 वितरकों के वितरक नेटवर्क के साथ सुपरमार्केट, स्थानीय किराना स्टोरों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी खास पहुंच रखता है.

लॉकडाउन के समय बिक्री में आई गिरावट
कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन के दौरान कई लोग घरों पर खाना बनाने लगे थे. इस दौरान कई सारे रेस्तरां बंद भी हो गए. क्लाउड किचन भी बंद होने लगे. वो एक ऐसा समय था, जब बादशाह मसाला के मालिक ने भी महसूस किया कि ये उनके व्यापार करने के पारंपरिक तरीके को छोड़ने और ऑनलाइन बिक्री शुरू करने का समय है. धीरे-धीरे इसे ऑनलाइन भी खरीदा जाने लगा. 

एक छोटे व्यवसाय के रूप में शुरू किया गया मसाला आज एक बड़ी कंपनी बन गया है.