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Making Cash from Trash: वेस्ट चिप्स के पैकेट्स से चश्मे बनाकर लॉन्च किया स्टार्टअप, एक हफ्ते में कमाए 11 लाख, 20 से ज्यादा लोगों को दिया रोजगार

महाराष्ट्र के पुणे में अनीश मालपानी ने Waste Chips Packets से Trendy Sunglasses बनाकर WithOut नामक ब्रांड खड़ी कर दी है. यह ब्रांड उदाहरण है कि कैसे हम बिजनेस से पैसे कमाने के साथ-साथ बदलाव ला सकते हैं.

Sunglasse from waste chips packets (Photo: X/@without) Sunglasse from waste chips packets (Photo: X/@without)

अगर हम कहें कि एक स्टार्टअप ऐसा है जिसने लॉन्च होने के एक हफ्ते में ही 11 लाख रुपए का रेवेन्यू कमा लिया था तो शायद आपको यकीन न हो. लेकिन यह सच है! WithOut by Ashaya नामक एक Sunglasses Brand ने लॉन्च होने के एक हफ्ते में ही 500 ऑर्डर्स पूरे कर लिए और अच्छी कमाई की. वर्तमान में कंपनी अच्छी कमाई करते हुए 20 से ज्यादा लोगों को रोजगार दे रही है और साथ ही, मल्टी-लेयर्ड प्लास्टिक को रिसायकल करके पर्यावरण के संरक्षण को बढ़ावा दे रही है. 

इस स्टार्टअप के फाउंडर हैं अनीश मालपानी. महाराष्ट्र के पुणे में अनीश ने साल 2023 में इस स्टार्टअप की शुरुआत की थी. सवाल यह है कि आखिर इस कंपनी के चश्मों में ऐसी क्या बात है जो हफ्ते भर में इतने ऑर्डर्स मिल गए? इसका जवाब है चश्मों के पीछे का अनोखा इनोवेशन! जी हां, ये चश्में प्लास्टिक से नहीं बल्कि मल्टी-लेयर्ड प्लास्टिक से बने चिप्स के पैकेट्स को रिसायकल करके बनाए गए हैं. कितना कूल है न चिप्स के पैकेट्स से बने चश्मे. 

अमेरिका छोड़ लौटे अपने वतन 
अहमदाबाद में जन्मे अनीश ने बीबीए किया और वह बतौर फाइनेंस प्रोफेशनल अमेरिका में सेटल्ड थे. न्यूयॉर्क में अच्छी नौकरी और सुविधाओं से भरी ज़िंदगी, अनीश के लाइफ एकदम बढिया थी. पर फिर भी वह दिल से खुश नहीं थे. उन्हें कोई बदलाव लाना था जो न सिर्फ उनके लिए बल्कि दुनिया के लिए पॉजिटिव हो. इस सोच के साथ उन्होंने अमेरिका से जॉब छोड़कर वतन लौटने का फैसला किया. हालांकि, साल 2019 में भारत आने से पहले उन्होंने दो साल ग्वाटेमाला और केन्या में बिताए. 

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Anish Malpani (Photo: https://without.live/)

द बेटर इंडिया को दिए इंटरव्यू में अनीश ने बताया कि ग्वाटेमाला में उन्होंने लोकल उद्यमियों और नॉन-प्रोफिट संस्थाओं के साथ काम किया. उन्होंने समझा कि बिजनेस को कैसे सामाजिक बदलाव के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. केन्या में उन्होंने युवाओं के साथ समय बिताया जो स्लम्स में रहने वाले लोगों की ज़िंदगी बदलने वाले उत्पादों पर काम कर रहे थे. इस अनुभव के साथ वह भारत आए. भारत आने के बाद उन्होंने अपनी राह तलाशना शुरू किया. 

कचरा बीनने वालों को देख मिली प्रेरणा 
अनीश जब अपने आइडियाज पर ब्रेन-स्ट्रोम कर रहे थे तब उनके सामने भारत में कचरा बीनने वालों की दयनीय स्थिति आई. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि भारत में वेस्ट से बहुत से लोगों को रोजगार मिलता है. लगभग 1.5-4 मिलियन कूड़ा बीनने वाले लोग गरीबी में जीवन जीते हैं. यह इनफॉर्मल सेक्टर है जिसमें कोई कॉन्ट्रेक्ट नहीं, कोई सिक्योरिटी नहीं, कोई हेल्थ बीमा नहीं... वे हर तरह का कचरा इकट्ठा करते हैं और उसी से अपना दैनिक वेतन कमाते हैं. 

