

महाराष्ट्र के औरंगाबाद के एक छोटे से गांव के रहने वाले योगेश जब अपने प्रोफेसर चाचा के यहां रहने आए तो उनका सपना था कि वह जेईई (Joint Entrance Exam) की परीक्षा में अच्छे नंबर लाकर आईआईटी (Indian Institute of Technology) में दाखिला लें. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
योगेश को उम्मीद थी कि 300 मार्क्स की परीक्षा में वह 240 नंबर तक तो ले ही आएंगे. लेकिन उन्हें मिले 13 नंबर. एक कागज़ का पर्चा उनके जीवन का फैसला नहीं कर सकता. यह कहा था थॉमस अल्वा एडिसन ने. चरितार्थ किया योगेश राजेंद्र गावंडे ने. जेईई में मिली असफलता के करीब एक दशक बाद गावंडे 'नियो फार्मटेक' नाम की कंपनी के मालिक हैं, जो खेती-किसानी से जुड़ी तकनीकों पर काम करती है.
योगेश का सफर जुगाड़ से तैयार किए गए एक स्प्रे पंप से शुरू हुआ. उन्हें यह बनाने के लिए उनके पिता ने प्रेरित किया था. आज योगेश सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अफ्रीका में भी अपने बिजनेस को फैला रहे हैं. आइए डालते हैं उनकी कहानी पर नज़र.
कॉलेज में शुरू हुआ सफर
योगेश बताते हैं, "जब मैंने स्प्रे पंप का बिजनेस शुरू किया तब मैं कॉलेज में था. दरअसल मेरे चाचा औरंगाबाद शहर में रहते थे. उनकी वजह से मुझे भी पढ़ाई करने के लिए शहर आने का मौका मिला. मैं चाहता था कि इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए आईआईटी जाऊं. मैंने जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी की. मुझे उम्मीद थी कि उस परीक्षा में 240 अंक आ जाएंगे. लेकिन सिर्फ 13 अंक आए. मेरा आईआईटी जाने का सपना वहीं खत्म हो गया."
इस असफलता के बाद योगेश ने औरंगाबाद के ही एक कॉलेज से इंजीनियरिंग पढ़ने का फैसला किया. योगेश यहां आना तो नहीं चाहते थे लेकिन इस कॉलेज ने उनके जीवन के सबसे अहम फैसले में एक बड़ी भूमिका निभाई. योगेश बताते हैं, "फर्स्ट ईयर के दौरान जब मैं गांव गया तो मेरे पिता जी का कहना था कि इंजीनियरिंग पढ़ने का फायदा तब है जब मैं किसानों के लिए कुछ बनाऊं. कुछ ऐसा जो उनके जीवन को आसान करे."
जुगाड़ से तैयार हुआ पहला पंप
योगेश को इसी के बाद महसूस हुआ कि उन्हें स्प्रे पंप जैसी कोई तकनीक तैयार करनी चाहिए. वह बताते हैं कि उस समय तक किसानों के लिए जो भी स्प्रे पंप बनाए गए, उनका वज़न या तो किसानों को अपनी पीठ पर उठाना पड़ता था. या फिर स्प्रे करने वाले ड्रोन की कीमत बहुत ज्यादा थी. योगेश को यहां एक 'गैप' दिखा, जिसे भरने के लिए उन्होंने स्प्रे पंप बनाने का फैसला किया.
योगेश अपने 'जुगाड़' के बारे में बताते हैं, "हमने पॉलिटिकल बैनर्स के पाइप लिए. स्प्रॉकेट और चेन की जरूरत थी. ये सब हमने बाइक के एक गराज से लिया. वह प्रोडक्ट काम करता था लेकिन उसकी लंबाई लगभग 8-9 फीट इसलिए वह घर से बाहर इस्तेमाल नहीं हो सका."
