आज के जमाने में पीरियड्स को लेकर लोगों के मिथक टूटे हैं और लड़कियां इस बारे में खुलकर बात कर रही हैं. लेकिन इसके साथ ही कई और समस्याएं अब सामने आ रही हैं. सबसे बड़ी समस्या है सैनिटरी वेस्ट की. जी हां, सैनिटरी वेस्ट से मतलब है ऐसे कचरे से जो इस्तेमाल हुए पैड्स, टेंपोन्स आदि से उत्पन्न होता है. पीरियड्स को टैबू समझने वाले समाज में इससे जुड़े कचरे का निपटान भी एक बड़ी समस्या है.
इस समस्या को हल करने का बीड़ा उठाया है एक 26 साल के युवा ने. यह कहानी है अजिंक्य धारिया की, जिन्हें 8 साल की उम्र में उनकी मां ने पीरियड्स और सैनिटरी नैपकिन्स के बारे में बताया था. और आज अजिंक्य सैनिटरी वेस्ट को सही तरीके से डिकंपोज करने पर काम कर रहे हैं.
पर्यावरण के लिए हानिकारक है सैनिटरी वेस्ट
अजिंक्य धारिया ने इस समस्या के खात्मे के लिए अपना स्टार्टअप PadCare Labs शुरू किया है. जिसके तहत, वह तीन अलग-अलग प्रोडक्ट्स लोगों, कंपनियों और संगठनों को इपलब्ध करा रहे हैं. शार्क टैंक इंडिया सीजन 2 में फंडिंग मांगने आए अजिंक्य ने बताया कि एक सैनिटरी नैपकिन को सड़ने में 500 से 800 साल लगते हैं.
उन्होंने कहा कि 98% सैनिटरी नैपकिन लैंडफिल और नदी-नालों में चले जाते हैं. इन्हें इंसिनेरेशन नामक प्रक्रिया से 800 डिग्री पर भी जलाया जाता है, जिससे खतरनाक अपशिष्ट, जहरीली गंध और धुआं पैदा होता है और यह हानिकारक है.
कैसे हुई PadCare Labs की शुरुआत
अजिंक्य के बारे में बात करें तो अपना स्टार्टअप शुरू करने से पहले वह बतौर रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंजीनियर इसरो के लिए काम कर रहे थे. यहां पर उन्होंने एक बार पुणे में एक लैंडफिल का दौरा किया, और कचरा बीनने वालों को अपने हाथों से सैनिटरी कचरा और डायपर उठाते देखा. और यहां से पैडकेयर लैब्स का जन्म हुआ.
अजिंक्य के मुताबिक, एक महिला महीने में 5 दिन और अपने जीवन के लगभग पांच से छह साल माहवारी में बिताती हैं. वह अपने जीवनकाल में 7,500 से अधिक सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल कर लेती हैं. हमारे कूड़ा बीनने वाले इन्हें अपने हाथों से उठाते हैं. लेकिन शर्मिंदगी में गांवों में इन्हें या तो मिट्टी में दबा दिया जाता है या जला दिया जाता है. भारत में हर साल 1,200 करोड़ सैनिटरी नैपकिन का उपयोग किया जाता है.
तैयार की तीन मशीनें
सैनिटरी नैपकिन के निपटान के लिए, पैडकेयर लैब्स तीन प्रोडक्ट्स उपलब्ध करा रहा है- पैडकेयर बिन (30 दिनों के लिए बिना बैक्टीरिया के विकास या गंध के खतरनाक कचरे को स्टोर करता है), पैडकेयर एक्स (15,000 सैनिटरी नैपकिन को लकड़ी के गूदे और उच्च गुणवत्ता वाले प्लास्टिक में रीसायकल करता है) और पैडकेयर वेंड (एक सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन).
अजिंक्य के मुताबिक, उनकी मशीन पैडकेयर बिन भारत की पहली 5डी-टेक्नॉलोजी-आधारित पेटेंटेड सैनिटरी नैपकिन निपटान और रिसायक्लिंग प्रणाली भी है. इससे बने लकड़ी के गूदे और प्लास्टिक को बाजार में कागज और पैकेजिंग इंडस्ट्री को बेचा जाता है.
भारतीय स्टेट बैंक और प्राज इंडस्ट्रीज की मदद से, PadCare ने शुरुआत में 3 PadCare Bin स्थापित किए हैं. आज, कंपनी के पास Facebook, Capgemini और Goldman Sachs सहित 150 ग्राहक हैं और यहां 5,500 से अधिक पैडकेयर बिन लगाए गए हैं.
PadCare वर्तमान में 100 से अधिक संगठनों में 6 शहरों में मौजूद है और इसके उत्पादों का उपयोग 1 लाख महिलाओं द्वारा किया जा रहा है.
शार्क टैंक में मिला ब्लैंक चेक
शार्क टैंक इंडिया में अजिंक्य की कहानी और काम के बारे में जानकर सभी शार्क्स हैरान थे. क्योंकि वह एक अच्छा बिजनेस मॉडल चलाते हुए एक सामाजिक मुद्दे पर काम कर रहे हैं. अजिंक्य के अनुसार, अपनी मशीनों से जरिए अबतक वह 15 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन का संरक्षण कर चुके हैं.
शार्क अमन गुप्ता ने बॉलीवुड फिल्म पैडमैन और अक्षय कुमार द्वारा निभाए गए उसके मुख्य किरदार का जिक्र करते हुए कहा, कि अजिंक्य साल 2022 के पैडमैन हैं. दूसरे शार्क्स ने भी उनकी सराहना की. वहीं, लेंसकार्ट के संस्थापक, पीयूष बंसल उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अजिंक्य को खाली चेक दिया और खुद फंडिंग भरने के लिए कहा.
अजिंक्य ने ₹25 करोड़ के मूल्यांकन पर 2% इक्विटी के लिए ₹50 लाख की फंडिंग मांगी थी. लेकिन, उसी मूल्यांकन के लिए उन्हें 4% इक्विटी के लिए ₹1 करोड़ मिले हैं.