जब कभी भी पक्की दोस्ती की बात होती है तो फिल्म शोले के जय विरू की दोस्ती याद आ जाती है. लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं होता कि दोस्ती हमेशा फिल्मी ही हो. कभी कभी ये दोस्ती कारोबारी भी हो सकती है.. यानी सच्चे दोस्त कारोबार करते करते भी बनाए जा सकते हैं. इमामी ग्रुप (Emami Group) के मालिक राधेश्याम अग्रवाल (Radheshyam Agarwal) और राधेश्याम गोयनका (Radheshyam Goenka) की दोस्ती भी कुछ ऐसी ही है. बता दें कि ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी इमामी लिमिटेड (Emami Limited) का प्रबंधन की बागडोर अब जल्द संस्थापकों की अगली पीढ़ी के हवाले होने वाला है. आर एस गोयनका (RS Goenka) और आर एस अग्रवाल (RS Agarwal) ने अपने एग्जीक्यूटिव रोल छोड़ने का फैसला किया है.
अब आरएस गोयनका के बड़े बेटे मोहन गोयनका और आरएस अग्रवाल के छोटे बेटे हर्ष अग्रवाल कंपनी के वाइस-चेयरमैन और प्रबंध निदेशक का पद संभालेंगे. हालांकि, कंपनी के संस्थापक कंपनी के बोर्ड में बने रहेंगे. ऐसे में ये सवाल दिलचस्प है कि दोनों की दोस्ती कब और कैसे हुई थी. तो आईये चलते हैं दोनों की दोस्ती के सफर पर.
कैसे हुई दोनों की दोस्ती
राधेश्याम गोयनका और राधेश्याम अग्रवाल कोलकाता के एक ही स्कूल में पढ़ते थे. राधेश्याम अग्रवाल, राधेश्याम गोयनका से सीनियर थे. दोनों का परिचय एक कॉमन फ्रेंड के जरिए हुआ. अग्रवाल जल्द ही स्कूल के पाठ्यक्रम पर अपने जूनियर को पढ़ाने के लिए रोजाना गोयनका के घर जाने लगे. राधेश्याम गोयनका के पिता वैसे तो काफी अनुशासनप्रिय और गुस्से वाले थे लेकिन राधेश्याम की जोड़ी के लिए उनके दिल में सिर्फ प्यार था.
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जब आरएस अग्रवाल ने अमीरों के बच्चों वाले कॉलेज में लिया दाखिला
1964 में अग्रवाल ने बी कॉम पास करने के बाद चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई की. गोयनका ने एक साल बाद अपना बी कॉम पूरा किया और आगे एम कॉम और एलएलबी करने के लिए बढ़े. गोयनका के नक्शेकदम पर अग्रवाल ने भी फैसला किया कि उन्हें अपने कानूनी कौशल को सुधारने की जरूरत है और उन्होंने भी लॉ करने के लिए गोयनका के साथ उसी कॉलेज में एडमिशन ले लिया. यहां यह जानना दिलचस्प है कि उस वक्त कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज, जहां अग्रवाल ने स्नातक करने के लिए दाखिला लिया था, उसमें अमीरों के कॉन्वेंट में पढ़े-लिखे बच्चे जाते थे.
कॉलेज के दौरान दोनो ने कई कामों में आजमाया हाथ
कॉलेज के दिनों में दोनों कॉलेज स्ट्रीट में सेकेंड हैंड बुकशॉप में घंटों बिताते थे जिसमें कॉस्मेटिक्स के लिए केमिकल फॉर्मूलों वाली किताबें होती थीं. दोनों के दिमाग में ऐसे प्रोडक्ट बनाने का आइडिया था कि, उनके प्रोडक्ट कोलकाता के बड़ा बाजार में हॉट केक्स की तरह बिके. कॉलेज खत्म करने से पहले ही अग्रवाल और गोयनका ने अलग अलग बिजनेस में हाथ आजमाना शुरू कर दिया. उन्होंने इसबगोल और टूथ ब्रश की रीपैकेजिंग से लेकर फेमस जैसोर कॉम्ब्स में ट्रेडिंग और लूडो जैसे बोर्ड गेम्स की मैन्युफैक्चरिंग तक में हाथ आजमाया. हांलाकि दोनो कॉलेज के दिनों में ही ये काम किया करते थे इसलिए बिजी शिड्यूल के बावजूद, दोनों अपने सामान को हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा पर ले जाते, बड़ा बाजार में दुकान से दुकान तक बेचते.
