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RySS Farming Models: प्राकृतिक खेती के स्वदेशी मॉडल अपनाकर रेतीली मिट्टी पर कर डाली खेती, आंध्र का यह किसान कर रहा है मोटी कमाई

चित्तूर के सरस्वतीपुरम गांव में रहने वाला एक किसान प्राकृतिक खेती कर दूसरे किसानों के लिए नजीर बन गया है. वह राज्य सरकार की कंपनी रितु साधिकार संस्था (RySS) की मदद से पिछले पांच सालों से प्राकृतिक खेती की कई तकनीकों को आजमा रहा है.

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हाइलाइट्स
  • RySS की तकनीक अपनाकर पाई सफलता

  • तीन मॉडलों से कर रहे खेती

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले का एक किसान प्राकृतिक खेती कर दूसरे किसानों के लिए नजीर बन गया है. यह किसान न सिर्फ प्राकृतिक खेती की कई किस्मों से अपना घर चला रहा है, बल्कि बल्कि बड़ी संख्या में किसानों को यह तरीका अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है. 

चित्तूर के सरस्वतीपुरम गांव में रहने वाले रामीशेट्टी महेश कुमार एक ग्रैजुएट हैं. वह राज्य सरकार की कंपनी रितु साधिकार संस्था (RySS) की मदद से पिछले पांच सालों से प्राकृतिक खेती की कई तकनीकों को आजमा रहे हैं. उन्होंने एक बोरवेल और चार देसी गायों का इस्तेमाल करके अपनी रेतीली मिट्टी वाली जमीन पर प्राकृतिक खेती की तकनीकों को सफलतापूर्वक लागू किया है. 

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, उनके प्रयासों और परिणामों को पहचानते हुए, RySS ने पांच किसान वैज्ञानिकों के तकनीकी मार्गदर्शन के लिए महेश को सलाहकार बनाया है. वह उन्हें अपने खेतों को बेहतर बनाने के लिए तकनीकी मार्गदर्शन दे रहे हैं. 

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कैसे करते हैं महेश खेती?
महेश ने तीन कृषि मॉडल अपनाए हैं: ए ग्रेड, एटीएम (एनी टाइम मनी), और सूखा रोधी मॉडल. महेश के पास करीब दो एकड़ जमीन है. जनवरी 2024 में, महेश ने 25 सेंट भूमि पर सूखा रोधी मॉडल लागू किया. इसमें उन्होंने नौ सब्जियां और दो तिलहन फसलें (अरंडी और सरसों) लगाईं. छह महीने में उन्होंने 4,700 रुपये का निवेश किया और सब्जियों से 43,000 रुपये कमाए. साथ ही तिलहन से अतिरिक्त आय की उम्मीद थी. RySS द्वारा डिजाइन किया गया यह मॉडल उन इलाकों में किसानों के लिए मददगार है जहां सूखा पड़ता है. 

जून 2023 में, महेश ने निरंतर पैदावार सुनिश्चित करने के लिए रिले बुआई का उपयोग करते हुए 20 सेंट भूमि पर एटीएम मॉडल से खेती शुरू की. पिछले छह महीनों में उन्होंने 9,400 रुपये का निवेश किया और 1,28,950 रुपये कमाए हैं. इस मॉडल के जरिए साल भर में कई फसलों की कटाई होती है और कमाई भी स्थिर होती है.

ए ग्रेड श्रेणी के जरिए महेश ने 1.5 एकड़ में 5-लेयर मॉडल लागू किया. इसमें अलग-अलग परतों में 20 फसलें उगाई गई हैं. जनवरी से जून 2024 तक, उन्होंने 9,000 रुपये का निवेश किया और सब्जियों और लिली के फूलों से 1,58,875 रुपये कमाए. अकेले लिली की फसल से तीन महीने तक हर दिन 3 किलोग्राम उत्पादन हुआ. इससे महेश ने हर रोज 500 रुपये कमाए. 

इस्तेमाल करते हैं प्राकृतिक उर्वरक
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि इस फसल की अगले पांच वर्षों तक पैदावार होने की उम्मीद है. इसके अलावा महेश सूर्य मंडलम मॉडल का पालन करते हैं. 5 से 10 सेंट भूमि पर सब्जियां और पत्तेदार साग की खेती करते हैं. सबसे खास बात यह है कि महेश अपनी इन तकनीकों के लिए सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भर नहीं रहे.

इसके बजाय उन्होंने गाय के गोबर और मूत्र से बने घाना और द्रव्य जीवामृतम और पंचगव्य का इस्तेमाल किया. इसकी मदद से उन्होंने अच्छी फसल भी प्राप्त की. उनकी प्राकृतिक खेती के तरीकों ने कीटों के संक्रमण को प्रभावी ढंग से खत्म कर दिया है. और रासायनिक जोखिम से बचने के लिए वह अक्सर अपने खुद के बीजों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं.

गांव वालों को कर रहे हैं प्रेरित
बात करें मार्केटिंग की तो महेश ग्रामीणों के स्वास्थ्य के लिए रसायन मुक्त उपज को बढ़ावा देने के लिए अपने गांव में टमाटर, बीन्स, बैंगन और मिर्च बेचते हैं. वह 'प्री-मानसून सूखी बुआई' (Pre-Monsoon Dry Sowing) किट के हिस्से के रूप में किसानों को बाजरा (मोती बाजरा), ज्वार (ज्वार), मक्का (मकई), रागी (उंगली बाजरा), अरहर, काले चने, हरे चने और तिल भी बेचते हैं. 

महेश की प्राकृतिक खेती न सिर्फ उनके लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है. उनके खेत भिंडी, तितलियों, ड्रैगनफलीज़, मधुमक्खियों और कई पक्षी प्रजातियों जैसे विभिन्न कीड़ों को आकर्षित करते हैं. प्राकृतिक खेती करने से महेश के स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ, जिससे साथी किसान 'प्राकृतिक' पहल करने के लिए आकर्षित हुए हैं.