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गरीबी से आत्मनिर्भरता तक का सफर! शुगर फ्री पपीता की खेती से लाखों की कमाई, इस महिला किसान ने दिखाई राह

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की राधा रानी ने राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर अपनी किस्मत बदलने का साहसिक कदम उठाया है. गरीबी से जूझ रही राधा ने परिवार के विरोध के बावजूद दो बीघा खेत में रेड लेडी नाम के विशेष पपीते की खेती शुरू की.

Radha rani Radha rani
हाइलाइट्स
  • परिवार और आर्थिक संकट का संघर्ष

  • महिला कर रही लाखों की कमाई

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी जड़ें गहरे ग्रामीण परिवेश में फैली हुई हैं. यहां खेती-किसानी को आजीविका का मुख्य साधन माना जाता है. हालांकि, बदलते मौसम, आर्थिक तंगी, और पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते किसानों को अक्सर कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इन चुनौतियों के बावजूद, इटावा जिले के कुशगवा गांव की राधा रानी ने अपनी मेहनत और दृढ़ निश्चय से आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिखी.

परिवार और आर्थिक संकट का संघर्ष
राधा रानी का परिवार लंबे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहा था. पारंपरिक खेती से होने वाली आय उनके परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त थी. बढ़ती महंगाई और बच्चों की शिक्षा के खर्च ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया. लेकिन राधा ने हालातों के आगे घुटने टेकने के बजाय कुछ नया करने का फैसला किया. उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (UPSRLM) के तहत स्वयं सहायता समूह का हिस्सा बनने का निर्णय लिया.

राधा बताती हैं, "शुरुआत में मुझे नहीं पता था कि यह मिशन मेरे लिए कितना फायदेमंद होगा, लेकिन समूह की दीदियों ने मुझे प्रोत्साहित किया. मैंने इस मौके को आखिरी उम्मीद मानकर अपनाया."

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रेड लेडी पपीते की खेती
स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के बाद, राधा ने खेती की नई तकनीकों की जानकारी हासिल की. उन्होंने महाराष्ट्र से "रेड लेडी" किस्म के 1,100 पपीते के पौधे मंगवाए. इन पौधों पर 50,000 रुपये की लागत आई, जो उन्होंने समूह की बचत से जुटाए.

हालांकि, शुरुआती चरण में चुनौतियां कम नहीं थीं. मौसम की अनियमितताओं और अन्य कारणों से 400 पौधे खराब हो गए. यह एक बड़ा झटका था, लेकिन राधा ने हिम्मत नहीं हारी. बचे हुए 700 पौधों ने उनकी मेहनत को फल देना शुरू कर दिया.

रेड लेडी पपीते की खासियत
रेड लेडी पपीता अपनी विशिष्ट गुणों के कारण बाजार में बेहद लोकप्रिय है. यह न केवल मीठा और स्वादिष्ट होता है, बल्कि शुगर फ्री होने के कारण डायबिटीज के मरीजों के लिए भी फायदेमंद है. इसकी मांग देशभर के बाजारों में तेजी से बढ़ रही है. राधा बताती हैं, "इस पपीते का एक पौधा 50 किलो से लेकर 1 क्विंटल तक फल देता है. इसका अच्छा दाम मिलने से मेरी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा."

परिवार और समाज से मिला विरोध
राधा की इस पहल को उनके परिवार और समाज से आरंभ में समर्थन नहीं मिला. उनके परिवार ने उन्हें इस जोखिम भरे कदम से पीछे हटने को कहा. "मेरे परिवार के सदस्यों ने मुझसे कहा कि पपीते की खेती से कुछ हासिल नहीं होगा. लेकिन मैंने उनकी बातों को नजरअंदाज किया और अपने फैसले पर अडिग रही."

उनके गांव की कई महिलाओं ने भी राधा के इस प्रयास का मजाक उड़ाया. लेकिन आज वही लोग उनकी मेहनत और सफलता की सराहना करते हैं.

जीवन में आया आर्थिक और सामाजिक बदलाव
पपीते की खेती ने राधा रानी की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया. आज उनके परिवार में तीन बेटे और एक बेटी उनकी खेती में मदद करते हैं. उन्होंने अपनी आय से बच्चों की शिक्षा और परिवार की अन्य जरूरतों को पूरा किया. अब उनका सपना है कि वे अपने खेत के बाकी हिस्सों में भी रेड लेडी पपीते की खेती करें.

राधा कहती हैं, "जब मैंने खेती शुरू की, तो मेरे पास सिर्फ एक सपना था - अपने बच्चों को बेहतर जिंदगी देना. आज मैं यह सपना साकार होते देख रही हूं."

प्रेरणा का स्रोत बनीं राधा रानी
राधा रानी की कहानी न केवल उनके गांव, बल्कि पूरे जिले की महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी है. उनकी मेहनत और सफलता ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है.