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Success Story: पिता ने बेची सब्जी, विदेश में सीखा हुनर... सेकंड हैंड मोबाइल का कारोबार करने वाले Zobox के फाउंडर नीरज चोपड़ा की कहानी

Businessman Niraj Chopra Story: बिजनेसमैन नीरज चोपड़ा ने साल 2020 में एक स्टार्टअप Zobox शुरू किया. इस कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ रुपए है. ये कंपनी पुराने मोबाइल फोन को रीफर्बिश करके बेचती है. ये नए मोबाइल की तुलना में 40-50 फीसदी सस्ते होते हैं.

नीरज चोपड़ा ने पुराने मोबाइल फोन से 50 करोड़ का बिजनेस खड़ा किया नीरज चोपड़ा ने पुराने मोबाइल फोन से 50 करोड़ का बिजनेस खड़ा किया

एक ऐसा शख्स, जिसके दादा को पाकिस्तान में घर, जमीन, जानवर छोड़कर हिंदुस्तान आना पड़ा था. पेट पालने के लिए मजदूरी करनी पड़ी. इस शख्स के पिता को बचपन में परिवार चलाने के लिए सब्जी बेचनी पड़ी. लेकिन जब परिवार की आर्थिक हालत ठीक हुई तो ये शख्स हांगकांग में पिता के साथ एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का बिजनेस करने लगा. लेकिन अचानक एक दिन सबकुछ बंद करके स्वदेश लौटना पड़ा. फिर एक बार परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था. लेकिन इस शख्स ने हिम्मत नहीं हारी. साल 2020 में कोरोना काल में इस शख्स ने एक कंपनी Zobox की शुरुआत की. इसके बाद इस शख्स की किस्मत चमकी और आज इस कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ रुपए है. इस बिजनेसमैन का नाम नीरज चोपड़ा है, जो पुराने मोबाइल फोन को रीफर्बिश करके बेचते हैं.

क्या है Zobox का कारोबार-
भारत में सेकंड हैंड फोन का भी बड़ा बाजार है. देश में पुराने मोबाइल फोन के रिपेयर करके बेचने का बिजनेस भी खूब चल रहा है. इस कारोबार के बढ़ते मार्केट को देखकर दिल्ली के नीरज चोपड़ा ने कोरोना काल में एक स्टार्टअप Zobox शुरू किया था. ये कंपनी पुराने मोबाइल फोन को रिपेयर करके दोबारा इस्तेमाल करने लायक बनाती है. इस कंपनी का कारोबार देशभर में चलता है. ये मोबाइल फोन नए मोबाइल फोन के मुकाबले 40-50 फीसदी सस्ते होते हैं.
Zobox कंपनी की दिल्ली, नोएडा और हैदराबाद में यूनिट है. कंपनी का टर्नओवर सालाना 50 करोड़ रुपए से अधिक का है. दर्जनों स्टाफ कंपनी में काम करते हैं.

पाकिस्तान से आया था चोपड़ा परिवार-
नीरज चोपड़ा के दादा को विभाजन के दौरान पाकिस्तान से भारत आना पड़ा. पाकिस्तान में उनके पास गाड़ी, घर, जमीन, मवेशी सबकुछ था. जिंदगी आसानी से कट रही थी. लेकिन बंटवारे ने सबकुछ तबाह कर दिया. परिवार को सबकुछ छोड़कर भारत आना पड़ा. नीरज के पिता 8 भाई-बहन थे. उनकी परवरिश के लिए दादा ने मजदूरी करना शुरू किया. नीरज के पिता भी परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए सब्जी बेचते थे.

विदेश में सीखा हुनर, अचानक लौटना पड़ा वापस-
लेकिन धीरे-धीरे परिवार की आर्थिक हालत सुधरने लगी. नीरज चोपड़ा के पिता हांगकांग में एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का बिजनेस करने लगे. नीरज भी जब 18 साल के हुए तो साल 2000 में हांगकांग चले गए. उन्होंने हांगकांग में पढ़ाई भी की और पिता के बिजनेस में साथ भी दिया. नीरज चोपड़ा ने 12 साल तक एक्सपोर्ट का बिजनेस किया. सबकुछ ठीक चल रहा है. लेकिन अचानक साल 2012 में एक दिन नीरज चोपड़ा को सबकुछ बंद करके वापस देश लौटना पड़ा. दरअसल उनके चाचा का निधन हो गया था. जिसके बाद उनको एक रात में सबकुछ बंद करके वापस लौटना पड़ा.

संघर्ष के बाद शुरू की कंपनी-
जब नीरज चोपड़ा भारत लौटे तो देखा कि पावर बैंक की डिमांड खूब बढ़ रही है. लेकिन इंडिया में इसका प्रोडक्शन शुरू नहीं हुआ था. इसके बाद नीरज ने पावर बैंक को इंपोर्ट कर इंडिया में बेचना शुरू किया. 5 साल तक नीरज ने इस कारोबार में हाथ आजमाया. इस दौरान नीरज को पता चला कि पुराने गैजेट्स की डिमांड बढ़ रही है. पावर बैंक का कारोबार ठीक-ठाक चल रहा था. लेकिन नोटबंदी और कोरोना की वजह से कारोबार ठप हो गया. इसके बाद नीरज ने पुराने मोबाइल को रिपेयर करने का कारोबार शुरू किया, जो चल निकला.

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