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India’s Fevicol Man: वकालत छोड़ी, चपरासी का काम किया और फिर बना दी करोड़ों की कंपनी, जानिए Pidilite की सफलता की कहानी

Pidilite Success Story: यह कहानी है एडहेसिव प्रोडक्ट्स के मामले में देश की लीडिंग कंपनी पिडिलाइट और इसकी स्थापना करने वाले बलवंतराय पारेख की, जिन्हें आज दुनियाभर में Fevicol Man of India कहा जाता है.

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हाइलाइट्स
  • पिता चाहते थे वकील बनें बलवंत 

  • जर्मन फर्म के साथ किया काम 

भारत के हर एक घर में फेविकोल का डिब्बा मिलना आम बात है. बच्चों के स्टेशनरी से लेकर फर्नीचर के काम तक, फेविकोल का बहुत व्यापक उपयोग है. इसलिए यह भारतीयों के लिए रोजमर्रा की जरूरत है. फेविकोल, साल 1959 में शुरू हुई कंपनी, Pidilite का प्रोडक्ट है. आज हम आपको बता रहे हैं इस कंपनी और कंपनी को खड़ा करने वाले बलवंत राय कल्याणजी पारेख की कहानी, जिन्हें Fevicol Man of India कहा जाता है. 

पिता चाहते थे वकील बनें बलवंत 
बलवंतराय कल्याणजी पारेख का जन्म गुजरात के भावनगर जिले में एक जैन घराने में हुआ था. उनके पिता चाहते थे कि वह वकील बने. इसलिए बलवंत ने अपने दादा की तरह मजिस्ट्रेट बनने के लिए उनके नक्शेकदम पर चलते हुए मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दाखिला लिया.

यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का वह दौर था जब देश के कई युवाओं की तरह, बलवंत भी बापू से प्रेरित थे. अपने माता-पिता की असहमति के बावजूद, भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के लिए उन्होंने लॉ स्कूल छोड़ दिया. हालांकि, सामाजिक आंदोलनों में हिस्सा लेने के बाद, बलवंत ने कानून की शिक्षा फिर से शुरू की और पूरी भी की. हालांकि, वह बार काउंसिल के सदस्य नहीं बने क्योंकि वकील होने के कारण कई बार झूठ बोलने पड़ते थे और यही बात उनकी अंतरात्मा को रास नहीं आई. 

चपरासी का भी किया काम 
इसके बाद तलाश शुरू हुई उस मुकाम की जो उन्हें अपनी जिंदगी में हासिल करना था. उन्होंने कानून की पढ़ाई की, लेकिन दिल से वह एक व्यवसायी थे. लेकिन वह बिना सोचे-समझे बिजनेस शुरू नहीं कर सके. वह पहले बिजनेस के गुर सीखना चाहते थे और इस सफर में बलवंत अपने सामने आए किसी भी काम से पीछे नहीं हटे. उन्होंने एक रंगाई और छपाई कंपनी में काम किया जिसके बाद उन्होंने कुछ समय एक लकड़ी व्यापारी के ऑफिस में चपरासी के रूप में काम किया. 

बलवंत का मानना ​​था कि व्यक्ति के लिए कोई भी कार्य छोटा नहीं होता है. अपने छोटे-बड़े कामों के दौरान उन्होंने लोगों से अच्छे संबंध बनाए. उनकी मुलाकात डाई व्यापारी मोहनभाई से हुई, जिन्होंने जर्मनी, इटली और इंग्लैंड जैसे पश्चिमी देशों से साइकिल, सुपारी और कागज-आधारित रंगों के आयात के लिए उनके व्यवसाय में निवेश किया. लेकिन यह साथ ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. जब बलवंत मुनाफे में बड़ा हिस्सा चाहते थे, तो मोहनभाई के साथ उनकी साझेदारी समाप्त हो गई. 

जर्मन फर्म के साथ किया काम 
बलवंत इसके बाद भारत में फेडको नामक एक जर्मन फर्म में शामिल हो गए. फेडको ने भारतीय बाजार में होचस्ट नामक जर्मन कंपनी के हितों का प्रतिनिधित्व किया. बलवंत को फेडको में पचास प्रतिशत लाभ के लिए भागीदार के रूप में शामिल किया गया था. यह बलवंत की सफलता की ओर बढ़ने की शुरुआत थी. 

