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Ratan Tata Net Worth: 30 कंपनियां... 100 से ज्यादा देशों में कारोबार... 10 लाख से ज्यादा कर्मचारी... पाकिस्तान की GDP से भी ज्यादा है Ratan Tata की कुल Net Worth

रतन टाटा ने 1991 में परिवार के ग्रुप की कमान संभाली और टाटा ग्रुप को एक वैश्विक पावरहाउस में बदल दिया. उनके नेतृत्व में टाटा ने जगुआर लैंड रोवर, टेटली, और कोरस स्टील जैसी ग्लोबल ब्रांडों को खरीदा, जिससे दुनियाभर में टाटा ग्रुप की स्थिति और मजबूत हो गई. ये टाटा की सबसे डील मानी जाती है.

Ratan Tata (Photo/Reuters) Ratan Tata (Photo/Reuters)
हाइलाइट्स
  • दादी ने बुलाया फैमली बिजनेस के लिए 

  • पाकिस्तान की जीडीपी से ज्यादा नेट वर्थ 

रतन टाटा (Ratan Tata) का नाम आज सभी भारतीयों की जुबान पर है. उन्होंने सभी को अलविदा कह दिया है. वह भले ही चले गए हों, लेकिन वे अपने पीछे एक विरासत छोड़ गए हैं. इस विरासत का ही एक हिस्सा है उनकी टाटा कंपनी. टाटा ग्रुप की कहानी, भारत के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित ग्रुप की कहानी है. 19वीं शताब्दी में शुरू हुई इस कंपनी की नेट वर्थ पाकिस्तान की जीडीपी से भी ज्यादा है.

2024 तक, टाटा ग्रुप की मार्केट वैल्यू $365 बिलियन तक पहुंच गई है. पाकिस्तान की GDP अनुमानित रूप से $341 बिलियन है. अब रतन टाटा, का 86 साल की उम्र में देहांत हो गया है. 

दरअसल, टाटा कंपनी (Tata Company) की यह यात्रा 19वीं शताब्दी के मध्य में शुरू होती है, एक ऐसे व्यक्ति के साथ जिसने बड़े सपने देखने की हिम्मत की: जमशेदजी टाटा, टाटा समूह के संस्थापक. साथ ही इसे आगे बढ़ाने के काम किया उनके पड़पौते रतन टाटा ने.

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जमशेदजी टाटा ने 1868 में टाटा ग्रुप की नींव रखी. एक छोटे से व्यापारिक फर्म के रूप में शुरू हुआ यह ग्रुप अब दुनिया के सबसे ग्रुप में से एक है. ये कंपनी 100 से ज्यादा देशों में फैली हुई हैं. टाटा ग्रुप की 30 से ज्यादा कंपनियां हैं, और वैश्विक स्तर पर लगभग 10 लाख लोग इसमें काम करते हैं.

जमशेदजी टाटा जिन्होंने टाटा ग्रुप की स्थापना की, उनका दृष्टिकोण केवल बिजनेस बनाने तक सीमित नहीं था; वे एक राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे. उन्होंने टाटा स्टील की स्थापना के साथ भारत में स्टील प्रोडक्शन का बीड़ा उठाया, भारत के पहले हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन की स्थापना की, और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बनाने के लिए एक रास्ता सुझाया. 

(फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव)
फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव

1904 में जमशेदजी की मृत्यु के बाद, उनके उत्तराधिकारियों ने काम करना जारी रखा. उनके पुत्र दोराबजी टाटा ने भारत का पहला स्टील प्लांट स्थापित किया. यही आगे चलकर 1907 में टाटा स्टील बना. 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब तक टाटा ग्रुप पहले से ही विश्वास और गुणवत्ता का पर्याय बन चुका था. 1938 में, जमशेदजी के भतीजे जे.आर.डी. टाटा ने चेयरमैन के रूप में पदभार संभाला और एविएशन इंडस्ट्री में कदम रखा. उन्होंने एयर इंडिया की स्थापना की. 

