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दो दशक से कर रहे थे परंपरागत खेती फिर 4 साल पहले शुरू की प्राकृतिक खेती, अब सालाना कमा रहे हैं 9 से 10 लाख रुपए

शैलेंद्र शर्मा नाम के किसान पिछले 4 साल से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. इससे उन्हें काफी फायदा हो रहा है. इतनी ही नहीं अब वे सालाना करीब 9 से 10 लाख रुपए कमा रहे हैं.

 प्राकृतिक खेती प्राकृतिक खेती
हाइलाइट्स
  • बहुत कम आता है खर्च

  • हिमाचल में काफी किसान अपना रहे हैं प्राकृतिक खेती

पिछले दो दशकों में किसान अपनी खेती के उत्पाद बढ़ाने के चक्कर में रासयनिक खाद, केमिकल, कीटनाशक डालकर ज़हर बेच और खा रहा हैं. ऐसे में सोलन जिले के दयारकबुखार गांव के प्रगतिशील किसान शैलेंद्र शर्मा अब हज़ारों किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं, जिन्होंने नेचुरल यानी की प्राकृतिक खेती करके कम लागत में लाखों रुपए कमा कर किसानों को नई राह और उम्मीद दी है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शैलेंद्र के खेतों में उगी शिमला मिर्च के कायल हो गए थे शैलेंद्र शर्मा के खेतों में उगी शिमला मिर्च की खुद प्रधानमंत्री पिछले साल मंडी में हुए कार्यक्रम में तारीफ कर चुके हैं.

आसान नहीं था सफर

शैलेंद्र शर्मा बताते हैं कि उनकी ये राह भी आसान नहीं थी. वो पिछले दो दशकों से परंपरागत खेती करते जा रहे थे. रासायनिक खाद और केमिकल से उनकी खेतों की मिट्टी की उरर्वरता बिलकुल खराब हो गई थी. उसके अलावा मिट्टी कठोर गई थी. जब शैलेंद्र केमिकल का रासयनिक खाद का छिड़काव करते थे उसकी वजह से उनकी स्किन पर रिएक्शन होना शुरू हो गया जिससे उन्हें एलर्जी गई थी. शैलेंद्र बताते है की जब उन रासयनिक खादों का इतना असर उन पर पड़ रहा है तो फसल और लोगों पर कितना असर पड़ता होगा.  

पिछले चार साल से कर रहे हैं प्राकृतिक खेती 

इस बीच एक बार शैलेंद्र शर्मा सुभाष पालेकर द्वारा आयोजित सेमिनार सुनने चले गए और यहीं से उनके जीवन ने करवट ली. शैलेंद्र पिछले चार सालों से "प्राकृतिक खेती" से जुड़ गए और धीरे धीरे उसके सकारात्मक और अच्छे परिणाम आने लगे. जिससे शैलेंद्र अब हर साल लाखों की आय कमा रहे हैं. शैलेंद्र ने बताया की  पिछले चार सालों में प्राकृतिक खेती अपनाकर जहां वे जहर मुक्त खेती कर रहे हैं. वहीं उनकी आय में भी काफी बढ़ोतरी हो रही हैं. पहले जहां रासायनिक खाद के इस्तेमाल में एक लाख से सवा लाख खर्चा आ जाता था अब प्राकृतिक खेती करने से वे सालाना 9 से 10 लाख रुपए कमा रहे हैं, साथ में खर्चा में भी कटौती हुई है अब उनका सिर्फ 15 से 16 हजार रुपए का खर्च आता है.

बहुत कम आता है खर्चा

शैलेंद्र ने बताया की प्राकृतिक खेती करने के लिए उन्हें सिर्फ गुड़, बेसन और नीम के पत्तों का खर्च आता है. जिसके लिए उन्होंने संसाधन भंडार तैयार किया है जिसमें वो जीवामृत और घनजीवामृत तैयार करते हैं.  ये दोनों सॉलिड और लिक्विड खाद है जिसे शैलेंद्र कम लागत में तैयार करते हैं. शैलेंद्र ने इसके लिए भी देसी जुगाड़ तैयार किया है. जब देसी गांव गौमूत्र और गोबर करती है उसको ड्रम्स में स्टोर किया जाता है. जिसके बाद गौमूत्र, गोबर,  गुड़, बेसन और नीम के पत्तों, मिटटी का मिश्रण तैयार किया जाता है और फिर उसका छिड़काव किया जाता है. ये जीवामृत और घनजीवामृत रेड और येलो कैप्सिकम के लिए एनर्जी बूस्टर का काम करती है जिसके परिणाम आपके सामने हैं.

हिमाचल में काफी किसान अपना रहे हैं प्राकृतिक खेती

शैलेंद्र ने बताया कि हिमाचल में काफी किसान प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं और हिमाचल के अलग अलग जगह से कैसे खेती करनी है वो जानकारी ले रहे हैं. जिससे प्रकृति के साथ सौहार्द तो बनता ही है साथ किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होती है. हिमाचल के कृषि सचिव राकेश कंवर ने बताया की प्राकृतिक खेती की तरफ लगातार प्रदेश के किसानों के साथ जिला सोलन के किसान बागवानों का भी रुझान बढ़ता जा रहा है. प्रदेश की 3615 पंचायतों में 3590 में इस खेती विधि की पहुंच हो चुकी है और इससे अभी तक 1,71,063 किसान जुड़ चुके हैं जिससे प्रदेश की 9388 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती की जा रही है.