अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व (Federal Reserve US) ने ब्याज दर 50 बेसिस प्वाइंट्स घटा दी है. फेडरल रिजर्व ने लंबे समय बाद ब्याज दर में कमी है. कयास लगाए जा रहे हैं कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India) भी रेपो रेट (Repo Rate) में बदलाव कर सकती है.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया हर तीन महीने में मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (RBI MPC) की मीटिंग करता है. अगस्त 2024 में मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक हुई थी. इस मीटिंग में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया. इस समय रेपो रेट 6.5% है. मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की अगली मीटिंग अक्तूबर में होगी.
क्या आपको पता है रेपो रेट का असर सीधा आम लोगों की जिंदगी पर पड़ता है. आइए जानते हैं रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट क्या होती है? इसका लोगों की जेब पर कैसे असर पड़ता है?
क्या है रेपो रेट?
भारत में महंगाई को कम करने के लिए रेपो रेट को बढ़ाया जाता है. वहीं महंगाई जब स्थिर हो तो रेपो रेट को कम किया जाता है. आम आदमी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक से कर्ज लेते हैं. ठीक वैसे ही देश के सभी बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है. जिस दर पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है उसे रेपो रेट कहते हैं.
लोगों की जेब पर असर
आरबीआई रेपो रेट बढ़ाता है तो बैंकों को इंटरेस्ट ज्यादा देना पड़ता है. तब बैंक भी लोन, होम लोन, कार लोन समेत सभी कर्ज की ब्याज दरों को बढ़ा देते है. रेपो रेट का असर ईएमआई पर भी पड़ता है.
बैंक ब्याज दर बढ़ाता है तो आम लोगों को ज्यादा ईएमआई (EMI) भरनी पड़ती है. रेपो रेट बढ़ने पर लोगों की जेब पर तो असर होता ही है. साथ में एफडी पर भी इसका असर पड़ता है. रेपो रेट बढ़ने पर बैंक एफडी की ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी कर देते हैं.
यदि आरबीआई रेपो रेट (RBI Repo Rate) कम करता है तो बैंकों को कम ब्याज दर पर पैसा देना पड़ता है. तब सभी बैंकों की ब्याज दर भी कम हो जाती है. लोगों को बैंक से लोन लेना सस्ता पड़ता है. इससे आम आदमी की जेब पर ज्यादा असर नहीं पड़ता है.
क्या है रिवर्स रेपो रेट?
रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate RBI) के नाम से समझ में आ जाएगा कि ये रेपो रेट से ठीक उल्टा होता है. रिवर्स रेपो रेट आरबीआई की तरफ से मिलने वाला ब्याज है.
बैंकों के पास जो पैसे बचे रहते हैं वो उनको आरबीआई के पास जमा कर देते हैं. इन जमा पैसों पर आरबीआई बैंकों को जिस दर पर ब्याज देती है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं.
रिवर्स रेपो रेट के जरिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया मार्केट में कैश फ्लो को कंट्रोल करता है. अगर बाजार में कैश ज्यादा आ जाता है तो आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देती है.
ज्यादा ब्याज के लिए बैंक अपना पास आरबीआई में जमा कर देते हैं. इसी तरह बाजार में कैश फ्लो बढ़ाने के लिए आरबीआई रिवर्स रेपो रेट कम कर देती है.
आम लोगों पर असर
रिवर्स रेपो रेट का भी लोगों की जेब पर असर पड़ता है. जब रिवर्स रेपो रेट कम होता है. मार्केट में कैश ज्यादा होता है तो महंगाई बढ़ जाती है. ऐसे में लोगों का पैसे ज्यादा खर्च होता है. मार्केट से कैश फ्लो कम करने के लिए आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देती है.
रेपो रेट और शेयर बाजार
रेपो रेट में बदलाव होने पर शेयर मार्केट में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. शेयर बाजार में ट्रेड कर रहे बैंकों के स्टॉक पर भी रेपो रेट का असर पड़ता है. इनमें बढ़ोतरी और गिरावट देखने को मिलती है. रेपो रेट का असर कई कंपनियों के शेयर पर पड़ता है.
बेसिस प्वाइंट क्या है?
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बेसिस प्वाइंट में बदलाव करते हैं. आखिर ये बेसिस प्वाइंट क्या होता है. बेसिस प्वाइंट 1 फीसदी का सौवां हिस्सा होता है. रिजर्व बैंक रेपो रेट में 25 बेसेस प्वाइंट की कमी करते हैं तो इसका मतलब है कि ब्याज दरों में 0.25% की कमी हुई है.