सर्दियां शुरू होते ही दिल्ली एनसीआर और आसपास के राज्यों में एक बड़ी समस्या सामने आने लगती है और यह है प्रदूषण. इस प्रदूषण के लिए दिल्ली में सबसे ज्यादा हरियाणा-पंजाब के खेतों में जलने वाली पराली का धुआं जिम्मेदार होता है. ऐसे में, भारत सरकार और राज्य सरकारें इस कोशिश में जुटी हैं कि पराली जलाने की समस्या को कैसे खत्म किया जाए. इसके लिए प्रशासन अपने स्तर पर कोशिशें कर रहा है जैसे किसानों को जागरुक करके, उन्हें पूसा-डी कंपोजर दिया जा रहा है जो पराली को जल्दी गला देता है. हालांकि, इसके साथ ही कुछ युवा हैं जिन्होंने अपने तरीकों से इस परेशानी का हल निकाला है.
जी हां, फरीदाबाद के रहने वाले अर्पित धूपर, अपने दोस्त और बिजनेस पार्टनर, आनंद बोध के साथ मिलकर धान की पराली से बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग मैटेरियल बना रहे हैं. अर्पित और आनंद दोनों मिलकर अपना स्टार्टअप, धराक्षा (Dharaksha) चला रहे हैं. उनके अनुसार, धराक्षा दो हिंदी मूल शब्दों से बना है - "धरा" का अर्थ है पृथ्वी, और "रक्षा" का अर्थ है बचाना, जिसका अर्थ है पृथ्वी को प्रदूषण से बचाना.
साथ में पढ़े हैं अर्पित और आनंद
अर्पित और आनंद बीटेक के दौरान रूममेट थे. वे दोनों एक-दूसरे को 10 साल से ज्यादा समय से जानते हैं और एक साथ लंबे समय तक काम करने के बाद उन्होंने ऐसा उत्पाद बनाने की सोची जो पर्यावरण के लिए अच्छा हो. धरक्षा धान की पराली को डीकंपोज करने और इसे पैकेजिंग मेटेरियल में बदलने के लिए मशरूम की जड़, माइसेलियम का इस्तेमाल करती हैं. उन्होंने मशरूम की एक ऐसी प्रजाति को विकसित किया है जिसका फूड पराली वेस्ट है. अर्पित ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था कि पराली से वह जो पैकेजिंग मेटेरियल बना रहे हैं उसकी शेल्फ लाइफ तीन साल से ज्यादा है, और यह 60 दिनों में डीकंपोज हो जाता है. इस तरह से यह प्लास्टिक और थर्मोकोल के लिए एक इको-फ्रेंडली रिप्लेसमेंट है.
पैकेजिंग मेटेरियल में हैं कई खूबियां
यह मेटेरियल सेकेंडरी पैकेजिंग के लिए उपयुक्त हैं, यानी, किसी भी चीज को इसमें पैक करके ऊपर से कार्डबोर्ड के बक्से में पैक किया जा सकता है. ट्रांसपोर्टेशन में जाने वाली चीजों की पैकेजिंग के लिए यह बेस्ट है. सबसे अच्छी बात है कि यह स्टार्टअप कस्टम डिज़ाइन में भी माहिर है. यह पैकेजिंग मेटेरियल नमी को अवशोषित नहीं करता है जिससे कोई भी सामान खराब नहीं होता है. यह थर्मल प्रतिरोधी है और साथ ही, आग में भी इसे नुकसान नहीं पहुंचेगा. यह वाटर प्रूफ भी है.
किसानों से खरीदते हैं पराली
धरक्षा एग्रीगेटर्स के एक नेटवर्क के जरिए किसानों से पराली खरीदता है. पराली को उनकी वर्कशॉप में लाया जाता है और यहां पर इसे काटकर भाप में पकाया जाता है और प्रोसेस किया जाता है. इसे पैकेजिंग में बदलने में 10 दिन तक का समय लगता है. अर्पित का कहना है कि वे 200 किमी के दायरे में पंजाब और हरियाणा के जिलों से पराली खरीद रहे हैं. मूल रूप से, उनका प्रयास ऐसी जगहों से पराली खरीदना है जहां पराली जलाने की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. धरक्षा का लक्ष्य अगले कुछ सालों में पराली जलाने को 40% तक कम करना है. इस स्टार्टअप का कहना है कि यह किसानों और एग्रीगेटर्स दोनों को मुआवजा देता है.
धरक्षा द गॉरमेट जार, बायोक्यू, फाइलो, क्यारी, सन ऑफ सॉइल, बोनोमी, वी-गार्ड और हैवेल्स जैसे ब्रांडों के साथ काम कर रहा है. इनके क्लाइंट्स में व्हाइट गुड्स कंपनियों और एफएमसीजी से लेकर मिट्टी के बर्तन बनाने वाली कंपनियां तक शामिल हैं.
शार्क टैंक इंडिया में जीता था शार्क्स का दिल
शार्क टैंक इंडिया सीजन 3 में आनंद बोध और अर्पित धूपर ने शार्क्स का दिल जीत लिया था. उन्होंने शार्क टैंक में अपनी कंपनी धरक्षा इकोसोल्यूशंस की 1% इक्विटी के लिए सिर्फ ₹1,250 मांगे और शार्क्स से 100 घंटे का समय मांगा. यह सुनकर सभी शार्क्स हैरान रह गए थे. लेकिन उन्हें अर्पित और आनंद की सोच ने काफी ज्यादा प्रभावित किया और उन्हें उनका आइडिया भी काफी ज्यादा पसंद आया. खासतौर पर अनुपम मित्तल और अमन काफी इंटरेस्टेड थे. और अर्पित को ऑल 5 शार्क डील मिली.