भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बुधवार को ऑनलाइन धोखाधड़ी और गैरकानूनी गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए कदम उठाया है. आरबीआई ने डिजिटल लेंडिंग को रेगुलेट करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. सेंट्रल बैंक ने कहा कि लोन वितरण और रीपेमेंट केवल उधारकर्ता और रेगुलेटेड एंटिटी के बैंक अकाउंट के बीच होंगे. इसमें किसी भी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं होगा. इससे ऑनलाइन धोखाधड़ी और फ्रॉड को कम किया जा सकेगा.
क्या है डिजिटल लेंडिंग?
डिजिटल लेंडिंग में वेब प्लेटफॉर्म या मोबाइल ऐप के माध्यम से उधार देना, ऑथेंटिकेशन और क्रेडिट इवैल्यूएशन के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना शामिल है. हालांकि, इसमें बहुत बड़े लेवल पर धोखाधड़ी होती है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक,19 करोड़ से अधिक भारतीय वयस्कों के पास किसी भी प्रकार का बैंक खाता नहीं है. भारत में डिजिटल लेंडिंग बाजार का काफी विस्तार हुआ है. डिजिटल लेंडिंग का मूल्य वित्त वर्ष 2015 में 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2020 में 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया और वित्त वर्ष 23 तक इसके 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.
कैसे बनाया गया है ये नया ढांचा?
आरबीआई ने कहा कि वर्किंग ग्रुप से 'डिजिटल लेंडिंग' पर प्राप्त इनपुट के आधार पर इस नए ढांचे को बनाया गया है. केंद्रीय बैंक ने दिशानिर्देशों में कहा, "सभी ऋण वितरण और रीपेमेंट केवल उधारकर्ता और रेगुलेटेड एंटिटी के बैंक खातों के बीच होगा. इसमें किसी भी पूल अकाउंट, लोन सर्विस प्रोवाइडर या किसी तीसरे पक्ष के किसी भी पासथ्रू का हस्तक्षेप नहीं होगा.”
आरबीआई ने यह भी कहा कि क्रेडिट मध्यस्थता प्रक्रिया में एलएसपी को जो चार्ज या फीस देनी है उसका भुगतान केवल रेगुलेटेड एंटिटी के द्वारा किया जाएगा न की किसी उधारकर्ता द्वारा.
ग्राहकों से जुड़ा डेटा होना चाहिए सुरक्षित
इसके अलावा सेंट्रल बैंक ने यह भी कहा है कि ग्राहक की पर्सनल डिटेल्स या उनसे जुड़े पूरे डेटा की सुरक्षा करना लेंडर की जिम्मेदारी होगी. कोई भी डिजिटल लेंडिंग कंपनी ग्राहकों की निजी जानकारी को खुद स्टोर नहीं करेगी.