गोयनका के पिता ने दिए 20000 रुपये
दोनो के सपने काफी बड़े थे, और जाहिर है बड़े सपने पूरे करने के लिए बड़ी पूंजी की जरूरत पड़ती है, और दोनो के लिए कॉलेज के दिनो में बड़ी पुंजी जमा करना आसान नहीं था. तब उन दोनों की मदद गोयनका के पिता केशरदेव ने की. केशरदेव गोयनका ने दोनों दोस्तों को 20000 रुपये दिए, उन दिनों यह एक मोटी रकम हुआ करती थी. साथ ही अपने बेटे और उसके दोस्त के बीच 50:50 की साझेदारी की. और केमको केमिकल्स का जन्म हुआ.
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1968 में केमको केमिकल्स की शुरुआत में, कंपनी ने बुलबुल और कांति स्नो, पॉमेड या गरीब आदमी की वैसलीन जैसे सस्ते ब्यूटी प्रोडक्टस की रिपैकेजिंग शुरू की. इसी के आसपास अग्रवाल और गोयनका दोनों ने उषा और सरोज से शादी की और दोनों के कंधे पर नई जिम्मेदारी आ गई. ऐसे में दोोनं को और पैसा कमाने का जज्बा पैदा हुआ. और फिर मौका आया कलकत्ता के तत्कालीन प्रमुख कॉर्पोरेट घराने बिड़ला समूह के लिए काम करने का . 1970 के दशक के मध्य तक गोयनका, केके बिड़ला समूह में आयकर विभाग के प्रमुख बन गए और अग्रवाल आदित्य बिड़ला समूह के उपाध्यक्ष बन गए. साइड में उनका बिजनेस भी चलता रहा.
यूं शुरू हुआ इमामी ब्रांड
इमामी के साथ काम करते हुए दोनों दोस्तों को बड़े ब्रांड के बारे में बढिया अनुभव हो गया. गोयनका और अग्रवाल ने महसूस किया कि अगर उन्हें बड़ी लीग में प्रवेश करना है तो उन्हें उत्पाद लाइन में फर्क लाना होगा, उन दिनों इंपोर्टेड कॉस्मेटिक्स और विदेशी लगने वाले ब्रांड नामों का क्रेज था. तब जमाना लाइसेंस राज का था, लेकिन अच्छे प्रोडक्ट डिमांड में रहते थे. बस दोनो ने इसी का फायदा उठाया , और नौकरी छोड़ दी . इसके बाद दोनो ने 1974 में इमामी ब्रांड लॉन्च किया.
फिर झंडू को अपनाया
इमामी ने झंडू ब्रांड में अपनी रुचि दिखाने के लिए पहले ही खुले बाजार के जरिए 3.9 प्रतिशत की हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया था. बाद में और 24 फीसदी हिस्सेदारी का अधिग्रहण सितंबर 2007 से लेकर मई 2008 के बीच पूरी हुई. इसके लिए इमामी ने 130 करोड़ रुपये का भुगतान किया. यह हिस्सेदारी इमामी ने देव कुमार वैद्य और अनीता वैद्य से खरीदी थी, जिनके ग्रेट ग्रैंडफादर जगतराम वैद्य ने 1920 में झंडू की शुरुआत की थी.
आज इतना बड़ा है इमामी ग्रुप का कारोबार
अभी इमामी ग्रुप का कारोबार 60 से ज्यादा देशों में फैला हुआ है. 130 से ज्यादा इमामी प्रॉडक्ट हर सेकंड बिकते हैं. इमामी लिमिटेड, जो ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी है, उसका टर्नओवर वित्त वर्ष 2020-21 में 2881 करोड़ रुपये दर्ज किया गया.