विदआउट वेबसाइट के मुताबिक, इन कूड़ा बीनने वालों की जिंदगी कम से कम 39 वर्ष हो सकती है (एक औसत भारतीय के लिए 69 वर्ष की तुलना में) क्योंकि वे खतरनाक परिस्थितियों (धुआं, आग, गंदगी) में काम करते हैं, और वह भी आमतौर पर बिना सुरक्षात्मक उपकरणों के. ये लोग हर महीने लगभग 3,000 रुपये से 12,000 रुपये के बीच कमाते हैं. विडंबना यहा है कि यह पीढ़ीगत व्यवसाय है - एक बार जब आप कूड़ा बीनने वाले बन जाते हैं, तो इस बात की बहुत संभावना है कि आपका बच्चा भी कूड़ा बीनने वाला बन जाएगा. 

अनीश इस सायकल को तोड़ना चाहते थे और उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू किया. इस दौरान उनके सामने एक और बड़ी समस्या आई- Multi-Layered Plastic (MLP). उन्हें पता चला कि इस तरह के प्लास्टिक को बाद में रिसायकल करना बहुत मुश्किल है. उन्होंने इस पर रिसर्च की, एक्सपर्ट्स से बात की और फिर लगभग 1000 एक्सपेरिमेंट करके चिप्स के पैकेट्स से चश्मे बनाने में वह सफल रहे. 

कचरे से बनाई कूल ब्रांड 
अनीश ने साल 2020 में आशाया रिसाइक्लर्स प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. 
उन्होंने पुणे के चिंचवाड़ में 1,200 वर्ग फुट जगह में एक लैब और एक ऑफिस बनाया. लैब में उनकी रिसायक्लिंग प्रोसेस होती है. अनीष 13-14 महिलाओं के ग्रुप द्वारा संचालित पुणे वेस्ट पिकर कलेक्टिव से वेस्ट चिप्स के पैकेट्स इकट्ठा करते हैं. एक जोड़ी धूप के चश्मे बनाने में पांच चिप्स के पैकेट्स इस्तेमाल होते हैं.

चिप्स के पैकेटों को फैशनेबल धूप के चश्मे में बदलकर, वह न सिर्फ लैंडफिल में प्लास्टिक कचरे को कम करने में मदद कर रहे हैं, बल्कि कचरा बीनने वालों को सशक्त बना रहे हैं और उनकी स्थिति में सुधार कर रहे हैं. उनके साथ जुड़े हुए लगभग सभी वेस्ट कलेक्ट करने वालों लोगों की आजीविका पहले से दोगुनी हो गई है. 

क्या है चश्मे बनाने की प्रोसेस 

  • स्टेप 1: सबसे पहले चिप्स के पैकेट्स को छोटे-छोटे टुकड़ों में श्रेड किया जाता है. 
  • स्टेप 2- दूसरे चरण में, इन प्लास्टिक के टुकड़ों को मशीन में डालकर मेल्ट किया जाता है और इसमें से पॉलिओलेफिन्स को निकाला जाता है. 
  • स्टेप 3- तीसरे स्टेप में, इन पॉलिओलेफिन्स को मेल्ट करके इसके धागे बनाते हैं और फिर इससे पैलेट बनाते हैं. 
  • स्टेप 4- चौथे स्टेप में इन पैलेट्स को मेल्ट करके इनसे फ्रेम और आर्म्स बनाए जाते हैं. 
  • स्टेप 5- आखिर में, इन फ्रेम और आर्म्स को असेंबल करके चश्मा बनाया जाता है.  

क्वालिटीज:

  • ये चश्में 100% रिसायकलेब्ल हैं. 
  • वजन में बहुत हल्के है 
  • यूवी पोलराइज्ड हैं ताकि धूप का आंखों पर असर न पड़े.  

Shark Tank India से मिली फंडिंग
अनीश को शार्क टैंक इंडिया सीजन 3 में एक प्रतिशत इक्विटी के लिए 75 लाख रुपए की फंडिंग मिली थी. शो में सभी शार्क्स को उनका बिजनेस आइडिया बेहद पसंद आया और इसके बाद उनके ब्रांड की मार्केट वैल्यू भी काफी ज्यादा बढ़ गई. सिर्फ शार्क टैंक इंडिया ही नहीं बल्कि और कई प्लेटफॉर्म्स पर अनीश नाम कमा चुके हैं. उनका उद्देश्य स्पष्ट है इस सेक्टर से जुड़े गरीब लोगों की ज़िंदगी में बदलाव और पर्यावरण सुरक्षा में योगदान. 

जब भी कई WithOut ब्रांड के चश्में पहनता है, सिर्फ चश्मा नहीं बल्कि एक बदलाव पहनता है. इन चश्मों को पहनकर आपको खुद पर गर्व होगा कि आप भी इस बदलाव में हिस्सेदारी निभा रहे हैं.