महंगाई के लगातार बढ़ते आंकड़ों के मद्देनजर यूएस फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दी है. दरअसल ये इजाफा 28 साल बाद किया गया है. विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व नीतिगत दरों में 75 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है. इतना ही नहीं फेड रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने आगे भी ऐसी ही बढ़ोतरी करने का संकेत दिया है.
अमेरिकी फेड रिजर्व की बड़ी घोषणाएं
पॉवेल ने बैठक के दौरान 40 साल के उच्चतम स्तर पर चल रही खुदरा महंगाई को रोकने के लिए ये बड़ा कदम उठाया है. जिसके लिए ब्याज दरों को 1.75 फीसदी के टारगेट से ऊपर ले जाने पर सहमति जताई गई. इस बार 0.75 फीसदी ब्याज दर बढ़ा दी गई है. यह साल 1994 के बाद से सबसे ज्यादा बढ़ोतरी है. जानकारों की मानें तो भारतीय शेयर बाजारों में 75 बेसिस प्वाइंट तक की बढ़ोतरी का पहले ही अनुमान लगाया जा चुका है, लेकिन ग्रोश, इंफ्लेशन और भविष्य की दरों में बढ़ोतरी पर यूएस फेड की टिप्पणी पर अब महत्वपूर्ण नजर होगी.
खुद के फैसले पर हैरान थे पॉवेल
फेड रिजर्व की इस बैठक के बाद पॉवेल ने खुद कहा कि, "मुझे खुद इस बात का अंदाजा नहीं था कि ब्याज दरों में इतनी बढ़ोतरी होगी. हालांकि बैठक में शामिल सदस्यों को उम्मीद है कि ब्याज दरें बढ़ाने के बाद उपभोक्ता महंगाई को वापस 2 फीसदी पर लाया जा सकेगा. पिछले हफ्ते तक अमेरिका में इन्फ्लेशन रेट 5.4 फीसदी रहने का अनुमान था, जो की साल 1981 के बाद से सबसे ज्यादा है.
अमेरिका में क्या है खुदरा महंगाई की स्थिति?
हाल ही में जारी हुए आंकड़ों की मानें तो अमेरिका में कंज्यूमर प्राइस इन्फ्लेशन में मई में साल-दर-साल 8.6 प्रतिशत बढ़ी है, जो दिसंबर 1981 के बाद से सबसे बड़ी वृद्धि है. अमेरिका में महंगे ईंधन और महंगे होने के कारण कीमतों में तेजी आई है. मई में प्राकृतिक गैस की कीमतों में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, यह गति अक्टूबर 2005 के बाद सबसे ज्यादा है, जबकि बिजली की दर भी 1.3 प्रतिशत बढ़ी है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण में आपूर्ति ना होने के कारण मई में खाद्य कीमतों में 1.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई. डेयरी और संबंधित उत्पादों की कीमतों में भी जुलाई 2007 के बाद से सबसे बड़ी बढ़त दर्ज की गई.
जुलाई में भी हो सकती है बढ़ोत्तरी
बढ़ोतरी की घोषणा के बाद जेरोम पॉवेल ने आने वाले महीनों में भी ब्याज दरों में इजाफे के संकेत दिए हैं. पॉवेल ने संकेत दिया है कि जुलाई के महीने में फेड नीतिगत दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोत्तरी कर सकता है. उन्होंने इस बात पर खास जोर दिया कि फेड के पास महंगाई दूर करने के तमाम उपाय है, और फेड महंगाई दूर करने में पूरी तरह सक्षम है. इतना ही नहीं फेड अधिकारियों को भी उम्मीद है 2023 तक इंफ्लेशन में काफी कमी आएगी.
अमेरिका के शेयर बाजारों में भी आई तेजी
अमेरिकी फेड के इस फैसले के बाद शुरुआत में तो गिरावट देखने को मिली पर बाद में बाजार में तेजी आई है. जहां डाउ जोन्स इंडेक्स एक बार फिर 30,550 अंक के लेवल को पार करता हुआ दिखाई दिया. वहीं एसएंडपी 500 में भी करीब एक फीसदी की तेजी देखने को मिली. इसके अलावा फेड के फैसले के बाद से डॉलर में भी मजबूती देखने को मिली है. हालांकि यूएस फेड के इस फैसले का असर भारत के शेयर बाजारों पर भी देखने को मिल सकता है.
भारत के शेयर बाजार पर भी हो सकता है असर
भारतीय शेयर बाजार वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी और भारतीय इक्विटी बाजार पर वैश्विक अनिश्चितताओं के प्रभाव के बारे में चिंतित हैं. दरअसल अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरें भारतीय बाजारों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) को भारतीय बाजारों से धन निकालने और अमेरिका जाने के लिए प्रेरित कर रही हैं. छह महीने की बिकवाली के बाद अप्रैल के पहले सप्ताह में एफपीआई नेट निवेशक बन गए और बाजारों में गिरावट के कारण शेयरों में 7,707 करोड़ रुपये का निवेश किया. हालांकि, विदेशी फंडों का पलायन मई से ही जारी है. एफपीआई ने इस महीने अब तक 35,000 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी कर ली है.
बीएसई बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स 26 मई को दिन के दौरान 11.68 फीसदी गिरकर 54,101.8 अंक पर आ गया, जबकि पिछले साल 20 अक्टूबर को यह 61,259.96 अंक था. अमेरिकी दरों में बढ़ोतरी के अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न वैश्विक अनिश्चितताओं और रुपये में गिरावट जैसे कई कारणों से भी गिरावट को जिम्मेदार ठहराया गया है.
भारतीय रुपए को भी लगा झटका
वैश्विक स्तर पर सख्त मॉनिटरी पॉलिसी ने भी रुपये पर प्रभाव डाला है. रूस-यूक्रेन युद्ध पर भू-राजनीतिक संकट और यूएस फेडरल रिजर्व द्वारा सख्त मॉनिटरी पॉलिसी से उत्पन्न वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण विदेशी निवेश के आउटफ्लो के कारण हाल ही में यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 77.72 के साथ अपने निचले स्तर पर है. इंडिया रेटिंग्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, "जैसी की अनुमान था, यूएस फेड के टाइट मॉनिट्री पॉलिसी लाने के बाद से पोर्टफोलियो निवेश आउटफ्लो शुरू हो गया है. 16 मई तक, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारत से 21.2 बिलियन अमरीकी डालर की निकासी की थी."