मध्य प्रदेश के बैतूल एक शख्स ने सरकारी नौकरी करने की जगह खेती करना चुना और आज इस किसान की हर जगह चर्चा हो रही है. ये है बैतूल के बघोली गांव के किसान जयराम गायकवाड़. जयराम को 3 सरकारी नौकरियों को मौका मिला था पर जयराम ने ऑर्गेनिक फार्मिंग का रुख किया. और अब कुछ ही सालों में उनकी कमाई लाखों रुपए तक पहुंच गई है.
54 साल के एमए पास किसान जयराम बैतूल से 11 किलोमीटर दूर बघोली गांव के रहने वाले हैं. उनके पास 30 एकड़ पुश्तैनी जमीन है, जिस पर उनके पिता खेती किया करते थे. पढ़ाई के दौरान जयराम को CRPF में नौकरी का मौका मिला. इसके बाद आर्मी और फिर रेलवे में क्लर्क...
जयराम का मन नौकरी करने का तो हुआ, लेकिन वह अपनी माटी को छोड़ नहीं पाए. उन्होंने नौकरी छोड़कर खेती करने का निर्णय लिया.
जैविक खेती को बनाया लक्ष्य
जयराम ने बताया कि खेती को जैविक तरीके से आधुनिक बनाने का आइडिया उन्हें कृषि विभाग के टूर प्रोग्राम से आया. वह अपने भाईयों के साथ 30 एकड़ में खेती करते हैं और खेतों में बिल्कुल भी केमिकल्स और फर्टिलाइजर्स का इस्तेमाल नहीं करते. गाय के गोबर से बनी वर्मी कंपोस्ट खाद से ही खेती करते हैं.
30 में से 9 एकड़ में सिर्फ गेहूं और गन्ने की खेती होती है. जैविक खेती की वजह से उनका गेहूं 30 रुपए किलो बिकता है. वहीं, गुड़ की कीमत 60 रुपए किलो है. इसके अलावा वह बाकी खेत में टमाटर, बैंगन समेत अन्य फल और सब्जियां उगाते हैं.
खेती के साथ शुरू किया गोपालन भी
जयराम ने खेती के साथ-साथ गोपालन को अपना जुनून बना लिया। साल 2012 में 2 गायों से डेयरी की शुरुआत की थी. आज महज 10 सालों में वह 60 से ज्यादा हाइब्रिड और देशी गाय सहित कई बछड़ों के मालिक बन गए हैं. गोपालन के साथ-साथ वह गोबर का भी अच्छा इस्तेमाल कर रहे हैं.
उन्होंने गायों के लिए शेड का निर्माण कुछ इस तरह से कराया है कि जानवरों का मल नालियों के जरिए सीधे शेड के पीछे बने गोबर गैस प्लांट में जमा होता है. वह गोबर गैस के जरिए घरेलू गैस और बिजली बनाते हैं. गैस प्लांट से बचा वेस्ट आगे बने टैंकों में चला जाता है, जो वर्मी कंपोस्ट की प्रारंभिक प्रक्रिया है. यहां से यह वेस्ट जैविक खाद के रूप में तैयार हो जाता है.
यही खाद उनकी फसलों के लिए रामबाण औषधि बन जाती है. उन्होंने अपने यहां 8 लड़कों को भी रोजगार दिया है. डेयरी में शंकर नस्ल की कई गायें जयराम और उनके परिवार के लिए खेती से इतर आय का बड़ा जरिया है.
दूध है आय का बड़ा साधन
जयराम ने बताया कि हर रोज उन्हें 150 लीटर दूध मिलता है. इससे वह मावा, पनीर, दही और घी सहित अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स बनाते हैं. उन्हें डेयरी और खेती से सालाना 30 लाख रुपये की आय होती है. गोबर गैस से बनने वाली बिजली से वह जनरेटर चलाते हैं और इससे मावा मशीन चलती है.
दाना बारीक करने के लिए चक्की चलाते हैं. बाकी बायोगैस का इस्तेमाल मावा बनाने के लिए भी करते हैं. जयराम का कहना है कि वह गोबर से हर महीने में 300 क्विंटल खाद तैयार करते हैं. इससे उन्हें अतिरिक्त कमाई मिलती है.
दूसरे किसानों की कर रहे मदद
जयराम के नवाचारों ने उनकी खेती के तरीके को ही बदल दिया. यही वजह है कि सालों से पारंपरिक खेती करने वाले जयराम के सभी कायल हैं. दूसरे गांव के किसान भी उनसे जैविक खेती की राय लेने के लिए आते हैं और उनकी बातों को खेती में अपनाकर फायदा उठा रहे हैं.
उनका बेटा लोकेश गायकवाड़ अपने पिता की राह पर चलते हुए रीवा वेटनरी कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रहा है. स्थानीय युवा का कहना है कि उन्हें जब भी फसलों से लेकर मवेशियों तक कि कोई सलाह लेनी होती है तो वह जयराम की शरण में ही आते हैं. जैविक खेती और दुग्ध उत्पादन करने वाले इस किसान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम रहते हुए भी सम्मानित कर चुके हैं.
(राजेश भाटिया की रिपोर्ट)