scorecardresearch

Senco gold IPO: बीमार पिता की जूलरी शॉप में मदद के लिए छोड़नी पड़ी थी कॉलेज की पढ़ाई, आज 13 राज्यों के 89 शहरों में 127 शोरूम

कोलकाता की ज्वैलरी रिटेलर कंपनी सेनको गोल्ड आज अपना आईपीओ लेकर आ रही है. इसमें निवेशक आगामी गुरुवार यानी छह जुलाई 2023 तक बोली लगा सकते हैं.1990 के दशक में जब सुवंकर सेन के पिता बीमार पड़े तो फैमिली बिजनेस में शामिल होने के लिए उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी.

सेनको गोल्ड एंड डायमंड्स (Senco Gold and Diamonds)के बारे में जिसने भी सुना या इस्तेमाल किया होगा वो इसे बखूबी जानता होगा. यह एक ऐसा ब्रांड है जिसके साथ 50 साल की विरासत, क्राफ्टमैनशिप, मजबूत भरोसा और पारदर्शिता जुड़ी है. यह पूर्वी भारत की सबसे बड़ी ऑर्गेनाइज्ड ज्वेलरी रिटेलर है. यहां तक पहुंचने के लिए शंकर सेन ने एक लंबी यात्रा तय की है.

साल 1990 के दशक की शुरुआत में अपने पिता से विरासत में मिली कोलकाता में केवल तीन आभूषण दुकानों के मालिक से लेकर आज देश भर में लगभग 127 तक शोरूम तक, 62 वर्षीय शंकर सेन ने एक लंबा सफर तय किया. शंकर सेन के पिता काफी बीमार थे और उनकी देखभाल करने के लिए और ज्वेलरी शॉप चलाने के लिए अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. शंकर सेन उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स की पढ़ाई कर रहे थे. 

कंपनी ला रही अपना IPO
सोने और हीरे के गहने बनाने वाली पश्चिम बंगाल की कंपनी सेनको गोल्ड लिमिटेड (Senco Gold Limited) का आईपीओ आज बाजार में आने वाला है. इसमें निवेशक 6 जुलाई 2023 तक बोली लगा सकते हैं. इस कंपनी के 10 रुपये के अंकित मूल्य के एक शेयर का प्राइस बैंड 301 रुपये से 317 रुपये प्रति इक्विटी शेयर तय किया गया है. इसमें निवेशकों को कम से कम 47 शेयरों के लिए बोली लगानी होगी.

क्या करती है कंपनी?
इस ब्रांड के कई सारे कलेक्शन है. पश्चिम बंगाल के कोलकाता में मुख्यालय वाली कंपनी सेनको गोल्ड पांच दशकों से अधिक समय से सोने के गहने की मैन्यूफैक्चरिंग और रिटेलिंग में है. इस कंपनी का रिटेल स्टोर देश भर में फैला हुआ है. स्टोर की संख्या के आधार पर यह भारत के पूर्वी क्षेत्र में सबसे बड़ी संगठित रिटेल ज्वैलरी कंपनी मानी जाती है. कंपनी से मिली सूचना के मुताबिक 31 मार्च, 2023 तक, सेनको के भारत के 13 राज्यों के 89 शहरों और कस्बों में 127 शोरूम चल रहे थे जिसमें से 70 कंपनी संचालित और 57 फ्रेंचाइजी के हैं. इसके कुछ फ्रेंचाइजी शोरूम महानगरों और टियर-I के अलावा अन्य क्षेत्रों में स्थित हैं, जो टियर-2 और टियर-3 स्थानों में अधिक पहुंच प्रदान करते हैं. कंपनी विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से भी उत्पाद बेचती है. यह मुख्य रूप से दुबई, मलेशिया और सिंगापुर में भी अपने आभूषणों का थोक निर्यात करती है. शंकर सेन के साथ उनका बेटा सुवंकर भी इस बिजनेस में 2008 में शामिल हो गया था. सुवंकर ने गाजियाबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (आईएमटी) से बिजनेस मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया है.

