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US-China Tariff war: क्या है टैरिफ... जिस पर अमेरिका-चीन में ठनी, दुनिया की दो सबसे बड़ी इकोनॉमी तबाह होने की कगार पर, जानें अन्य देशों पर इसका असर 

Trade War: डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के दोबारा राष्ट्रपति बनते ही यूएस और चीन में टैरिफ वार शुरू हो गया है. यदि इन दोनों देशों में विवाद नहीं सुलझा तो यह टैरिफ वार ट्रेड वार में बदल सकता है. आइए जानते हैं आखिर क्या है टैरिफ और ट्रंप-जिनपिंग के आमने-सामने होने से दुनिया की इकोनॉमी पर इसका क्या असर होगा?

Donald Trump and Xi Jinping (File Photo) Donald Trump and Xi Jinping (File Photo)
हाइलाइट्स
  • अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन पर लगाया है 10 प्रतिशत टैरिफ

  • चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग ने भी किया है पलटवार 

China-America Trade War: डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के अमेरिका का दोबारा राष्ट्रपति बनते ही यूएस (US) और चीन (China) के बीच 'युद्ध' शुरू हो चुका है. दरअसल, यह युद्ध गोला-बारूद से नहीं बल्कि व्यापार के मोर्चे पर लड़ी जा रही है.

इसकी शुरुआत ट्रंप ने चीन के खिलाफ सख्त टैरिफ पॉलिसी लागू करके की है और अब चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) भी पलटवार कर रहे हैं. चीन ने इसकी शिकायत वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (World Trade Organization) से की है. आइए जानते हैं आखिर टैरिफ क्या है और चीन-अमेरिका के आमने-सामने आने से इन दोनों देशों के अलावा भारत सहित अन्य देशों की इकोनॉमी (Economy) पर क्या असर होगा?

क्या है टैरिफ
टैरिफ या कस्टम ड्यूटी वो टैक्स होता है, जो किसी देश में आयात होने वाले सामान पर लगाया जाता है. आयातक यह शुल्क सरकार को देते हैं लेकिन कंपनियां ये शुल्क अक्सर उपभोक्ताओं से वसूलती हैं. आप इसको इस तरह से समझ सकते हैं यदि कई कंपनी 100 रुपए का सामान आयात करती है यानी किसी वस्तु की कीमत 100 रुपए हैं यदि उसपर 10 प्रतिशत टैरिफ लगता है तो उपभोक्ता को उस वस्तु के लिए 100 रुपए की जगह 110 रुपए देने होंगे. टैरिफ अप्रत्यक्ष टैक्स होता है. किसी भी सरकार के लिए टैरिफ एक कमाई का जरिया है. आपको मालूम हो कि एंटी-डंपिंग ड्यूटी, काउंटरवेलिंग ड्यूटी और सेफगार्ड ड्यूटी भी टैरिफ के ही प्रकार हैं.

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आपको मालूम हो कि टैरिफ यानी कर लगाने की व्यवस्था नई नहीं है, यह बहुत पुरानी है. पहले जब व्यापारी अन्‍य देशों में व्यापार करने के लिए अपना माल लेकर जाते थे तो दूसरे देशों के बंदरगाहों पर उनसे कर यानी टैरिफ वसूला जाता था.मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं में भी टैरिफ की व्यवस्था हुआ करती थी. आयात और निर्यात कर के साक्ष्य भारत में मौर्य साम्राज्य के दौर में भी देखने को मिलते हैं. भारत में 16 फरवरी 1923 को पहली बार टैरिफ व्यवस्था लागू करने के लिए टैरिफ बोर्ड का गठन किया गया था. हालांकि साल 1991 में इसमें छूट दी गई और घरेलू बाजार अन्य देशों के व्यापारियों के लिए भी खोल दिया गया.

आखिर टैरिफ लगाना क्यों जरूरी 
कोई भी देश अपने घरेलू उद्योग के उत्पादों को सस्ते आयात से बचाने के लिए और लोकल प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देने व विदेशी प्रोडक्ट्स की बाजार प्रतिस्पर्धा कम करने के मकसद से टैरिफ लगाते हैं. जैसे मान लीजिए कोई चीनी कंपनी मोबाइल बनाकर अमेरिका के बाजार में बेचने पहुंचती है. पहले से ही यूएस की कई कंपनियां मोबाइल बना रही हैं. यदि चीन अमेरिका में जाकर अपने मोबाइल सस्ते दामों में बेचना शुरू कर दे तो इससे अमेरिका की कंपनियों को भारी नुकसान होगा. 

