scorecardresearch

Exclusive: लाखों की कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ सलोनी गंभीर ने शुरू किया पैठणी साड़ियों का बिजनेस, कुछ ऐसे किया 60 हजार से 2.5 करोड़ सालाना टर्नओवर तक का सफर तय

Very Much Indian Business: 10 साल की कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ सलोनी गंभीर ने पैठणी साड़ियों का बिजनेस शुरू किया था. आज वैरी मच इंडियन का सालाना टर्नओवर 2.5 करोड़ रुपये है.

सलोनी गंभीर ने शुरू किया पैठणी साड़ियों का बिजनेस सलोनी गंभीर ने शुरू किया पैठणी साड़ियों का बिजनेस
हाइलाइट्स
  • 25 साड़ियों के साथ शुरू किया बिजनेस 

  • कंपनी का टर्नओवर है करोड़ों रुपये 

आपको याद है कि कब आपने पहली बार साड़ी पहनना सीखा था? या फिर कैसे आप अपनी मां को इसे लपेटते हुए देखते हुए बड़े हुए हैं. बिजनेस मीटिंग्स से लेकर शादियों में, पार्टी नाइट्स में, राजनीतिक भाषणों से लेकर रेड कार्पेट तक, कॉलेज की विदाई और कॉर्पोरेट बोर्डरूम से लेकर किचन तक, साड़ियां एक कम्फर्ट जोन बन चुकी हैं. हालांकि, इस फैशन स्टेटमेंट को उभरने में और भी मदद कर रहे हैं सलोनी गंभीर जैसे लोग. 4 साल पहले 25 साड़ियों के साथ शुरू हुआ ‘वैरी मच इंडियन’ का सफर आज सालाना 2.5 टर्नओवर तक पहुंच चुका है. पैठणी साड़ी के लिए जाना जाने वाला वैरी मच इंडियन बिजनेस महाराष्ट्र के येओला से चलता है.  

सलोनी महाराष्ट्र के येओला के एक कपड़ा व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखती हैं. भारत में येओला को पैठणी का गढ़ कहा जाता है. 14 साल की उम्र में सलोनी अपने पिता के कपड़े की दुकान पर बैठकर ग्राहकों का मैनेजमेंट करती थी और अकाउंट संभालती थी. बीटेक और एमबीए की पढ़ाई के बाद उन्होंने 10 साल तक कॉर्पोरेट में काम किया. बस यहीं से सलोनी के अंदर ये बिजनेस का कीड़ा हमेशा रहा. शुरुआत से ही वह चाहती थीं कि ऐसा कुछ बिजनेस शुरू करें. GNT डिजिटल से बात करते हुए सलोनी कहती हैं, “मैं बचपन से ही चाहती थी कि ऐसा कुछ शुरू करूं. फिर मैंने इंजीनियरिंग और एमबीए की पढ़ाई की, मेरी शादी हुई और फिर बच्चा. उस वक्त मेरी एक फिक्स्ड सैलरी थी और मैं अपने कम्फर्ट जोन में थी तो जो चल रहा था ठीक था. लेकिन हम सबके अंदर ये होता है न कि हम वो पहला स्टेप नहीं ले पाते हैं. तो 4 साल पहले मैं इस कम्फर्ट जोन से बाहर निकली और मैंने ये साड़ियों का बिजनेस शुरू किया.”

पीएफ का पैसा निकाला और 25 साड़ियों के साथ शुरू किया बिजनेस 

4 साल पहले सलोनी ने पैठणी साड़ी का बिजनेस शुरू किया. इस सफर की शुरुआत को याद करते हुए सलोनी कहती हैं, “4 साल पहले मैंने अपना पीएफ का पैसा निकाला और 25 साड़ियों के साथ ये बिजनेस शुरू किया. उस वक्त इतना ई-कॉमर्स नहीं था जितना अब है. तो मैंने एक छोटे से ग्रुप के साथ शुरू किया. बीएनआई बिजनेस ग्रुप में मैंने 35 हजार का चेक दिया. वहां मार्केटिंग ग्रुप में छोटे-छोटे रेफरल ग्रुप से ऑर्डर मिलने लगे. लोगों को साड़ियां देने के लिए मैं खुद जाया करती थी. मेरे पास छोटी कार हुआ करती थी तो उसमें मैं साड़ियां रखकर लोगों के घर चली जाती थी. धीरे-धीरे मैं इसमें सेट होने लगी. लेकिन इस दौरान हमने कभी क्वालिटी के साथ समझौता नहीं किया.”

शार्क टैंक में सलोनी
शार्क टैंक में सलोनी

छोटे-छोटे बुनकरों के साथ किया काम

वैरी मच इंडियन पूरे भारत में सीधे बुनकरों से साड़ियां लाकर अपने प्लेटफॉर्म पर बेचती है. इसमें प्योर सिल्क, कॉटन, कॉटन सिल्क, लिनेन, पैठानी से लेकर बनारसी, कोटा, कलमकारी, माहेश्वरी और कई तरह की लोकप्रिय साड़ियां शामिल हैं. सलोनी बताती हैं कि उन्हें अपनी क्वालिटी पर पूरा भरोसा है. वे कहती हैं, “छोटे-छोटे बुनकरों के साथ हमने खूब काम किया था. इसमें फायदा उनका भी और हमारा भी है. क्योंकि उन्हें रॉ मटेरियल में पैसा निवेश नहीं करना पड़ता है. साथ ही हमें पता है कि हम जो उन्हें दे रहे हैं वो टॉप क्वालिटी है. ऐसे ही हमने बुनकरों की एक पूरी कम्युनिटी तैयार की. हमने इस दौरान 500 के करीब बुनकरों को तैयार किया, जिसमें से 400 येओला में हैं. बाकि देश के 7 से 8 राज्यों में हमारे बुनकर हैं.” 

