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Jamshedji Tata Birth Anniversary: 21 हजार रुपए से शुरू किया था पहला कारोबार, जानिए कैसे जमशेदजी टाटा ने बनाया देश का सबसे बड़ा ब्रांड

टाटा ग्रुप आज पूरी दुनिया में अपने नए आइडियाज और प्रोफेशनलिज्‍म की वजह से जानी जाता है. इस ग्रुप की शुरुआत गुजरात के नवसारी में पैदा होने वाले जमशेदजी टाटा ने की थी. इस ग्रुप की शुरुआत की कहानी अपने आप में दिलचस्‍प है.

जमशेदजी टाटा जमशेदजी टाटा
हाइलाइट्स
  • 21 हजार से शुरू किया था कारोबार

  • सरकार को कर्ज देने वाली कंपनी

टाटा समूह की स्थापना करने वाले जमशेदजी टाटा का आज जन्मदिवस है. टाटा समूह के संस्थापक के अलावा जमशेदजी टाटा की एक और पहचान है, और वो है दुनिया के सबसे दानवीर होने की. हुरुन की रिपोर्ट कहती है- पिछले 100 सालों में दुनिया भर के सबसे बड़े दानदाताओं की लिस्ट में टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी टाटा का नाम पहले नंबर पर है. जमशेदजी ने कुल 7.60 लाख करोड़ रुपए दान किए थे. 

21 हजार से शुरू किया था कारोबार
ये बात शायद ही आप जानते हों पर जमशेदजी ने 1868 ने इंग्लैंड से लौटने के बाद 21 हजार रुपए में एक दिवालिया तेल मिल खरीदी थी. उसके बाद उन्होंने रुई और कपड़े का कारोबार शुरू किया. यहां तक की देश को पहला सुपर लग्जरी-होटल ताज भी इन्होंने ही दिया. ताज होटल के बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है.

और ऐसे आया होटल ताजमहल बनाने का ख्याल
एक बार की बात है जब जमशेदजी ब्रिटेन गए. वहां पर एक होटल में उन्हें एंट्री नहीं मिली, क्योंकि वहां लिखा था, फॉर वाइट्स ओनली. जमशेदजी को ये बात बहुत बुरी लगी, और उनके दिल में घर कर गई. उन्हें ये बात तमाचे जैसी लगी. भारत लौटकर 1903 में उन्होंने होटल ताजमहल खड़ा कर दिया. इस होटल के दरवाजे किसी का रंग और नस्ल नहीं देखते थे. उस वक्त ताजमहल होटल 4 करोड़ 21 लाख रुपयों में बनकर तैयार हुआ था. यह मुंबई की ऐसी पहली इमारत थी, जिसमें बिजली थी, अमेरिकी पंखे और जर्मन लिफ्ट थी.

सरकार को कर्ज देने वाली कंपनी
कारों से लेकर आज स्टील तक के बिजनेस में पकड़ बना चुका टाटा ग्रुप एक वक्त में अफीम का बिजनेस करता था. लेकिन जमशेदजी की कुछ नया करने की जिद ने परिवार को एक ऐसी बिजनेस फैमिली में बदलकर रख दिया, जो आज कई लोगों के लिए आदर्श बन गई है. वक्त के साथ टाटा ग्रुप का सम्मान बढ़ता गया, और वो सरकार को कर्ज देने वाली कंपनी बन गई. गुजरात के नवसारी से आने वाले टाटा परिवार ने मुंबई को बदलकर रख दिया.

18वीं सदी में जमशेदजी के पिता नसरवानजी टाटा नवसारी में ही व्यापार करते थे. जब अंग्रेजों ने मुंबई शहर बसाना शुरू किया तो मुनाफा कमाने के लिए नसरवानजी नवसारी से मुंबई आ गए. अंग्रेजों को बिजनेस करने वाले लोगों की जरूरत थी और नसरवानजी को बिजनेस करने की. इसके चलते नसरवानजी ने मुंबई में ही रहने का मन बना लिया. मगर, जमेशदजी नवसारी में ही अपनी शुरुआती पढ़ाई कर रहे थे.

17 साल की उम्र से शुरू किया कारोबार
नवसारी में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद जमशेदजी 13 साल की उम्र में मुंबई आ गए. 17 साल की उम्र में उन्होंने मुंबई के ‘एलफिंस्टन कॉलेज’ में दाखिला लिया. यहां पर उन्होंने टॉपर के तौर पर डिग्री पूरी की. इसके बाद जमशेदजी पूरी तरह पिता के व्यवसाय में लग गए. जमशेदजी ने शुरुआत में पिता के व्यवसाय में हाथ बटाया लेकिन फिर बाद में अपनी कंपनी शुरू की. जमशेदजी को शुरुआती कारोबार में सफलता नहीं मिली. यहां तक की उस दौर में सबसे फायदे का बिजनेस माने जाने वाले अफीम के बिजनेस में भी वो असफल हो गए थे. इन्होंने इस दौरान काफी देशों का दौरा भी किया.

कॉटन के बिजनेस ने पहुंचाया फायदा
ब्रिटेन में उन्हें कॉटन मिल की क्षमता का अंदाजा हुआ. भारत वापस आने के बाद जमशेदजी ने एक तेल मिल खरीदी और उसे कॉटन मिल में तब्दील कर दिया. जब वो मिल चल गई, तो जमशेदजी ने उसे भारी मुनाफे में बेच दिया. जमशेदजी ने कॉटन के कारोबार की संभावनाओं को पहचान लिया था. इसलिए मिल से मिले पैसों से उन्होंने 1874 में नागपुर में एक कॉटन मिल खोली. उन्होंने इस मिल का नाम बाद में ‘इम्प्रेस्स मिल’ कर दिया. यहां से शुरू हुआ टाटा का सफर फिर कभी नहीं रुका.