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Cucumber Farming: खीरे की खेती से बदली किसान की किस्मत, 2 बीघे में खेती से 4 लाख तक की कमाई

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में खीरे की खेती ने एक किसान की किस्मत बदल दी. पहले किसान की फैमिली परंपरागत खेती करती थी. लेकिन पिछले 3 साल से किसान ने सब्जियों की खेती शुरू की. किसान ने 2 बीघा खेत में खीरे की खेती की. जिससे लाखों रुपए की कमाई हो रही है. ये किसान मल्च विधि से खीरे की खेती करते हैं.

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किस्मत बदलते देर नहीं लगती है. बस सही समय पर सही कमद उठाने की जरूरत होती है. उत्तर प्रदेश के एक किसान की किस्मत खेती से बदल गई. किसान की फैमिली ने परंपरागत खेती छोड़कर आधुनिक खेती पर ध्यान दिया. गेहूं, धान की खेती छोड़कर सब्जियों की खेती शुरू की. इससे किसान को अच्छा-खासा मुनाफा होने लगा. इस किसान को खीरे की खेती से लाखों की कमाई हो रही है.

खीरे की खेती से बदली किस्मत-
किसान पंकज कुमार उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के सहेलियां गांव के रहने वाले हैं. आम किसानों की तरह पंकज की फैमिली भी पहले परंपरागत खेती करती थी. गेहूं और धान उगाती थी. लेकिन 3 साल पहले पंकज कुमार ने कुछ नया करने की सोची. उन्होंने परंपरागत खेती छोड़ने का फैसला किया और इस फैसले पर अमल भी किया. उन्होंने सब्जियों की खेती शुरू की. जिससे उनको अच्छा खासा मुनाफा होने लगा. वो खीरे की खेती और मुनाफे से संतुष्ट हैं.

खेती से होता है फायदा-
ये किसान 2 बीघे में खीरे की खेती करते हैं. जिससे उनको 3 से 4 लाख रुपए तक मुनाफा होता है. एक बीघे में खीरे की खेती की लागत 15-16 हजार आती है. जबकि मुनाफा डेढ़ से 2 लाख तक होता है. पंकज खीरे की खेती मल्च विधि से करते हैं. जिससे इसकी पैदावार और भी अच्छी होती है.

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हिंदी डॉट न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक पंकज का कहना है कि 2-3 सालों से सब्जियों की खेती कर रहा हूं. जिसमें लौकी, टमाटर, कद्दू, बैंगन और खीरा शामिल है. बरसात में खीरे की खेती करना थोड़ा मुश्किल है. बारिश से फसल में रोग लगने की आशंका होती है. इसलिए उस मौसम में इसकी खेती कम होती है. जिससे मार्केट में इसकी डिमांड बढ़ जाती है, जिससे खीरे का रेट अच्छा मिलता है.

खीरे की खेती का क्या है तरीका-

खीरे की खेती के लिए सबसे पहले खेत को तैयार किया जाता है. इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी होनी चाहिए. मिट्टी का पीएच 5.5 से 6.7 तक होना चाहिए. खीरे के बीजों में अंकुरण क्षमता अच्छी होती है. इसलिए बीजों को मेड़ पर बोया जाता है. 

मिट्टी तैयार होने पर मल्चिंग विधि से पौधों को रोपना चाहिए. दो पौधों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर और दो लाइनों के बीच दूरी 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए. सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. पौधों में बढ़ोतरी के साथ इसमें खाद का भी इस्तेमाल किया जाता है. 50 से 65 दिन में फसल तैयार हो जाती है. खीरे तेजी से बढ़ते हैं, इसलिए हर 2 से 4 दिनों में कटाई की जाती है.

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