बिजनेस के लिए परिवार को छोड़ा
सेन्को गोल्ड एंड डायमंड्स की शुरुआत पूर्वी बंगाल से हुई थी. शंकर के पूर्वजों ने 1938 में ढाका में एक आभूषण व्यवसाय स्थापित किया था, लेकिन 1947 में विभाजन के दौरान उन्हें इसे पीछे छोड़ना पड़ा, जब पूर्वी बंगाल पाकिस्तान का हिस्सा बन गया. रातोंरात, शंकर के पिता और उनके भाई कलकत्ता चले गए. वहां, परिवार खुदरा व्यापार में जाने से पहले सोने की थोक बिक्री में लगा हुआ था. 1950 और 1960 के बीच शहर भर में लगभग 10 स्टोर स्थापित किए गए. हालांकि, 1962 तक, सीमा विवाद पर चीन के साथ युद्ध के कारण, सरकार ने स्वर्ण नियंत्रण अधिनियम लागू करने का निर्णय लिया, जिसने बैंकों द्वारा दिए गए स्वर्ण ऋण को वापस ले लिया और सोने में वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया.

इसके बाद 1968 में, शंकर के पिता अपने दम पर व्यवसाय करने के लिए परिवार से अलग हो गए और इस प्रक्रिया में, उन्हें कोलकाता के बाउबाजार इलाके में एक स्टोर ले लिया. शंकर कहते हैं, "उस समय, यदि आप एक आभूषण स्टोर स्थापित करना चाहते थे, तो आपको केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग से लाइसेंस लेना पड़ता था." अप्लाई करने के तीन साल बाद उन्हें अपना लाइसेंस मिला."

बंगाल से दिल्ली का सफर
शंकर के अनुसार, पिता की गुडविल और जनसंपर्क के कारण सेनको ने 1968 और 1972 के बीच दो और स्टोर खोले. यही उनके पिता की एकमात्र पूंजी थी जो वो अर्जित करने में कामयाब रहे. ये साल 1978 की बात है जब पिता का ख्याल रखने के लिए उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. 1990 में उन्हें बड़ा ब्रेक मिला, जब सरकार ने गोल्ड कंट्रोल एक्ट को रद्द कर दिया और बाजार खोल दिया. 1994 तक, चूंकि परिवार के अन्य सदस्य भी सेनको ब्रांड के तहत अपना सोने का कारोबार चलाते थे, इसलिए शंकर ने सेनको गोल्ड एंड ज्वेलरी प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक अलग पहचान स्थापित की. 

साल 1998 में, जब कंपनी ने 45 कर्मचारियों के साथ तीन स्टोर संचालित किए, तो शंकर को एक फ्रैंचाइज़ी मॉडल का विचार आया. उस समय, केवल टाटा समूह ने ही अपनी आभूषण शाखा तनिष्क के साथ फ्रेंचाइजी ली थी, वह भी बिना ज्यादा सफलता के. शंकर के मॉडल के लिए एकमुश्त शुल्क और आश्वासन की आवश्यकता थी कि दुकानों में सोना विशेष रूप से सेनको गोल्ड से प्राप्त किया जाएगा. कंपनी ने अपना पहला फ्रेंचाइजी स्टोर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में खोला. शंकर कहते हैं, “मेरे ग्राहक आभूषण खरीदने के लिए 100 से 200 किमी के बीच यात्रा कर रहे थे. लॉजिस्टिक्स संबंधी मुद्दों और वित्तीय बाधाओं के कारण फ़्रेंचाइज़िंग ही इसके लिए सही तरीका था और वो काम भी किया.'' लोगों की बढ़ती प्रति व्यक्ति आय और आर्थिक उछाल का लाभ उठाते हुए, सेनको ने और अधिक स्टोर खोलने शुरू कर दिए थे. बंगाल के बाहर इसका पहला स्टोर 2008 में नई दिल्ली में खुला.