सलोनी कहती हैं कि जो महिला पहले हमारे घर में झाड़ू-पोछा करती थीं वे आज हमारी साड़ी की पैकिंग करती हैं. साथ ही जो हमारे यहां पर प्रेस करने के लिए आते थे वे आज केवल हमारी साड़ियों पर ही प्रेस करते हैं. आज केवल इसी से उन्हें 25 हजार प्रति महीना मिल जाता है. हमारी एक छोटी सी 8 लोगों की टीम है. 

शार्क टैंक तक पहुंचना नहीं था आसान 

सलोनी गंभीर अपने पति के साथ वेरी मच इंडियन के साथ शार्क टैंक इंडिया सीजन 2 एपिसोड 2 में दिखाई दी थी और शार्क से ₹16.67 करोड़ प्राइस पर 3% इक्विटी के लिए ₹50 लाख की मांग की थी. शार्क सलोनी के आत्मविश्वास और साड़ियों के बारे में उनके ज्ञान को देखकर काफी खुश हुए थे. साड़ी बुनने की प्रक्रिया देख अनुपम मित्तल भी भावुक हो गए थे. इस शार्क टैंक वाले अनुभव के बारे में सलोनी बताती  हैं, “शार्क टैंक में जाने के बाद से लोगों का हमारे लिए नजरिया ही बदल गया. लोग हमने वहां से अब जानने लगे हैं. और शार्क टैंक के वजह से अब लोग हमपर विश्वास भी करने लगे हैं. हालांकि, शार्क टैंक में जाना आसान नहीं है. उसमें 6 राउंड होते हैं. उसके लिए आपको कई सारे फॉर्म भरने होते हैं और कई डॉक्यूमेंट देने होते हैं. इसके लिए 35 लाख एप्लीकेशन आते हैं और 250 के करीब लोग सिलेक्ट होते हैं. जिसमें ऑडिशन भी होता है. तो इस जर्नी में आप खुद के बिजनेस को समझ लेते हैं तो ये काफी सीखने वाला होता है.    

आगे सलोनी कहती हैं, “शार्क टैंक में जाने के बाद हमारी बुनकरों की कम्युनिटी और भी बढ़ गई हैं. अब ये संख्या 800 से भी ज्यादा की हो गई है. लोग अब बढ़ चढ़कर हमारी साड़ियां खरीद रहे हैं. हमारे पास पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, चेन्नई, कर्नाटक समेत 7 राज्यों से साड़ियां आती हैं. इतना ही नहीं बल्कि हम बुनकरों ट्रेनिंग भी करवाते हैं. ताकि जो ज्यादा उम्र के बुनकर हैं हम उनकी टेक्निक को टेक्नोलॉजी के साथ मर्ज करके इसे एडवांस कर सकें. हम इस तरह का इनोवेशन भी कर रहे हैं.”        

कंपनी का टर्नओवर है करोड़ों रुपये 

इस ब्रांड की सबसे कम कीमत वाली साड़ी की कीमत 1,800 रुपये है और सबसे ज्यादा साड़ी की कीमत 78,000 रुपये है. सलोनी कहती हैं, “मैंने सालाना 60 हजार टर्नओवर के साथ ये सफर शुरू किया था, आज हमारा सालाना टर्नओवर 2.5 करोड़ रुपये है.” वित्तीय वर्ष 2018-19 में, उन्होंने ₹17 लाख की वार्षिक बिक्री की. वित्तीय वर्ष 2019-20 तक इनकी सालाना बिक्री ₹20 लाख तक थी. वित्तीय वर्ष 2020-21 महामारी के समय में, उनकी वार्षिक बिक्री 225% बढ़कर ₹65 लाख हो गई. इसके बाद ये बिक्री ₹1.5 करोड़ रही और फिर इस साल 2.5 करोड़ की सालाना बिक्री तक पहुंची. बता दें, वैरी मच इंडियन की एक पैठणी साड़ी की औसत कीमत ₹10,000 है. 

आगे बढ़ते रहें और रुके नहीं- सलोनी

आखिर में सलोनी कहती हैं कि इस दौरान कई बार लगा की छोड़ देते हैं. रिजेक्शन मिला तो लो फेज आया. लेकिन इस दौरान मैंने हार नहीं मानी. इस दौरान सलोनी के परिवार ने उनका काफी साथ दिया. इसको लेकर सलोनी कहती हैं, “जब कोई भी बिजनेस शुरू करते हैं तो हम सोचते हैं कि कैसे इसे शुरू के? दरअसल, ‘कैसे’ का जवाब आपको कोई नहीं दे सकता है. ये सिर्फ आप ही कर सकते हैं. इसके लिए कोई तैयारी नहीं होती है. मुश्किलें आएंगी लेकिन आपको हार नहीं माननी चाहिए. बहुत लोग बीच में छोड़ देते हैं, ऐसे में वही लोग सफल होते हैं जो आगे बढ़ते रहते हैं.”