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Success Story: 1300 साल पुरानी आर्ट को पहचान दे रही है यह उद्यमी, निर्मला सीतारमण ने भी पहनी हैं इनकी साड़ी

ArtiKrafts Success Story: यह कहानी है कर्नाटक की आरती हिरेमठ की, जो पिछले तीन दशकों से 'कसुती' कला को सहेज रही हैं और साथ ही, बहुत सी महिलाओं को रोजगार दे रही हैं.

Nirmala Sitharaman wore Artikrafts' saree on budget day Nirmala Sitharaman wore Artikrafts' saree on budget day
हाइलाइट्स
  • मां से जुड़ी थीं कसुती कला की यादें 

  • साल 2003 में शुरू की अपनी कंपनी 

फरवरी 2023 में जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया तो बजट के साथ-साथ एक और बात की चर्चा हुई. यह चर्चा थी निर्मला सीतारमण की साड़ी के बारे में. जी हां, बजट पेश करते समय वित्त मंत्री ने जो साड़ी पहनी हुई थी वह बहुत खास थी. क्योंकि यह कर्नाटक की 1300 साल पुरानी हस्तशिल्प कला से बनी 'कसुती' साड़ी थी. आपको बता दें कि कर्नाटक की कसुती कला को GI (जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग) मिला हुआ है. 

सबसे दिलचस्प बात है कि यह साड़ी कर्नाटक के धारवाड़ में स्थित कंपनी, 'आरतीक्राफ्ट्स' (ArtiKrafts) की बनी साड़ी थी. और आरतीक्राफ्ट्स को सामान्य कंपनी नहीं है बल्कि यह एक महिला की कोशिश है अपनी कला को सहेजने की और महिलाओं को सशक्त बनाने की. यह कहानी है 'आरतीक्राफ्ट्स' की फाउंडर, आरती हिरेमठ की. 

मां से जुड़ी थीं कसुती कला की यादें 
योर स्टोरी से बात करते हुए आरती ने बताया कि साल 1989 में उनकी शादी हुई थी और वह बेंगलुरु से धारवाड़ शिफ्ट हो गई थीं. हालांकि, उनकी जड़ें धारवाड़ से ही जुड़ी हुई थीं. शादी के बाद एक दिन कुछ महिलाएं उनके घर आईं और उन्होंने बताया कि वे धारवाड़ के कसुती प्रशिक्षण केंद्र से हैं, जहां आरती की मां उनसे ये साड़ियां बनवाती थीं. लेकिन अब यह कला लुप्त होने लगी हा और इसलिए उन्हें सही रोजगार नहीं मिल पा रहा है. 

ये औरतें आरती से मदद मांगने आई थीं ताकि वे उन्हें राजगार से जोड़ सकें. आरती ने भी इस कला को सहेजने और इन महिलाओं की मदद करने की ठानी क्योंकि इनका संबंध उनकी मां से था. आरती ने इन महिलाओं को बेंगलुरु की कुछ दुकानों से जोड़कर उनकी मदद करने का फैसला किया, जहां से उन्हें नियमित ऑर्डर मिल सकते थे. 

साल 2003 में शुरू की अपनी कंपनी 
साल 2000 तक आरती इन महिलाओं का मदद कर रही थीं. लेकिन फिर उन्होंने अपना बिजनेस करने का विचार किया. उनका कहना था कि इस समय तक उनके बच्चे बड़े हो गए थे और खुद को संभालने लगे थे. इसलिए उन्हें लगा कि अब वह अपने सपने को पूरा करने के लिए वक्त निकाल सकती हैं. 

उन्होंने छोटी शुरुआत की और इन कारीगरों के काम को अपने पड़ोसियों और हाई-प्रोफाइल प्रदर्शनियों में दिखाना शुरू किया. उन्हें अच्छी प्रतिक्रिया मिली तो आरती ने प्रोडक्ट रेंज को बढ़ाने पर ध्यान दिया. अब वह साड़ियों के अलावा, पुरुषों और बच्चों के कपड़ों के साथ-साथ बैग, घर की सजावट के उत्पाद आदि भी बनाते हैं. साल 2003 में आरती ने अपनी कंपनी को रजिस्टर किया था. 

महिलाओं को देती हैं मुफ्त ट्रेनिंग 
आरती ने अपने मीडिया इंटरव्यूज में बताया है कि अपने इस वेंचर को सफल बनाने की उनकी राह बिल्कुल आसान नहीं थी. सबसे पहले कारीगरों को कसुती कला सिखाना मश्किल था. क्योंकि यह कला थोड़ी मुश्किल है और इसे सीखने के बाद भी इसमें मास्टरी करने के लिए बहुत ज्यादा प्रैक्टिस चाहिए. लेकिन आरती ने हार नहीं मानी. वर्तमान में, वह 800 से ज्यादा महिलाओं को ट्रेनिंग दे चुकी हैं. इसनें से 200 महिलाएं उनके साथ काम कर रही हैं. 

आरतीक्राफ्टस ग्रामीण और जरूरतमंद महिलाओं को कसुती कला पर एक हफ्ते की फ्री-ट्रेनिंग देता है. इसके बाद, महिलाओं को पहले बैग, कुशन कवर आदि बनाने का काम दिया जाता है और जब वे इसमें एकदम कुशल हो जाती हैं तब उन्हें साड़ियां बनाने का काम मिलता है. आरती ने योर स्टोरी को बताया कि वह सिर्फ उन्हीं महिलाओं को ट्रेनिंग देती हैं जो ट्रेनिंग के बाद काम करना चाहती हैं. वह इन महिलाओं को रेगुलर काम भी दे रही हैं. 

सोशल मीडिया ने की मदद 
आरती के काम से प्रभावित होकर जिला प्रशासन ने भी हमेशा उनकी सराहना की और उनके काम को आगे बढ़ाने में मदद कीय यह उनकी कला की ही गूंज थी कि साल 2011 में  निफ्ट के छात्रों का एक समूह उनके पास आया. उन छात्रों ने उन्हें अपना फेसबुक पेज शुरू करने की सलाह दी और उनकी मदद भी की. इसका बाद उनकी जिंदगी बदल गई. क्योंकि फेसबुक पर बहुत से लोग उन्हें साड़ियों के लिए संपर्क करने लगे. 

इससे उनका काम काफी ज्यादा बढ़ा. आज आरतीक्राफ्ट्स के कारीगर काम की मात्रा के आधार पर हर महीने 5,000 रुपये से 15,000 रुपये के बीच कमाते हैं. योर स्टोरी के मुताबिक, अब उनका सालाना टर्नओवर लगभग 40 लाख रुपए तक हो रहा है. हालांकि, आरती को इस बात की ज्यादा संतुष्टि है कि वह बरसों पुरानी इस हस्तशिल्प कला को सहेजकर आगे बढ़ा पा रही हैं.