पंजाब में संगरूर जिले के देहकलां गांव के रहने वाले 65 वर्षीय बचित्तर सिंह गरचा, 1990 के दशक की शुरुआत तक पंजाब में एक सफल आलू किसान थे. लेकिन एक समय ऐसा आया जब बाजार की कुछ मुश्किलों के कारण उनकी उपज लगातार तीन वर्षों तक कोल्ड स्टोरेज में फंसी रही, और उन्हें नुकसान उठाना पड़ा. और कर्ज चुकाने के लिए उन्हें अपनी काफी ज्यादा जमीन बेचनी पड़ी.
लेकिन 2002 में लगे एक ट्रेड फेयर ने उन्हें एक नई दिशा दी. और बचित्तर ने सोयाबीन की खेती में कदम रखा. यह फसल तब राज्य में कुछ ही किसानों उगाते हैं. दिलचस्प बात है कि वह सिर्फ खेती तक नहीं रुके बल्कि उन्होंने सोयाबीन प्रोससिंग में हाथ आजमाया और अब सोया मिल्क और पनीर के उत्पादन से अच्छी कमाई कर रहे हैं.
ट्रेनिंग लेकर लगाई प्रोसेसिंग यूनिट
बचित्तर ने मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खेती और प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग ली और एक छोटी सोयाबीन प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की. उन्होंने 2002 में सिर्फ एक एकड़ में सोयाबीन की खेती शुरू की और सोया दूध और पनीर का उत्पादन करने के लिए एक कमरे में छोटी सी फैक्ट्री स्थापित की. साथ ही, उन्होंने अपने गांव में एक छोटी किराना की दुकान भी खोली जहां वह अपने ग्राहकों को मुफ्त में सोया मिल्क देते थे.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बचित्तर के पास पंजाब में अपने सोया दूध को लोकप्रिय बनाने का कोई अन्य साधन नहीं था. यहां लोग गाय और भैंस का दूध पसंद करते हैं और बड़े मिल्क ब्रांड बाजार पर हावी हैं. दो साल तक, 2002 से 2004 तक, उन्होंने सिर्फ अपनी किराने की दुकान पर दूध लोगों को दिया. सभी को यह पसंद आया, लेकिन कोई भी गाय-भैंस का दूध छोड़ने को तैयार नहीं था.
डॉ. एमएस स्वामीनाथन से मिली मदद
साल 2004 में केंद्र सरकार ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम पंजाब भेजी थी ताकि वे धान की खेती पर रिसर्च करें. संगरूर की अपनी यात्रा के दौरान, डॉ. स्वामीनाथन और उनकी टीम को बचित्तर के सोया प्लांट के बारे में पता चला. यहां पर सोया मिल्क के लिए बाजार की कमी के बारे में जानने पर, डॉ. स्वामीनाथन ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) से मदद का अनुरोध किया. इसके बाद पीएयू ने बचित्तर को अपने परिसर में एक दुकान दे दी. उनकी दुकान को अब विगोर सोया हेल्थ मिल्क एंड पनीर के नाम से जाना जाता है. यहां वह बोतलबंद दूध, कुल्फी और पनीर आदि की अच्छी बिक्री करते हैं.
बचित्तर ने मीडिया को बताया कि जैसे-जैसे उन्हें सोयाबीन में सफलता मिलने लगी तो उन्होंने धीरे-धीरे अपनी कमाई को उस जमीन को वापस खरीदने में लगा दिया जो पहले बेची थी. अब तक वह 7 एकड़ जमीन वापस खरीद चुके हैं. उन्होंने ऑटोमेटिक बॉटलिंग और पैकेजिंग के साथ-साथ सोयाबीन को पीसने, दूध और पनीर बनाने की फैसिलिटी के साथ एक बड़ा प्लांट भी स्थापित किया है. वह सात एकड़ जमीन पर सोयाबीन की खेती करते हैं. सोयाबीन की खेती अप्रैल के अंत या मई की शुरुआत में की जाती है और अक्टूबर में कटाई की जाती है.
48 लाख रुपए से ज्यादा सालाना कमाई
आज, बचित्तर अपने सोयाबीन प्रोसेसिंग प्लांट से अच्छी कमाई कर रहे हैं. आज वह 60 किलोग्राम सोयाबीन को प्रोसेस करके 300 लीटर सोया दूध और 50 से 60 किलोग्राम टोफू/पनीर प्रति घंटे का उत्पादन करने में सक्षम है. उनका सालाना कारोबार 48 लाख रुपये से ज्यादा का है. साथ ही, उन्होंने पंजाब में 16 और उत्तर प्रदेश में तीन सोयाबीन प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करने में मदद की है.
पीएयू और विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के छात्र उनके बिजनेस की स्टडी करने के लिए उनके फार्म पर आते हैं. वह अपने प्लांट में लगभग 20 लोगों को रोजगार देते हैं. बचित्तर को अबतक कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें 2003 में राज्य पुरस्कार और 2004 में चौधरी चरण सिंह राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं. भारतीय सोया उद्योग में उनके योगदान के लिए उन्हें Soil beverage of the year 2023 (Vigour Soya Health) से सम्मानित किया गया था. बचित्तर का लक्ष्य कड़ी मेहनत से अपनी खोई हुई ज़मीन वापस हासिल करना है और स्वस्थ विकल्प चाहने वाले लोगों को शुद्ध सोया दूध उपलब्ध कराना है.