कहते हैं कि परिवर्तन संसार का नियम है और समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है. यह बात इंसान की आर्थिक स्थिति पर भी लागू होती है. अगर गरीब तबके के लोग सही दिशा में मेहनत करें और उन्हें लोगों का साथ मिले तो वे अपनी तकदीर बदल सकते हैं. और भारत की उद्यमी ज्योति रेड्डी इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है. ज्योति ने कभी हार नहीं मानी और अपनी कहानी खुद लिखी और हम सबके लिए एक मिसाल बन गईं.
तेलंगाना के वारंगल में कभी हर दिन 5 रुपये कमाने वाली महिला आज कई मिलियन डॉलर की आईटी कंपनी की मालकिन है. ज्योति के लिए ये सफर इतना आसान नहीं था. हर दिन खाने के लिए संघर्ष करना और अत्यधिक गरीबी को हराकर यह मुकाम हासिल करना उनके साहस और जज्बे को बयां करता है.
अनाथ आश्रम में पली-बढ़ी ज्योति
1970 में वारंगल के एक बेहद गरीब परिवार में जन्मी ज्योति रेड्डी पांच भाई-बहनों में से दूसरी संतान हैं. 9 साल की उम्र में ज्योति के पिता वेंकट रेड्डी ने उन्हें और उनकी छोटी बहन को अर्ध अनाथालय में छोड़ दिया. वेंकट को ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्होंने उसने सोचा कि कम से कम उसकी बेटियों को तो अच्छा खाना मिलेगा.
लेकिन ज्योति की छोटी बहन बीमार पड़ गई और जल्द ही घर वापस चली गई. पर ज्योति को अनाथ आश्रम में रहना पड़ा. अनाथालय का जीवन उनके लिए बहुत कठिन था. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि, "वहां न तो कोई नल था और न ही कोई उचित बाथरूम. कुएं से सिर्फ एक बाल्टी पानी लाने के इंतजार में घंटों खड़े रहना पड़ता था.
करती थीं दिहाड़ी मजदूरी
ज्योति ने सिलाई सीखी, इसके अलावा, ज्योति अपने अनाथालय के अधीक्षक के साथ घरेलू काम भी करती थी. अनाथालय में अपने समय के दौरान उन्होंने एक अच्छी नौकरी के महत्व को समझा. उन्होंने 10वीं कक्षा पास की लेकिन अत्यधिक गरीबी के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बंद करनी पड़ी.
महज 16 साल की उम्र में ज्योति की शादी एक किसान सामी रेड्डी से हुई, जो उनसे 10 साल बड़े थे. उनके पास केवल आधा एकड़ ज़मीन थी, इसलिए ज्योति को खेतों में काम करना पड़ा. उन्हें 10 घंटे की मजदूरी के 5 रुपये मिलते थे. दो बेटियों के होने और संयुक्त परिवार में गरीबी में रहने के कारण वह पूरे दिन काम करती थी और फिर घर का काम करने के लिए घर आ जाती थी.
ज्योति ने केंद्र सरकार की योजना नेहरू युवा केंद्र में स्वेच्छा से काम किया. स्वयंसेवक बनने के बाद ज्योति ने यहां पढ़ाना शुरू किया. हालांकि, वह पढ़ाने से जो पैसा कमाती थी वह पर्याप्त नहीं था, इसलिए अधिक पैसे कमाने के लिए वह रात में सिलाई का काम करती थी. इसके बाद ज्योति ने आगे पढ़ाई करने के बारे में सोचा और डॉ. बीआर अंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी से बीए किया.
इसके बाद 1994 में उन्होंने 398 रुपये प्रति माह वेतन पर एक स्कूल में विशेष शिक्षिका के रूप में काम किया. दिलचस्प बात यह थी कि वह काम पर पहुंचने के लिए प्रतिदिन 2 घंटे का सफर तय करती थीं. इस समय का उपयोग करते हुए, उन्होंने रास्ते में अपने सहयात्रियों को साड़ियां बेचना शुरू कर दिया और प्रत्येक साड़ी से उन्हें 20 रुपये का मुनाफा मिलता था. इससे उन्हें समय का मूल्य भी समझ में आया.