फेडको में काम करते हुए, बलवंत ने भारत की अपनी एक यात्रा पर होचस्ट के प्रबंध निदेशक से मुलाकात की. इस यात्रा के दौरान, एमडी बलवंत को भारत में कई संयंत्रों में ले गए. बलवंत की बिजनेस के बारे में जानकारी से प्रभावित होकर, एमडी ने उन्हें कंपनी के जर्मन कारखानों में से एक में प्रशिक्षण लेने का अवसर दिया.बलवंत एक महीने के लिए प्रशिक्षण के लिए जर्मनी गए.

शुरू किया अपना कारोबार 
उनकी वापसी के कुछ ही समय बाद, जर्मन एमडी की मृत्यु हो गई, और परिणामस्वरूप, बलवंत भारत में जर्मन कंपनी के हितों के एकमात्र प्रतिनिधि थे. इसका मतलब यह हुआ कि कंपनी में उनकी हिस्सेदारी बढ़ गई. लेकिन एमडी के चले जाने के बाद, होचस्ट स्वतंत्र रूप से काम करना चाहता था और फेडको से अलग होना चाहता था. इसलिए बलवंत ने होचस्ट को अलविदा कह दिया. 

पारेख ने अपने भाई के साथ पारेख डाइकेम इंडस्ट्रीज बनाई. पारेख डाइकेम के तहत, बलवंत फेडको में हिस्सेदारी खरीदते रहे. यह पारेख डाइकेम इंडस्ट्रीज बदलकर पारेख डाइकेम लाइट इंडस्ट्रीज हो गई, फिर पी.डी. लाइट इंडस्ट्रीज, और फिर पिडिलाइट इंडस्ट्रीज. 

इस तरह बनीं वेजिटेरियन गोंद 
बलवंत जब लकड़ी व्यापारी के यहां काम कर कर रहे थे तो इस दौरान, उन्होंने एक बात देखी कि लकड़ी के काम में पारंपरिक रूप से इस्तेमाल होने वाला गोंद या चिपकने वाला उत्पाद बहुत बोझिल था और मजबूत नहीं था.
जिससे बढ़ई को चिपकने वाले पदार्थ को संभालने में कठिनाई होती थी, और उनके कौशल के बावजूद, उनका काम लंबे समय तक नहीं चलता था. और उस समय इस तरह के उत्पाद जानवरों के अंगों से बनते थए इसलिए बहुत से लोग इनके फेवर में नहीं थे. 

पिडिलाइट के तहत, बलवंत ने चिपकने वाला फेविकोल बनाया, जो जानवरों के अंगों के बजाय सिंथेटिक राल से बना एक गोंद था. और इस तरह एक "वेजिटेरियन गोंद" का निर्माण हुआ. "फेविकोल" नाम "फेडको" और जर्मन शब्द "कर्नल" से मिलकर बना था. इसकी प्रेरणा उस समय प्रचलित जर्मन एडहेसिव "मोविकोल" से मिली थी. समय के साथ कंपनी बड़ी होती गई और आज इसका टर्नओवर कई हजार करोड़ रुपए है. 

क्रिएटिव एडवरटाइजमेंट ने बनाई पहचान 
घर-घर का ब्रांड बनना आम बात नहीं है. ग्राहकों के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए कंपनी ने मीडिया का इस्तेमाल किया. उन्होंने मजाकिया विज्ञापन अभियान के माध्यम से इस पहचान को बनाया और जनता पर एक अमिट छाप छोड़ी. इन विज्ञापनों ने "फेविकोल का मजबूत जोड़ है, टूटेगा नहीं" और "असली वॉटरप्रूफ एडेसिव" जैसी टैगलाइन दी. इन अभियानों ने फेविकोल ब्रांड नाम को "मजबूत बंधन" के समान बना दिया.

फेविकोल को और भी अधिक लोकप्रियता तब मिली जब इस शब्द को दबंग 2 में प्रसिद्ध गीत "फेविकोल से" में इस्तेमाल किया गया. अपनी जापान यात्रा के दौरान, नरेंद्र मोदी ने देश के साथ संबंधों की मजबूती पर टिप्पणी करते हुए कहा, "ये फेविकोल से" भी ज़्यादा मज़बूत जोड़ है!”