दादी ने बुलाया फैमली बिजनेस के लिए 
रतन टाटा, का जन्म 1937 में हुआ. कुछ समय बाद उनके माता-पिता अलग हो गए, तो रतन टाटा को मुख्य रूप से उनकी दादी ने पाला. उन्होंने शुरुआत में अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय में आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल की, जो स्टील मिल और कारखानों की दुनिया से बहुत अलग थी. हालांकि, 1960 के दशक की शुरुआत में, रतन टाटा की दादी, ने उन्हें परिवार के बिजनेस में शामिल होने के लिए भारत वापस बुलाया.

टाटा समूह में उनकी शुरुआत कुछ खास नहीं थी. रतन ने सबसे नीचे से शुरुआत की, टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया, जहां वे ब्लास्ट फर्नेस के पास काम करते थे. उन्होंने कर्मचारियों के लिए बने एक छोटे से हॉस्टल में रहते हुए स्टील प्रोडक्शन का काम बारीकी से सीखा. 

फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव
फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव

रतन टाटा की विरासत
रतन टाटा ने 1991 में परिवार के ग्रुप की कमान संभाली और टाटा ग्रुप को एक वैश्विक पावरहाउस में बदल दिया. उनके नेतृत्व में टाटा ने जगुआर लैंड रोवर, टेटली, और कोरस स्टील जैसी ग्लोबल ब्रांडों को खरीदा, जिससे दुनियाभर में टाटा ग्रुप की स्थिति और मजबूत हो गई. ये टाटा की सबसे डील मानी जाती है. 2008 में टाटा मोटर्स ने जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) को $2.3 बिलियन में फोर्ड से खरीदा था.

पाकिस्तान की जीडीपी से ज्यादा नेट वर्थ 
टाटा की प्रमुख कंपनी, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है, जिसकी मार्केट वैल्यू $170 बिलियन है. ये अकेले पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के आधे से ज्यादा के बराबर है. टाटा ग्रुप की इस नेट वर्थ में बढ़ोतरी विशेष रूप से टाटा मोटर्स, टाइटन, ट्रेंट, और टाटा पावर जैसी कंपनियों से हुई है. खासकर, टाटा मोटर्स के इलेक्ट्रिक व्हीकल ने भी इसमें काफी बड़ा योगदान दिया है.

कम से कम आठ टाटा कंपनियों, जिनमें TRF, टाटा मोटर्स, और बनारस होटल्स शामिल हैं, ने तो एक साल के भीतर अपनी मार्केट वैल्यू को दोगुना कर लिया था. 

फोटो- पीटीआई
फोटो- PTI

रतन टाटा को उनकी विनम्रता और सरलता के लिए भी उन्हें जाना जाता था. 1962 में उन्होंने अपना करियर टाटा स्टील के कारखाने के काम से शुरू किया, जहां वे कर्मचारियों के साथ हाथ मिलाकर काम करते थे. इसी काम ने आगे चलकर उनके लिए मजबूत नींव का काम किया और वे आगे बढ़ते चले गए.

इतने पैसों के बाद भी नहीं आए अमीरों की लिस्ट में
हालांकि, इतने बड़े बिजनेस और कंपनी के बाद भी उनका नाम कभी दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में नहीं आया. इसका कारण यह था कि टाटा परिवार ने अपने कंपनी शेयरों का बड़ा हिस्सा कभी नहीं रखा. इसके बजाय, उन्होंने अपनी ज्यादातर इनकम को टाटा ट्रस्ट्स में निवेश किया, जो शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और ग्रामीण विकास जैसी पहलों के लिए फंड मुहैया कराते हैं. टाटा संस का लगभग 66% मुनाफा चैरिटेबल ट्रस्टों को दिया जाता है. रतन टाटा के पास टाटा संस में बेहद छोटा शेयर है. 

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