योगेश को जब अपने कॉलेज के एक कॉम्पिटीशन में यह प्रोडक्ट दिखाने का मौका मिला तो उन्होंने इसकी लंबाई छोटी की. इस कॉम्पिटीशन में उन्होंने फर्स्ट प्राइज जीता. इसके बाद वे कई और कॉलेजों में गए और कैश प्राइज भी जीते. हालांकि योगेश के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि यह प्रोडक्ट किसानों के काम आ भी सकेगा या नहीं. और क्या कोई इसके लिए पैसे खर्च करने को तैयार होगा?
पहला पंप बेचने के लिए की जद्दोजहद
योगेश ने बेचने के इरादे से अपना पहला पंप 2016 में तैयार किया. इसके लिए उन्होंने जोड़-तोड़ करके 3800 रुपए का इंतज़ाम किया. उन्होंने अपने गांव के पास वाले हाइवे पर इस प्रोडक्ट को डिसप्ले किया. इसे कई किसानों ने पसंद किया. लेकिन खरीदा किसी ने नहीं. आखिरकार बीड जिले के एक किसान ने 3200 में यह पंप खरीद लिया.
योगेश को अगला ऑर्डर पांच पंप्स का मिला. उन्होंने हर पंप के लिए 4000 रुपए लिए. हालांकि यह बिजनेस मॉडल उनके लिए मुनाफे वाला नहीं था. योगेश बताते हैं कि कॉलेज खत्म होने तक इस बिजनेस में उन्हें 40,000 तक का नुकसान हो चुका था. योगेश पंप तो बना चुके थे लेकिन यह बिजनेस उन्हें मुनाफा नहीं दे रहा था. उनके सामने उनके माता-पिता खड़े थे जो पूछ रहे थे कि वह अब अपने जीवन के साथ क्या करना चाहते हैं.
फिर रखी गई 'नियो फार्मटेक' की नींव
योगेश के माता-पिता ने उन्हें यह काम छोड़ने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने अपने बिजनेस को आखिरी मौका देने का फैसला किया. वह भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट (BYST) नाम के ट्रस्ट के संपर्क में थे. यह ट्रस्ट युवाओं को अपना बिजनेस स्थापित करने के लिए लोन देता है. साथ ही ऐसे मेंटर्स से जोड़ता है जो उन्हें बिजनेस को बड़ा करने के लिए दिशानिर्देश देते हैं.
यहां यशश्री उद्योग समूह के चेयरमैन मिलिंद कंक और विनोदराय इंजीनियरिंग के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील रायथाटा से हुई. कंक ने जहां योगेश के बिजनेस को दिशा दी,वहीं रायथाटा ने आर्थिक रूप से भी उनकी मदद की. योगेश ने इसी समय 'नियो फार्मटेक' को एक कंपनी के तौर पर रजिस्टर किया. योगेश का बिजनेस शुरू होते ही कोविड ने दस्तक दे दी. लेकिन उन्होंने कोरोनाकाल में भी करीब तीन लाख रुपए का बिजनेस किया.
कोविड खत्म होने के बाद नियो फार्मटेक ने तेज़ी पकड़ी. वह बताते हैं, "अगले साल हमने 22 लाख का बिज़नेस किया. साल 2022-23 में हमने 50 लाख रुपए का बिज़नेस किया. यह आंकड़ा 2024-25 में 1.2 करोड़ हुआ. और 2024-25 में हम 2.2 करोड़ का बिजनेस कर चुके हैं."
अब अफ्रीका में भी फैल रहा बिज़नेस
योगेश अब तक 7000 से ज्यादा मशीनें बेच चुके हैं. वह सिर्फ भारत नहीं, बल्कि अफ्रीका में भी हाथ फैला रहे हैं. योगेश कीनया (Kenya) में अपने स्प्रे पंप बेच चुके हैं. अब वह नाइजीरिया, रवांडा के अलावा बांग्लादेश और श्रीलंका में भी किसानों से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं.