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MRF Success Story: सड़को पर गुब्बारे बनाकर बेचने से लेकर देश की सबसे बड़ी टायर कंपनी बनने तक, जानिए एमआरएफ की सफलता की कहानी

MRF कंपनी के शेयर की कीमत मंगलवार को 1 लाख रुपये के स्तर को पार कर गई. एमआरएफ स्टॉक एनएसई पर सुबह 9.25 बजे 1,00,050 रुपये पर कारोबार कर रहा था. ऐसा होने के बाद यह भारत का पहला 6-डिजिट स्टॉक बन गया. इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं MRF कंपनी की Success Story.

MRF Success Story MRF Success Story
हाइलाइट्स
  • मद्रास की सड़कों पर बेचे गुब्बारे 

  • ट्रेड रबर बनाने वाली भारत की पहली कंपनी 

  • मार्केटिंग ने बनाया टायर किंग कंपनी 

एक जमाना था जब क्रिकेटर्स के MRF बैट को देखकर लगता था कि बस इस कंपनी का एक बैट होना चाहिए और फिर जब बड़े हुए तो पता चला कि MRF बैट बनाने वाली नहीं बल्कि टायर बनाने वाली कंपनी है. जी हां, और जितनी बड़ी यह कंपनी है उतनी ही दिलचस्प इस कंपनी के अस्तित्व में आने की कहानी है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस कंपनी के एक गुब्बारे बेचने वाले ने खड़ा किया और आज हम आपको बता रहे हैं MRF की सफलता की कहानी. 

मद्रास की सड़कों पर बेचे गुब्बारे 
भारत की आजादी के पहले से ही, साल 1946 में केएम मैम्मेन मप्पिलाई (K. M. Mammen Mappillai) मद्रास की सड़कों पर गुब्बारे बेचते फिरते थे. केरल में एक ईसाई परिवार में नौ अन्य भाई-बहनों के साथ जन्मे, मैम्मेन को इस बात का अंदाजा नहीं था कि ये गुब्बारे उनकी सफलता की सीढ़ी हैं. उनका व्यापार सरल था, उनकी शेड में एक छोटी सी निर्माण इकाई थी जो खिलौने के गुब्बारे बनाती थी, मैम्मेन उन्हें एक बैग में पैक करके बेचने के लिए गली-गली जाते थे.

फिनोलॉजी के एक आर्टिकल के मुताबिक, उनका टर्निंग प्वाइंट साल 1952 में आया जब उन्होंने देखा कि एक विदेशी कंपनी टायर रिट्रेडिंग प्लांट को ट्रेड रबर की आपूर्ति कर रही थी. टायर में ट्रेड रबर वह रबर है जो सड़क के साथ संपर्क में आता है, और टायर रीट्रेडिंग से मतलब है पुराने टायर को फिर से इस्तेमाल में लेना. तब उन्हें लगा कि वह भारत में ही ट्रेड रबर बनाने के लिए अपनी यूनिट क्यों नहीं लगा सकते हैं. उन्होंने अपनी सेविंग्स का उपयोग ट्रेड रबर निर्माण व्यवसाय में एंट्री करने के लिए किया, जिसने अंततः MRF को जन्म दिया, जिसे मद्रास रबर फैक्ट्री के रूप में जाना जाता था. 

ट्रेड रबर बनाने वाली भारत की पहली कंपनी 
मैम्मेन का यह व्यवसाय कुछ ही समय में बहुत लोकप्रिय हो गया, यह एकमात्र भारतीय कंपनी थी जो ट्रेड रबर का निर्माण करती थी, और प्रतिस्पर्धी विदेशी कंपनियां थीं. इस प्रकार, एमआरएफ बड़ी लीग की राह पर था, और 4 साल के भीतर, यह अपनी उच्च गुणवत्ता के कारण 50% बाजार हिस्सेदारी का मालिक बन गया. इससे कई विदेशी निर्माताओं को भारत से वापस जाना पड़ा. 

चीजें बहुत अच्छी चल रही थीं, लेकिन मैम्मेन सिर्फ ट्रेड रबर के निर्माण तक नहीं रुकना चाहते थे और इस बार उनका लक्ष्य टायरों के लिए था! यह साल था 1960; एमआरएफ पहले से ही एक अच्छी तरह से स्थापित ब्रांड बन गया था, लेकिन टायर बनाना पूरी तरह से एक अलग काम था. मैम्मेन ने पहले विदेशी प्रतिस्पर्धा को देश से बाहर करने में कामयाबी हासिल की थी लेकिन इस बार टायर निर्माण इकाई के लिए उन्हें ऐसी कंपनियों से सपोर्ट की जरूरत थी. 

क्योंकि भारत गुणवत्ता वाले टायर का उत्पादन करने के लिए तकनीकी रूप से उन्नत नहीं था. इस प्रकार, यूएसए की मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी तकनीकी सहयोग के रूप में सामने आई. जल्द ही टायर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट स्थापित हो गई और काम शुरू हो गया. साल 1961 में यूनिट से पहला टायर निर्मित किया गया था, और उसी वर्ष एमआरएफ ने मद्रास स्टॉक एक्सचेंज में अपना आईपीओ लॉन्च किया था.

भारत की सड़कों के अनूरूप बनाए टायर 
सबकुछ अच्छा था लेकिन फिर मैम्मेन ने यह महसूस किया कि मैन्सफील्ड के साथ तकनीकी सहयोग भारतीय सड़कों की स्थिति के अनुकूल नहीं है. दूसरी ओर, विदेशी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा लगातार मिल रही थी. वह समय था जब भारतीय टायर निर्माण उद्योग पर डनलप, फायरस्टोन और गुडइयर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा था. मूल्य निर्धारण, उत्पादन संख्या और आपूर्तिकर्ताओं के मामले में ये तीन कंपनियां बाजार पर हावी थीं. 

