कर्मचारियों का नौकरी बदलना कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन इसी को लेकर देश की दिग्गज सॉफ्टवेयर कंपनियों के बीच लड़ाई छिड़ गई है. इसे वॉर फॉर टैलेंट कहा जा सकता है. दरअसल इस कॉन्फ्लिक्ट यानी झगड़े की शुरुआत कॉग्निजेंट से हुई. जोकि एक बड़ी अमेरिका बेस्ड सॉफ्टवेयर कंपनी है. कॉग्निजेंट ने इस साल की शुरुआत में रवि कुमार को अपना नया सीईओ नियुक्त किया था. रवि कुमार की ताबड़तोड़ हायरिंग स्ट्रैटजी की वजह से 20 और लोगों ने बड़ी पोजिशन पर कॉग्निजेंट ज्वाइन किया. इनमें से ज्यादातर कर्मचारी विप्रो और इंफोसिस से थे. इसके बाद विप्रो और इंफोसिस ने कॉग्निजेंट पर उनके कर्मचारी तोड़ने का आरोप लगाया. अब ये मामला कोर्ट पहुंच चुका है.
इंफोसिस के टॉप मैनेजमेंट को कॉग्निजेंट ने दी नौकरी
विप्रो (Wipro) और इंफोसिस ने कॉग्निजेंट (Cognizant) पर पोचिंग का आरोप लगाते हुए वहां जाने वाले अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई शुरू की है. इंफोसिस ने इस संबंध में कॉग्निजेंट को लिखित में यह शिकायत भेजी है. इंफोसिस के अनुराग वर्धन सिन्हा, नागेश्वर चेरुकुपल्ली, नरसिम्हा राव मानेपल्ली और श्वेता अरोड़ा जैसे बड़े नामों को कॉग्निजेंट ने नौकरी दी है. आइए समझते हैं क्या है पोचिंग.
कॉरपोरेट वर्ल्ड में Poaching आम बात है, जहां कंपीटीटर्स कंपनियां एक दूसरे से आगे निकलने के लिए बेस्ट टैलेंट को अपने यहां हायर करती हैं. हालांकि, पोचिंग की अपनी सीमाएं और मर्यादाएं हैं.
क्या होती है पोचिंग?
कॉरपोरेट वर्ल्ड में पोचिंग कंपीटीटर्स कंपनियों से कर्मचारियों को हायर करने को कहा जाता है. पोचिंग प्रतिद्वंदी कंपनी से स्किल्ड प्रोफेशनल को हायर करके अपना वर्क फोर्स मजबूत करने के लिए अपनाई गई एक रणनीति है. हालांकि कानूनन, इसे उन कंपनियों द्वारा अनैतिक माना जाता है जो वफादारी में भरोसा करती हैं.
"पोचिंग" बिजनेस कम्युनिटी के बीच नैतिक बहस का विषय बना हुआ है. कंपनियां वफादारी और नैतिक चिंताओं का हवाला देते हुए पोचिंग के खिलाफ तर्क देती हैं, लेकिन जब व्यक्तिगत विकास की बात आती है तो लोग कंपनी की वफादारी से उलट खुद की ग्रोथ को ज्यादा महत्व देते हैं.
क्या होता है नो पोचिंग एग्रीमेंट
नो पोचिंग एग्रीमेंट कंपनियों के बीच किया गया एक एग्रीमेंट होता है, जिसके तहत एक कंपनी में काम करने वाले को समझौते में शामिल दूसरी कंपनी में नौकरी नहीं मिलती है. इस तरह का एग्रीमेंट तब खत्म हो जाता है जब कोई कंपनी अपने वादे को तोड़कर एग्रीमेंट में शामिल कंपनी के कर्मचारी को नौकरी देती है. ज्यादातर कंपनियां इसे कानूनी तौर पर नहीं करती हैं.
30% नौकरी में बदलाव पोचिंग के जरिए
Poaching को लेकर हुई रिसर्च से पता चलता है कि लगभग 30 प्रतिशत जॉब चेंज पोचिंग के जरिए ही होते हैं. कंपनियों को यह समझना चाहिए कि कर्मचारी, करियर ग्रोथ, फाइनेंशियल स्टैबिलिटी के आधार पर नौकरी में बदलाव करते हैं. किसी एम्प्लॉई के काम की कीमत उनके टैलेंट और एक्सपीरिएंस से निर्धारित होती है और यदि कोई प्रतिस्पर्धी कंपनी उन्हें ज्यादा सैलरी पर हायर करने को तैयार है, तो कर्मचारी उस ऑफर को चुन सकते हैं. अमेरिका में किए गए सर्वे के मुताबिक, 32 प्रतिशत नौकरी में बदलाव अच्छी सैलरी और 23 प्रतिशत बेहतर अवसरों के लिए होते हैं.
कॉर्पोरेट लीडर्स को अपने कर्मचारियों के साथ मिलकर उनकी जरूरतों और अपेक्षाओं को समझना चाहिए ताकि पोचिंग को कम किया जा सके. लीगल एक्शन लेने के बजाय, कंपनियों को उन परिस्थितियों पर काम करना चाहिए जो एक कर्मचारियों को जॉब चेंज के लिए प्रेरित करती हैं.