इसके साथ ही यूएस सरकार के रेवेन्यू पर भी असर पड़ेगा. ऐसे में घरेलू कंपनियों को नुकसान से बचाने और अपना रेवेन्यू बढ़ाने के लिए सरकारर टैरिफ लगा देती हैं. टैरिफ लगाने से चीन के मोबाइल महंगे हो जाएंगे और इस तरह से अमेरिकी कंपनियां उनका मुकाबला कर पाएंगीं. टैरिफ लगाने से आयातित सामान महंगे हो जाते हैं. ऐसा करने से देश में बने उत्पादों की बिक्री बढ़ जाती है. रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं. हालांकि टैरिफ लगाने के कुछ नुकसान भी हैं. ज्यादा टैरिफ से महंगाई बढ़ती है. कंपनियों को कच्चा माल महंगा मिलता है.

ट्रंप पहले भी लगा चुके हैं टैरिफ
अमेरिका को चीन, भारत सहित कई देशों के साथ व्यापार में घाटा हो रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस घाटे को कम करने के लिए टैरिफ लगाना चाहते हैं. उन्होंने चीन पर 10 प्रतिशत का शुल्क लागू भी कर दिया है. ट्रंप का दावा है कि ये शुल्क अमेरिकियों की सुरक्षा के लिए जरूरी हैं.

ट्रंप ने पहली बार राष्ट्रपति बनने पर भी चीन के खिलाफ सख्त टैरिफ पॉलिसी लागू किया था. द इकोनॉमिस्ट मैगजीन के अनुसार इससे भी अमेरिका के व्यापार घाटे में कोई कमी नहीं आई थी. टैरिफ लगाने पर जहां रोजगार बढ़ते हैं लेकिन ट्रंप ने जब पहली बार टैरिफ लगाया था तो रोजगार घट गए थे. स्टील सेक्टर को छोड़ कई सेक्टरों की आय घट गई थी. 

चीन ने लगाया जवाबी शुल्क 
ट्रंप की कार्रवाई पर पलटवार करते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी अमेरिका के कई उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगा दिया है. यूएस से कोयला और एलएनजी के आयात पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगाया है. इसके अलावा ड्रैगन ने यूएस की टेक दिग्गज एपल और गूगल के खिलाफ जांच शुरू कर दी है. चीन ने कृषि उपकरण, कच्चे तेल, बड़े-डिस्प्लेसमेंट वाहन और पिकअप ट्रकों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया है. हालांकि चीन के जवाबी कार्रवाई का अमेरिका पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. 

चीन को होगा ज्यादा नुकसान
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स का कहना है कि यूएस और चीन के बीच आगे और भी टैरिफ लगाए जाने की आशंका है. इससे दोनों देशों को नुकसान होगा लेकिन अधिक हानि ड्रैगन को उठानी पड़ेगी क्योंकि अमेरिकी टैरिफ में जहां चीन के करीब 39 लाख करोड़ रुपए के सामान शामिल हैं, वहीं चीनी टैरिफ में सिर्फ 1.73 लाख करोड़ रुपए के अमेरिकी सामान शामिल हैं.

टैरिफ लगाए जाने से साल 2025 में चीन की इकोनॉमी की रफ्तार 4.1% रह सकती है, जो 2024 की चौथी तिमाही में 5.4 प्रतिशत थी. अमेरिका के जीडीपी (GDP) यानी सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट देखी जाएगी. पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के अनुसार यूएस की रियल जीडीपी 2027 तक 0.07% और चीन की 0.16% गिर सकती है. 

भारत सहित ये देश भी निशाने पर 
डोनाल्‍ड ट्रंप ने टैरिफ को लेकर सिर्फ चीन पर ही सख्ती नहीं की है. ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको को टैरिफ लागू करने को लेकर एक महीने की मोहलत दी है. ट्रंप के निशाने पर भारत, दक्षिण कोरिया सहित कई और देश भी हैं. ट्रंप साफ कह चुके हैं कि भारत हमारे कई उत्‍पादों पर 100 फीसदी से ज्‍यादा टैरिफ लगाता है तो हम भी उस पर शुल्‍क लगाएंगे.

कुछ जानकारों का कहना है कि अमेरिका-चीन के बीच इस ‘टैरिफ वॉर’ का फायदा भारत-अमेरिका पार्टनरशिप को मिलेगा. इस से यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि अमेरिका की ओर से शुरू किया गया यह ट्रैरिफ वॉर इतनी आसानी और जल्‍द खत्‍म नहीं होने वाला है. ग्लोबल मार्केट पर चीन और अमेरिका दोनों देशों की अच्छी पकड़ है. दोनों देशों के एक-दूसरे के खिलाफ टैरिफ लगाने से ग्लोबल मार्केट पर प्रेशर बढ़ेगा.