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Pirul Handicrafts: पहाड़ी महिलाओं के लिए चीड़ का पेड़ बना वरदान, पिरूल से हैंडीक्राफ्ट बनाकर सैकड़ों को मिला रोजगार

उत्तराखंड में Pirul Handicrafts नामक स्टार्टअप पहाड़ों की महिलाओं को न सिर्फ रोजगार दे रहा है बल्कि यहां की एक बड़ी समस्या का समाधान निकालने में भी जुटा है. जानिए इस स्टार्टअप के बारे में.

Pirul Handicrafts (Photo: Facebook) Pirul Handicrafts (Photo: Facebook)
हाइलाइट्स
  • 100 से ज्यादा महिलाओं को दिया रोजगार 

  • चीड़ का पेड़ बना वरदान

उत्तराखंड के खेतीखान गांव के बीहड़ इलाकों में महिलाओं की जिंदगी एक नया आया ले रही हैं. यहां पर महिलाएं घर के कामकाज खत्म करके, अपना बाकी समय हैंडीक्राफ्ट को देती हैं, जिसके जरिए वह अच्छी आजीविका कमा रही हैं. ये महिलाएं पिरूल (Pine Needles) से रोटी के डिब्बे, ट्रे, पेन स्टैंड जैसी हस्तशिल्प वाली चीजें बनाती हैं. महिलाएं सप्ताह में दो से तीन बार जंगल से पिरूल इकट्ठा करती हैं और फिर इनसे हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स बनाती हैं. इन प्रोडक्ट्स को वह, Pirul Handicraft नामक स्टार्टअप के लिए बना रही हैं. 

आपको बता दें कि पिरूल पहाड़ों के जंगलों में आग लगने का मुख्य कारण हैं. चीड़ के पेड़ से गिरने वाला पिरूल बहुत जल्दी आद पकड़ लेता है और अपने साथ-साथ पूरे जंगल को तबाह कर देता है. ऐसे में, राज्य सरकार और कुछ निजी संगठन कोशिश में लगे हैं कि पिरूल को कुछ उपयोगी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाए. साथ ही, यह महिला सशक्तिकरण का जरिया बन रहा है. ऐसे में, साल 2021 में नूपुर पोहरकर ने Pirul Handicrafts की शुरुआत की, जो पिरूल से बने हैंडीक्राफ्ट्स को आगे मार्केट करते हैं. 

Best out of Waste है लक्ष्य 
नूपुर का कहना है कि उनके स्टार्टअप, पिरुल हैंडीक्राफ्ट्स में, उनका लक्ष्य चीड़ के पेड़ से निकलने वाले अपशिष्ट जैसे पिरूल को अलग-अलग उत्पादों में इस्तेमाल करके उपयोगी बनाना है, साथी ही, आजीविका के अवसर प्रदान करके महिलाओं को सशक्त बनाने का भी प्रयास किया जा रहा है. नागपुर की रहने वाली पोहरकर का मानना ​​है कि समाज के लिए काम करने की इच्छा उन्हें विरासत में मिली है क्योंकि उन्होंने अपने पिता डॉ. अजय पोहरकर, एक पशु चिकित्सक को हमेशा समाज की भलाई क लिए काम करते देखा है. 

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फिलहाल उनके पिता नागपुर में पशु कल्याण के लिए एक एनजीओ चलाते हैं. नूपुर ने अपनी पशु चिकित्सा की डिग्री पूरी करने के बाद सोशल वर्क से जुड़ने का फैसला किया. उन्होंने एसबीआई फाउंडेशन के YSF Fellowship प्रोग्राम में दाखिला ले लिया और फिर उन्होंने उत्तराखंड के खेतीखान में BAIF इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल लाइवलीहुड्सएंड डेवलपमेंट के साथ काम करना शुरू कर दिया. यहां हर जगह चीड़ के जंगल हैं,और उन्हें पता चला कि पिरुल के जलने से लोगों का काफी नुकसान होता है, खासकर महिलाओं को बहुत मेहनत करनी पड़ती है. 

100 से ज्यादा महिलाओं को दिया रोजगार 
उन्होंने उत्तराखंड में अपनी एक साल की फेलोशिप के दौरान महिलाओं को पिरूल से उत्पाद बनाने के लिए मनाया. यह आसान नहीं था लेकिन नूपुर की मेहनत ने सबको प्रेरित किया. इसके बाद, दो महीनों में, पिरुल हैंडीक्राफ्ट्स को ऑर्डर मिलने लगे और और ज्यादा लोग इस पहल में शामिल हो गए. 2021 में, पोहरकर की छोटी बहन, शारवरी पोहरकर भी स्टार्टअप में शामिल हुईं. 

इस स्टार्टअप ने अब तक 100 से ज्यादा महिलाओं को काम किया है. ये महिलाएं मिनिमम 7000 रुपए प्रति माह कमा रही हैं. साथ ही, इन्होंने मिलकर 20,000 किलोग्राम से ज्यादा पिरूल वेस्ट को रिसायकल किया है. उत्पादों को मुख्य रूप से इंस्टाग्राम और प्रदर्शनियों के माध्यम से और दिल्ली, हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई और 12 ऑफ़लाइन स्टोरों में बेचा जाता है. उन्हें स्थानीय सरकारी निकायों और कॉरपोरेट्स से भी थोक ऑर्डर मिलते हैं.