आखिरकार, 1995 में ज्योति को एक नियमित नौकरी मिल गई और उन्होंने मंडल बालिका विकास अधिकारी के रूप में काम किया और स्कूलों का निरीक्षण किया. इस अवधि के दौरान, उन्होंने 1997 में स्नातकोत्तर की डिग्री भी प्राप्त की.
...अमेरिका की यात्रा
साल 1998 में ज्योति की कजिन अमेरिका आई और ज्योति को हौसला दिया कि उसके जैसी महिलाएं आसानी से वहां रह सकती हैं. तभी से ज्योति ने अमेरिका जाने के लिए बचत करना शुरू कर दिया. इसके लिए उन्होंने अन्य शिक्षकों के साथ मिलकर एक फंड शुरू किया. इसके जरिए वह 25,000 तक की कमाई करने में कामयाब रहीं. इस दौरान वह वीसीएल कंप्यूटर्स से कंप्यूटर सॉफ्टवेयर सीखने के लिए रोजाना हैदराबाद जाने लगीं. उनके पति ने उन्हें मना किया, लेकिन ज्योति दृढ़ थी.
अपने पति की अस्वीकृति के बावजूद, वह अपने बच्चों के साथ मैलारन गांव से बाहर चली गई और हनमकोंडा शहर में रहने लगीं. उन्होंने एक टाइपिंग इंस्टीट्यूट ज्वाइन किया, क्राफ्ट कोर्स किया और 1 रुपये प्रति पीस के हिसाब से पेटीकोट सिलकर रोजाना 20-25 रुपये कमाए. उन्हें जनशिक्षा निलयम में लाइब्रेरियन की नौकरी भी मिल गई और वह एक ओपन स्कूल में शामिल हो गईं.
ज्योति ने लगातार मेहनत करके 2001 में अपना पासपोर्ट और वीजा बनवाया और अमेरिका चली गईं जहां वह अपने रिश्तेदार के साथ रहीं और फिर उन्होंने 12 घंटे की नौकरी की, जिसमें उन्हें 60 डॉलर का वेतन मिलता था. उन्होंने बच्चों की आया, गैस ऑपरेटर और सेल्स गर्ल के रूप में कई छोटी नौकरियां भी कीं ताकि वह अमेरिका में रहने का खर्च उठा सकें. इसके बाद उन्हें सीएस अमेरिका नाम की कंपनी में पहली ऑफिस जॉब मिली.
अपनी खुद की कंपनी शुरू की
लगभग डेढ़ साल तक संघर्ष करने के बाद, ज्योति 2001 में अपनी बेटियों से मिलने के लिए भारत वापस आईं. उस दौरान एक मंदिर जाते समय ज्योति की मुलाकात एक पुजारी से हुई, जिसने उसे बताया कि वह एक व्यवसाय करेगी. यह बात उनके मन में बैठ गई और जल्द ही उन्होंने एक कंसल्टेंसी कंपनी शुरू की, जो अमेरिका के लिए पेपर वर्क वीजा जैसी जरूरतों का ख्याल रखेगी. 2001 में उन्होंने अपनी बचत से फीनिक्स में Key Software Solutions की स्थापना की.
उनकी कंपनी ने भर्ती और सॉफ्टवेयर सोल्यूशंस भी विकसित किए. जल्द ही उन्होंने अपने कजिन को अपना पार्टनर बना लिया. कंपनी चलने के बाद उनकी बेटियां भी अमेरिका आ गईं. फिलहाल उनकी कंपनी का टर्नओवर 15 मिलियन डॉलर से ज्यादा है. उनकी कंपनी में 100 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं. उनके पास अमेरिका में चार घर और हैदराबाद में एक बंगला है. ज्योति की कहानी हम सबके लिए एक मिसाल है.