उत्तर प्रदेश के भदोही और मिर्जापुर के 900 बुनकरों ने नई दिल्ली में नए संसद भवन कके लिए कालीन तैयार किए हैं. इन्हें बनाने के लिए कुल 10,00,000 घंटे खर्च किए गए हैं. हाथ से बुने गलीचे या कालीन बनाने वाली कंपनी ओबीटी के बुनकरों ने लोकसभा के लिए कुल 158 और राज्यसभा के लिए 156 कालीन तैयार किए, जिन्हें बाद में साथ में सिलकर बड़ा कार्पेट बनाया गया.
बुनकरों ने नए संसद भवन के लिए कालीन बनाने के लिए हाथ से गांठ लगाने की प्राचीन कला का उपयोग किया, जिसमें कालीन बनाने के लिए प्रति वर्ग इंच 120 गांठें बुनी गईं हैं और इसमें कुल मिलाकर 600 मिलियन से ज्यादा गांठें हैं.
लोकसभा के कालीनों पर मोर के रूपांकन हैं, जो देश के राष्ट्रीय पक्षी का प्रतीक है, तो वहीं, राज्य सभा के कालीन, कोकम लाल रंग से प्रेरित हैं और कमल का प्रदर्शन करते हैं, जो राष्ट्रीय फूल है. ओबीटी कार्पेट के अध्यक्ष रुद्र चटर्जी ने कहा कि नए संसद भवन के लिए कालीन बनाने में उन्हें डेढ़ साल से अधिक का समय लगा.
1920 में शुरू हुई थी कंपनी
लगभग 102 साल पहले, गंगा के तट पर, तीन ब्रिटिशर्स ने एक छोटा, कालीन बनाने का उद्यम शुरू किया था. साल 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद, इस बिजनेस की शुरूआत हुआ क्योंकि विदेशों में कालीन की मांग बढ़ने लगी थी. एफएच ओकले, एफएच बोडेन और जेएएल टेलर ने मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में बेहतरीन स्थानीय कारीगरों को इकट्ठा किया और कालीनों का निर्माण शुरू किया. उनका व्यवसाय ओकले बोडेन एंड टेलर के रूप में शुरू किया गया था, और उन्होंने अपना ब्रांड नाम ओबीटी को संस्थापकों के पहले अक्षरों (ओबीटी) को मिलाकर रखा. साल 1998 में लक्ष्मी समूह ने ओबीटी का अधिग्रहण कर लिया.
इन 100 सालों में ओबीटी ब्रांड भारत के सबसे बड़े हस्तनिर्मित कालीन और गलीचा निर्माताओं में से एक के रूप में उभरी. गोपीगंज, उत्तर प्रदेश में उनकी प्राइमरी फैक्ट्री में 1,100 कर्मचारी हैं, और ब्रांड 20,000 कारीगरों के साथ काम करता है जो हाथ से बुनाई करके गलीचे बनाते हैं. कंपनी हैंडमेड गलीचे और कालीन बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी कंपनियों में से एक है.
कंपनी 30,000 से अधिक कालीन बुनकरों को रोजगार दे रही है - इनमें से कई उत्तर प्रदेश (यूपी) भदोही और मिर्जापुर जिलों के 900 गांवों से पांचवीं और छठी पीढ़ी के बुनकर हैं जो अपने खुद के करघे या घरों से काम करते हैं. फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी का 90 प्रतिशत राजस्व अमेरिका में खुदरा विक्रेताओं और उद्यम ग्राहकों से आता है, ओबीटी का एक कार्यालय न्यूयॉर्क में है.
राष्ट्रपति भवन के लिए भी बनाए कालीन
देश के राष्ट्रीय भवनों के साथ कंपनी का इतिहास पुराना है. बताया जाता है कि साल 1920 में जब कंपनी शुरू हुई, उस समय के आसपास ही राष्ट्रपति भवन बनाया गया और यहां पर भी ओबीटी के बनाए दो कालीन मौजूद हैं. जिनमें से एक बड़ा कालीन है जो 452 वर्ग मीटर का है और इसमें 100 मिलियन गांठें हैं. कंपनी के कालीन आपको जोधपुर के उमेद भवन की रेजिडेंशियल विंग में भी मिल जाएंगे.
बात अगर उनके बनाए कालीन की करें तो आपको इसमें फ्लैटवॉवन, टफ्टेड और नॉटेड कारपेट, धुरियां और फ्लोर कवरिंग की रेंज में कालीन मिलते हैं और इनकी कीमत 200 रुपये प्रति वर्ग फीट से लेकर 11,000 रुपये प्रति वर्ग फीट तक है. कंपनी के एमडी रुद्र चैटर्जी ने फोर्ब्स को बताया कि उन्होंने कंपनी के 100 साल पूरे होने पर भारत के विभिन्न हिस्सों से हमारी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले डिजाइनों की शुरुआत की: वे खुद बंगाल से हैं, उनके बुनकर यूपी और राजस्थान से हैं, और उनकी ऊन अमृतसर से आती है.
साल 2016 के बाद से, कंपनी ने 'प्राउड टू बी इंडिया' नामक एक अभियान शुरू किया, जिसने भारत की समृद्ध डिजाइन परंपराओं को प्रदर्शित किया और राघवेंद्र राठौर, अब्राहम और ठाकोर, जेजे वालया, अंजू मोदी और तरुण तहिलियानी जैसे कुछ सबसे बड़े भारतीय डिजाइनरों को शामिल किया. ओबीटी ने कुछ एनजीओ जैसे प्रथम के साथ भी काम किया है जो बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है, और उन्होंने एमआईटी की पॉवर्टी एक्शन लैब के साथ काम किया है, जो महिलाओं को कालीन बुनाई में प्रशिक्षित करता है. और अब उन्होंने नए संसद भवन के लिए कालीन बनाकर एक बार फिर इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा लिया है.