राजस्थान में उदयपुर अंचल का आदिवासी बाहुल्य इलाका आज भी पिछड़ा हुआ है. यहां जनजीवन को समाज की मुख्य धारा में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं. इस बीच ऐसे युवा सामने आए जिन्होंने अपनी सोच के चलते सैकड़ों आदिवासी महिलाओं को रोजगार मुहैया कराकर उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया है. साथ ही, उन्हें स्वावलंबी बनाकर रोजगार की राह से जोड़ दिया है.
उदयपुर के इस इलाके में मुख्य रूप से सीताफल, जामुन, आंवला आदि फलों की खेती होती है. ऐसे में बड़ी तादाद में इन फलों की पैदावार होती है. हालांकि आदिवासी समाज पिछडा हुआ होने के चलते इन फलों का उचित दाम प्राप्त नहीं कर पाता है. दूर दराज बेचने जाने पर भी जब उचित दाम में बिक्री नहीं होती है तो कई बार इन्हें अपनी मेहनत के फल को नालियों तक में बहाना पड़ता था.
हालांकि, अब पिछले कुछ वर्षो से आदिवासी महिलाओं की किस्मत बदली है. फिलहाल करीब डेढ़ महीने से जामुन का सीजन चल रहा है. राजेश ओझा और उनकी पत्नी पूजा ओझा ने इन महिलाओं की पीड़ा को समझा और इन्हीं के गांवों में प्रोसेसिंग यूनिट तैयार करवा दी. अब महिलाएं पहले तो जंगलों से जामुन को इकट्ठा करके लाती हैं और फिर इन जामुन का पल्प तैयार करती हैं. इससे महिलाओं को जामुन का उचित दाम मिलने लगा और उनका पुरा जामुन इसी प्रोसेसिंग यूनिट में खरीदा जाने लगा. जामुन के पल्प और बीजों के कई तरह के प्रोडक्ट बन रहे हैं.
18 गांवों में लगाई प्रोसेसिंग यूनिट्स
राजेश ओझा ने इस तरह की प्रोसेसिंग यूनिट 18 आदिवासी बाहुल्य गांवों में लगा दी और प्रत्येक गांवों में 35-35 महिलाओं को ट्रेनिंग देकर काम से जोड़ दिया. अब तक 1200 महिलाओं को अपनी मेहनत का उचित दाम और रोजगार उपलब्ध कराया गया है.
इस काम से आदिवासी महिलाएं भी खासी खुश हैं और उनका मानना है कि अब उन्हें मजदूरी के लिए शहर नहीं जाना पड़ता है. फलों को बेचने की मेहनत नहीं करनी पडती हैं, फलों का पूरा दाम मिलता है और रोजगार मिलने से आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है. अब ये आदिवासी महिलाएं जामुन जैसे जंगली फल से भी मुनाफा कमा रही हैं और इनके बनाए गए प्रोडक्ट पूरी दुनिया में ऑनलाइन खरीदे जा रहे हैं.
कैसे होता है काम
आदिवासी महिलाएं पहले तो जामुन इकट्ठा करके लाती हैं और बाद में जामुन को पूरी तरह से साफ करके उनकी गुठलियों और पल्प को अलग किया जाता है. बाद में पल्प को कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित करके आगे काम में लिया जाता है. बहरहाल आदिवासी महिलाएं को रोजगार मिलने से न सिर्फ वे बल्कि उनके परिवार भी खुश हैं.
अब ये महिलाएं सिर्फ मेहनत करती हैं और पूरे दिन में जामुन का पल्प तैयार कर उसे इकट्ठा करती हैं. यह पल्प कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित रखा जाता हैं ओर फिर इससे जामुन स्ट्रीप, जामुन विनेगर, जामुन पाउडर आदि प्रोडक्ट तैयार होते हैं. ये प्रोडक्ट मुख्य रूप से शुगर के मरीजों के लिए लाभदायक हैं.
दो लाख रुपए से करोड़ों तक का सफर
राजेश ओझा ने साल 2017 में जोवाकी एग्रो फूड्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की थी. जिसके जरिए वे अलग-अलग कंपनियों को जामुन का पल्प उपलब्ध करा रहे थे. लेकिन साल 2021 में उन्होंने ट्राइबलवेदा कंपनी भी शुरू की, जिसके जरिए वे ग्राहकों से सीधा जुड़कर उन्हें जामुन के प्रोडक्ट्स उपलब्ध करा रहे हैं. राजेश ने 2 लाख रुपये के साथ अपना कारोबार शुरू किया था. इस उद्यम ने आदिवासी महिलाओं सशक्त बनाया. उन्होंने जामुन फल पर ध्यान केंद्रित किया, जो अपने आयुर्वेदिक स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है.
राजेश अब 1200 से अधिक आदिवासी परिवारों को सपोर्ट कर रहे हैं. महिलाओं की आय तीन गुना हो गई है, सीज़न के दौरान प्रति माह 15,000 रुपये तक की कमाई हुई है. वे अपने उत्पाद पूरे भारत में और यहां तक कि यूके जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी भेजते हैं. राजेश और पूजा के कारोबार ने एक करोड़ के टर्नओवर का आंकड़ा पार कर लिया. और उनके कुल मुनाफे में से 60 फीसदी हिस्सा आदिवासी महिलाओं को जाता है.
(उदयपुर से सतीश शर्मा की रिपोर्ट)