रॉयल एनफील्ड ने बताया है कि पिछले साल अगस्त महीने की तुलना इस साल के अगस्त महीने में Royal Enfield की बिक्री में 53 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. कंपनी ने अपने बयान में कहा अगस्त 2022 में उसके कुल 67,677 दोपहिया वाहनों की बिक्री हुई. इसमें सबसे ज्यादा मांग बुलेट 350cc की रही. रॉयल एनफील्ड के बुलेट की मांग न सिर्फ घरेलू बाजार में बल्कि बाहर के देशों में भी बढ़ी है. क्या आप जानते हैं आज मुनाफे में चल रही ये कंपनी कभी दिवालिया होने की कगार पर थी. एक समय था जब बुलेट की पेरेंट कंपनी इसे बंद करना चाहती थी. चलिए आपको रॉयल एनफील्ड के फर्श से अर्श तक का सफर बताते हैं.
बुलेट का रॉयल सफर
1891 में बॉब वॉकर स्मिथ और अल्बर्ट एडी ने जॉर्ज टाउनसेंड एंड कंपनी ऑफ हंट एंड रेडडिच को खरीदा. उन दिनों यह कंपनी साइकिल का प्रोडक्शन करती थी. 1893 में इस कंपनी का नाम बदलकर एनफील्ड रख दिया गया. इस समय तक कंपनी केवल साइकिल का ही प्रोडक्शन करती थी. 1898 में कंपनी ने अपना पहला मोटर व्हीकल क्वाड्रिसाइकिल डिजाइन किया. इसमें 1य2 hp डी डायोन इंजन का इस्तेमाल किया गया था. 1901 में पहली बार रॉयल एनफील्ड का प्रोडक्शन हुआ. इसमें 1/2 hP का इंजन लगा था. 1909 में कंपनी ने पहली वी-ट्वीन, 297CC मोटोसैकोच इंजन यूज किया. 1930 में कपंनी ने करीब 11 नए मॉडल लॉन्च किए. 1932 में पहली बार बुलेट लॉन्च किया गया. इसे 250 CC, 350 CC और 500 CC के तीन इंजन में लॉन्च किया गया था. वॉकर ने निधन के बाद उनके बेटे फ्रैंक स्मिथ ने 1933 में कंपनी की बागडोर संभाली.
जब भारत में आई रॉयल एनफील्ड
भारतीय सरकार ने 1954 में 350 CC वाली 500 बुलेट आर्मी के लिए ऑर्डर दिया था. यह ऑर्डर रॉयल एनफील्ड के मद्रास मोटर्स को मिला था. उस जमाने में यह बहुत बड़ा ऑर्डर था. इंडिया में 'बुलेट' का सफर यहां से शुरू हुआ. 1956 में बुलेट्स के निर्माण के लिए चेन्नई में फैक्ट्री खुली. 1993 में पहली बार बुलेट में डीजल इंजन दिया गया.
घाटे नें डूबी कंपनी को सिद्धार्थ लाल ने दोबारा खड़ा किया
1970 से 1980 के बीच रॉयल एनफील्ड कंपनी भारी बोझ के तले दब गई. बुलेट बाजार से तकरीबन बाहर ही चली गई. 1994 में द आयशर ग्रुप ने एनफील्ड इंडिया का अधिग्रहण कर लिया. 2000 तक आते-आते आयशर ग्रुप को भी इसमें 20 करोड़ घाटा हुआ. रॉयल एनफील्ड, आयशर मोटर्स लिमिटेड के मालिक विक्रम लाल के बेटे सिद्धार्थ लाल ने कंपनी को इस घाटे से उबारने के लिए दो साल का समय मांगा. सिद्धार्थ ने शहर के 18-35 साल के युवाओं को टारगेट करते हुए साल 2001 में 350 सीसी बुलेट इलेक्ट्रा उतारी. इस यंग मोटरसाइकिल को देखकर देश के युवाओं में इसे खरीदने की होड़ लग गई. इलेक्ट्रा से मिली कामयाबी के बाद 2002 में कंपनी ने थंडरबर्ड लॉन्च की. 2004 में कंपनी ने इलेक्ट्रा एक्सलॉन्च की. ऑटोकार सर्वे में इसे नंबर 1 क्रूजर बताया गया. इसी साल सिद्धार्थ लाल ने आयशर मोटर्स के सीईओ का पद संभाला. इसके बाद से कंपनी लगातार मुनाफे में रही है. भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली बाइक क्लासिक का जन्म नवम्बर 2009 हुआ. 120 साल पहले शुरू हुआ रॉयल एनफील्ड का सफर बिना रुके अब तक जारी है. बुलेट के प्रति लोगों के क्रेज ऐसा है कि रॉयल एनफील्ड का कारोबार 60 देशों में फैला हुआ है.