इससे MRF जैसी कंपनी का खुद को विकसित कर पाना मुश्किल था. फिनोलॉजी के मुताबिक, यह वह समय था जब भारत ने हाल ही में अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की और राजनीतिक नेता भारतीय कंपनियों को बढ़ावा देने के इच्छुक थे, विशेष रूप से रबड़ उद्योग में जिसने एमआरएफ को और भी अधिक प्रोत्साहित किया. सरकारी हस्तक्षेप से उन्हें मदद मिली. कंपनी द्वारा निर्मित टायरों को भारतीय सड़कों की स्थिति के लिए बनाने के लिए साल 1963 में हल मिल गया और तिरुवोट्टियूर कारखाने का उद्घाटन करते हुए तिरुवोट्टियूर में रबड़ अनुसंधान केंद्र अस्तित्व में आया. 

मार्केटिंग ने बनाया टायर किंग कंपनी 
एमआरएफ कंपनी आगे बढ़ रही थी, मैम्मेन चाहते थे कि यह और बड़ी बने. मैम्मेन किसी भी कीमत पर आगे बढ़ना चाहते थे. उनका मानना था कि जब भी कोई रिटेलर टायर बदले तो रिप्लेसमेंट के तौर पर MRF टायर ही लगाए. इस के लिए उन्होंने कंपनी की सही मार्केटिंग पर ध्यान दिया. ऐसा करने के लिए, एलिक पदमसी तस्वीर में आए. उस समय पदमसी को मार्केटिंग का रॉकस्टार या भगवान के रूप में जाना जाता है जिसने भारतीय विज्ञापन का चेहरा बदल दिया.

पदमसी ने विभिन्न ट्रक ड्राइवरों का सर्वेक्षण शुरू किया जिन्होंने दावा किया कि एक टायर मजबूत और शक्तिशाली होना चाहिए. तो MRF टायर्स की पहचान भी कुछ ऐसी दमदार और पावरफुल होनी चाहिए जिसने 1964 में MRF मसलमैन को जन्म दिया, जो कंपनी के टायर की मजबूती को दर्शाता है. मसलमैन का इस्तेमाल टीवी विज्ञापनों और होर्डिंग में किया गया था, जिससे लोग इसे संबंधित और पहचानने लगे.

60 के दशक में, मैम्मेन पहले से ही भारत के रिटेल टायर सेक्टर में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे थे और इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई. कभी भारत में डनलप और गुडइयर जैसी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का वर्चस्व था, और फिर एमआरएफ 1967 में यूएसए को टायर निर्यात करने वाली भारत की पहली कंपनी बन गई. 70 के दशक की शुरुआत में, कंपनी ने भारत में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्लांट्स खोले थे. साल 1973 में, MRF व्यावसायिक रूप से नायलॉन ट्रेवल कार टायरों की मैन्यूफैक्चरिंग और मार्केटिंग करने वाली भारत की पहली कंपनी बन गई. 

खेलों के जरिए बनाई पहचान
1980 के दशक में आगे बढ़ते हुए MRF ने MRF पेस फाउंडेशन की स्थापना करके और भारत में MRF वर्ल्ड सीरीज़ टूर्नामेंट को प्रायोजित करके खेलों में वेंचर करना शुरू किया. आपको वह क्रिकेट बैट याद है जिस पर MRF लिखा होता था? तेंदुलकर से लेकर धोनी तक, हर एक ने उस बल्ले को प्रतिष्ठित बनाया. एक समय था जब हम सभी को लगता होगा कि एमआरएफ एक क्रिकेट बैट बनाने वाली कंपनी है.

आज भी बहुत से युवा उनके बैट के दीवाने हैं और कंपनी इसे अच्छी तरह से जानती है. जब लड़के किशोर होते हैं और क्रिकेट के दीवाने होते हैं तो उन्हें एमआरएफ लिखा हुआ बैट चाहिए होता है और वही युवा लड़के जब बड़े हो जाते हैं तो उन्हें बाइक का टायर चाहिए होता है जिस पर एमआरएफ लिखा हो. तो एक तरह से एमआरएफ की मार्केटिंग बैट्स के जरिए बहुत छोटी उम्र से ही अपनी टारगेट ऑडियंस पर काम शुरू कर देती है. 

क्रिकेट के अलावा, कंपनी भारत में अपनी तरह की पहली बॉक्सिंग चैंपियनशिप भी लाई, जिसमें 39 देशों ने भाग लिया. 90 के दशक के अंत तक, MRF ने F3 रेसिंग कारों का निर्माण शुरू कर दिया. किसने सोचा होगा कि एक साधारण टायर को इस तरह से ब्रांड किया जा सकता है कि लोग वास्तव में उससे जुड़ सकें.

कई अवॉर्ड्स हैं कंपनी के नाम
1997 तक एमआरएफ के पहले टायर स्टोर का उद्घाटन किया गया. 2007 में MRF ने एक बिलियन डॉलर का कारोबार किया, उसके बाद साल 2011 में दो बिलियन डॉलर का. 2013 में MRF का एयरो मसल, सुखोई 30 एमकेआई फाइटर जेट के लिए चुना गया. आज MRF टूव्हीलर, ट्रक, बस, कार, ट्रैक्टर, लाइट कमर्शियल व्हीकल्स, ऑफ द रोड टायर्स और एरोप्लेन टायर्स बनाती है. MRF के नाम कई अवार्ड भी हैं.

साल 2003 में मैम्मेन ने दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन उनकी विरासत जारी है. उन्होंने मद्रास की सड़कों पर घूमते हुए कभी नहीं सोचा होगा कि वह इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा करेंगे जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी टायर कंपनियों में से एक बना देगा.