तस्वीरों में दिख रही यह 38 वर्ष की वंदना है, पति फैक्ट्री में काम करता है मुश्किल से महीने का गुजारा होता है. बच्चों की पढ़ाई घर का खाना, पीना, बिजली, राशन का खर्च निकाल पाना बहुत मुश्किल पड़ रहा था, लेकिन अब वंदना की आंखों में ये जो चमक और चेहरे पर मुस्कान नजर आ रही है उसका सबसे बड़ा कारण आत्मनिर्भरता है. वे आज ना सिर्फ अपने पति और बच्चों की आर्थिक तौर पर मदद करती हैं बल्कि अब कुछ अपने लिए भी लेना हो तो अपने पति के ऊपर निर्भर नहीं रहना पड़ता है.
ऐसी ही कहानी 30 वर्ष की किरण की है. आर्थिक तंगी के कारण घर का गुजारा चलाना मुश्किल पड़ रहा था. पति ऑटो चलाता है, लेकिन कई बार महीना निकालना भी पति के खर्चे पर बहुत मुश्किल पड़ रहा था. अब इस चेहरे पर जो चमक और मुस्कान है उसका सबसे बड़ा कारण है कि किरण अब न सिर्फ खुद पैसे कमाती है बल्कि आर्थिक तंगी में अपने पति की भी मदद करती है. ये कहानी वंदना, किरण या ममता की नहीं है बल्कि उनके जैसी लगभग 100 महिलाओं की है अब यह सारी महिलाएं पूरी तरह से आत्मनिर्भर हैं.
ऐसे बदल गई महिलाओं की जिंदगी
दरअसल, इन महिलाओं ने बेकार पुराने कपड़े को कबाड़ में फेंकने के बजाए उसके थैले बनाकर बांटने शुरू किए. चंद वर्षो में ये इनका रोजगार अभियान बन गया. कपड़े के बने थैले जहां प्रकृति को प्लास्टिक से निजात दिला रहे हैं वहीं पर महिलाओं को घर पैसे बैठे कमाने का मौका दे रहा है. इन सैकड़ों महिलाओं की तकदीर और तस्वीर बदली रामदरबार में रहने वाली मीना हैं.
ऐसे शुरू हुआ सफर
मीना ने खास बातचीत में बताया कि साल 2018 में समाजसेवा के दौरान स्वयंसेवी समूह डोन बोसको नवजीवन सोसाइटी से मुलाकात हुई. सोसाइटी महिलाओं को निशुल्क सिलाई कढ़ाई का काम सिखा रही थी. उन्होंने सोसाइटी से पहले खुद काम सीखा और उसके बाद कुछ महिलाओं को उसमें जोड़ा. महिलाओं के एक साथ मिलने के बाद पुराने कपड़े के थैले बनाकर उन्होंने इसे बेचना शुरू किया. जब ये किया तो नगर निगम के नेशनल अर्बन लाइवलीहुड मिशन एनयूएलएम ने सहयोग दिया. नगर निगम से सहयोग मिलने के बाद मीना ने रानी लक्ष्मीबाई ग्रुप का निर्माण किया और स्टार्टअप के तौर पर काम करने लगी. मीना खुद आर्थिक सशक्त होने के बाद 50 महिलाओं को भी कमाने का मौका दे रही हैं.
महिलाएं एक साथ करती हैं काम
मीना बताती है कि रानी लक्ष्मीबाई ग्रुप में विभिन्न महिलाएं एक साथ काम करती हैं. कुछ महिलाएं घरों से बेकार कपड़ा फ्री में इकठ्ठा करके लाती हैं, सिलाई करने वाली महिलाएं उसे सिलकर तैयार करती हैं, बेचने के लिए महिलाओं का अलग ग्रुप मार्केटिंग का काम करता है. इसी प्रकार से समय-समय पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में स्टॉल लगाकर उसकी बिक्री भी करती हैं.