सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में हुई एक सुनवाई के दौरान कहा गया कि किसी कर्मचारी को किसी भी समय नौकरी से निकाला जा सकता है, अगर उसने अपनी फिटनेस से संबंधित गलत जानकारी दी हो जो जो उस पद के लिए उसकी पात्रता या फिटनेस पर असर डाल सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला कब सुनाया जब CRPF के दो जवानों को अपनी फिटनेस को लेकर गलत जानकारी देने पर बर्खास्त कर दिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस फोर्स में भर्ती की पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए भी यह फैसला सुनाया. इसे जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे बी पारदीवाला के बेंच ने सुनवाई के दौरान सुनाया.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे बी पारदीवाला के बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि अगर किसी मामले में कर्मी ने खत्म हो चुके आपराधिक मामले में सही चीजें बताई है, इसके बाद भी नियुक्त करने वाले को कर्मी को नियुक्त करने को लेकर विचार कर सकता है. इसके साथ ही उम्मीदवार को नियुक्त करने के लिए उसे बाध्य नहीं किया जाएगा. इसके साथ ही अदालत की तरफ से भी यह भी कहा गया कि सत्यापन पत्र में बताए गए जानकारी के बारे कर्मी के द्वारा बताई गई सूचना की जरूरत का उद्देश्य रोजगार तथा सेवा में उसकी निरंतरता के मकसद के लिए उसके चरित्र एवं पृष्ठभूमि का मूल्यांकन करना है. इसके साथ ही इस पीठ ने कहा कि एक सार्वजनिक नियोक्ता को पुलिस बलों की भर्ती के मामले में अपने नामित अधिकारियों के माध्यम से प्रत्येक मामले की अच्छी तरह से जांच करने की आवश्यकता है.
आपराधिक मामलों में बरी होने के बाद नहीं मिलेगा स्वत: नियुक्ति का अधिकार
पीटीआई के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि अगर उम्मीदवार आपराधिक मामले में बरी हो जाता है तो उसे नियुक्ति का अधिकार अपने आप नहीं मिल जाएगा. बल्कि नियोक्ता के पास अभी भी पहले की तरह विचार करने का ऑप्शन रहेगा कि वह संबंधित उम्मीदवार उसके पद पर नियुक्ति के लिए काबिल है या नहीं. इसके साथ ही अदालत की तरफ से यह भी कहा गया कि महत्वपूर्ण जानकारी को छिपाना और अपराध से संबंधित सवालों पर गलत बयान देना स्पष्ट रूप से एक कर्मचारी के चरित्र, आचरण और पूर्ववृत्त को दर्शाता है.
जांच प्रक्रिया की भी होनी चाहिए जांच
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे बी पारदीवाला के बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि न्यायालय को यह पता लगाने जरूर काम करना चाहिए कि जिस प्राधिकरण की कार्रवाई को चुनौती दी जा रही है, उसने गलत तरीके से काम किया या फिर प्राधिकरण के फैसले में कुछ बायस तो नहीं है. इसके साथ ही यह भी देखना चाहिए कि प्राधिकरण द्वारा अपनाई गई जांच की प्रक्रिया निष्पक्ष और उचित थी या नहीं, इसकी भी जांच की जानी चाहिए.