इस बात में कोई दो राय नहीं है कि किसान की किस्मत मौसम पर आधारित होती है. पिछले कुछ सालों में जिस तरह से मौसम बदला है, और इससे किसानों को नुकसान हुआ है. इसे देखते हुए बहुत से किसान परिवार खेती छोड़कर दूसरे कामों में भविष्य तलाशने लगे हैं. लेकिन आज हमारे पास बहुत से ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने आपदा में अवसर तलाशा है. महाराष्ट्र के महेश असाबे भी ऐसा ही एक उदाहरण हैं जो सोलापुर जिले के सूखाग्रस्त सांगोला तालुका में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं.
27 साल के महेश ने इंजीनियरिंग की है. लेकिन ड्रैगन फ्रूट ने उन्हें इस कदर प्रभावित किया उन्होंने अपने परिवार के 20 एकड़ खेत में ड्रैगन फ्रूट लगाया है. जिन सूखाग्रस्त इलाकों में कृषि न के बराबर होती है वहां महेश करोड़ों का टर्नओवर कमा रहे हैं.
किसान परिवार से हैं महेश
इंजीनियरिंग के बाद फूड प्रोसेसिंग में M.Tech करने वाले महेश हमेशा से खेती-बाड़ी से जुड़े रहे. क्योंकि वह किसान परिवार से हैं और उनके पिता प्रगतिशील किसान हैं. उन्होंने 2009 में एप्पल बेर (जिसे भारतीय बेर भी कहा जाता है) लगाया था तब यह क्षेत्र में एक नई फसल थी. अप्पल बेर की सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने अपनी नर्सरी शुरू की थी और अब इस नर्सरी में कई तरह के पौधे तैयार होते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, महेश ने किसी मैगजीन में ड्रैगन फ्रूट के बारे में पढ़ा था और इस फल का उनपर गहरा प्रभाव पड़ा. इसके बाद ड्रैगन फ्रूट पर रिसर्च करके उन्होंने इसकी खेती करने की ठानी. बात इसकी खेती की करें तो ड्रैगन फ्रूट एक कैक्टस बेल है जिसे सपोर्ट के लिए खंभे की जरूरत होती है. एक खंभे से पांच-छह पौधों को सहारा मिलता है और एक एकड़ में ऐसे 500 खंभे लगाए जा सकते हैं और 2000 से ज्यादा पौधे.
ड्रैगन फ्रूट से होती है अच्छी कमाई
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसान ड्रिप इरीगेशन चुन सकते हैं. इस पर सरकार से सब्सिडी भी मिल जाती है. इस सबमें ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत में किसान की एक एकड़ में लागत लगभग पांच लाख रुपए आ सकती है. ड्रैगन फ्रूट का पौधा 12-15 महीने के बाद फल देना शुरू कर देता है. भारत में फल लगने का मौसम जून से नवंबर तक होता है और इस अवधि के दौरान छह बार कटाई की जाती है. इससे किसान पहले या दूसरे साल तक अपनी लागत वसूल सकते हैं और फिर उन्हें मुनाफा ही मुनाफा होता है.
महेश अपनी उपज को थोक विक्रेता और सुपरमार्केट्स में सप्लाई करते हैं. फल की तुड़ाई के बाद छह से आठ दिनों तक शेल्फ लाइफ रहती है. उनके ज्यादातर खरीदार गुजरात, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र के सांगली, कोल्हापुर, शोलापुर, मुंबई और पुणे से हैं. आपको बता दें कि पिछले कुछ सालों में भारत में ड्रैगन फ्रूट का चलन बढ़ा है जिसका मुख्य कारण है इसमें मौजूद पोषक तत्व. साथ ही, इसकी खेती के लिए बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है. यह शुष्क वातावरण को झेल सकता है. अपनी खेती से आज महेश सालाना एक करोड़ से ज्यादा कमाते हैं.
उन्होंने अपने फार्म और नर्सरी को Rukmini Farms का नाम दिया है. अब तक लगभग 30,000 किसान उनके फार्म का दौरा कर चुके हैं और 500 से ज्यादा किसानों ने वहां से पौधे खरीदे हैं. अब वह इसकी प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करने की योजना बना रहे हैं.