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LGBTQ+ व्यक्ति अब खोल सकेंगे Joint Bank Account, जानें किसे कर सकते हैं Nomiee के रूप में नॉमिनेट 

यह पहली बार नहीं है जब RBI ने LGBTQ+ व्यक्तियों को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए कदम उठाया है. 2015 में, RBI ने सभी बैंकों को अपने सभी फॉर्म और आवेदनों में एक अलग 'थर्ड जेंडर' कॉलम शामिल करने का निर्देश जारी किया था.

LGBTQ+ financial rights (Photo/PTI) LGBTQ+ financial rights (Photo/PTI)
हाइलाइट्स
  • पार्टनर को बना सकेंगे नॉमिनी 

  • इसके लिए बनाई गई थी समिति 

भारत में LGBTQ+ समुदाय के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है. अब किसी भी LGBTQ+ व्यक्ति के लिए जॉइंट बैंक अकाउंट खोलने या अपने पार्टनर को नॉमिनी बनाने पर कोई रोक नहीं है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने गुरुवार को इसकी घोषणा की है.

यह घोषणा पिछले साल 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद की गई है. इस आदेश में सुप्रिया चक्रवर्ती और अन्य बनाम भारत संघ मामले में फैसला सुनाया गया था, जिसमें LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों पर जोर दिया गया था.

पार्टनर को बना सकेंगे नॉमिनी 
वित्त मंत्रालय ने इसे लेकर सूचना भी जारी की है. मंत्रालय ने कहा, “यह स्पष्ट किया जाता है कि LGBTQ+ समुदाय के व्यक्तियों के लिए जॉइंट बैंक अकाउंट खोलने और अपने पार्टनर को नॉमिनी बनाने पर कोई रोक नहीं है. अगर खाते के धारक की मृत्यु हो जाती है, तो नॉमिनी का अकाउंट में मौजूद धनराशि पर अधिकार होगा."

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एडवाइजरी में यह भी बताया गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 21 अगस्त को सभी कमर्शियल बैंकों को इस मामले पर स्पष्टीकरण जारी किया था. 

यह पहली बार नहीं है जब RBI ने LGBTQ+ व्यक्तियों को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए कदम उठाया है. 2015 में, RBI ने सभी बैंकों को अपने सभी फॉर्म और आवेदनों में एक अलग 'थर्ड जेंडर' कॉलम शामिल करने का निर्देश जारी किया था. इस कदम का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव का सामना किए बैंक खाते खोलने और संबंधित सेवाओं तक पहुंचने में मदद करना था. 

समलैंगिक विवाह अभी भी अवैध है 
वित्त मंत्रालय की घोषणा को एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा. हालांकि, अभी भी कई मुद्दे हैं जो अनसुलझे हैं. इनमें से एक है समलैंगिक विवाह. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाने या न बनाने का सवाल संसद को तय करना चाहिए. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान के तहत वर्तमान में विवाह का कोई मौलिक अधिकार नहीं है.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस स्पष्टीकरण पर ही नहीं रुका. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का बयान दर्ज किया था. सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि केंद्र समलैंगिक विवाह में व्यक्तियों के अधिकारों और पात्रताओं की जांच और निर्णय लेने के लिए एक समिति बनाएगा. ये समिति LGBTQ+ कपल के लिए अलग अलग क़ानूनी अधिकार पर विचार करेगी. इसमें विरासत को लेकर कानून, गोद लेने का अधिकार और सामाजिक लाभ आदि शामिल हैं. 

इसके लिए बनाई गई थी समिति 
इस साल की शुरुआत में, सरकार ने LGBTQ+ व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने छह सदस्यीय समिति भी बनाई थी. ये समिति कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में बनाई गई थी. इस समिति को मौजूदा प्रक्रियाओं की समीक्षा करने का काम सौंपा गया था. इसका मकसद था कि LGBTQ+ व्यक्तियों की जरूरतों को ध्यान में रखा जाए और उन्हें भेदभाव का सामना न करना पड़े. 

इसके अलावा, पिछले साल अक्टूबर में, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि समलैंगिक समुदाय के किसी भी व्यक्ति को उनकी पहचान के कारण भेदभाव का सामना न करना पड़े.