भारत में लगभग हर माता-पिता यही चाहते हैं कि उनके बच्चे सरकारी नौकरी लग जाएं. क्योंकि आज भी भारत में सरकारी नौकरी का बहुत ज्यादा महत्व है. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे इंसान के बारे में जिन्होंने खेती करने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी. जी हां, उत्तर प्रदेश के रहने वाले उत्कृष्ट पांडे ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) में अपनी नौकरी छोड़ दी और किसान बन गए. अपनी सपनों की नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने सफेद चंदन और काली हल्दी की खेती में कदम रखा.
वह 2016 में सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में सहायक कमांडेंट के रूप में कार्यरत थे और उन्होंने लखनऊ से लगभग 200 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ के भदौना गांव में अपनी कंपनी मार्सेलोन एग्रोफार्म शुरू की. आज वह न सिर्फ अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि बहुत से ग्रामीण युवाओं को उन्होंने रोजगार भी दिया है.
चंदन की खेती कर पेश की मिसाल
उत्कृष्ट पांडे का कहना है कि CPAF में शामिल होना उनके लिए सपनों की नौकरी थी. उन्होंने लगभग साढ़े पांच साल तक बिहार, झारखंड और असम सहित विभिन्न राज्यों में काम किया. नौकरी के दौरान, उनके दिमाग में हमेशा यह रहता था कि उन्हें क्या करना चाहिए. उनका उद्देश्य हमेशा से अपने गांव की मदद करने और उनके जीवन स्तर में सुधार करने का रहा था. ऐसे में उनका विचार था कि खेती करने से ऐसा हो सकता है.
साल 2016 में, उन्होंने नौकरी छोड़ दी और विभिन्न इलाकों में अलग खेती के आइडिया की खोज शुरू कर दी और आखिरकार सफेद चंदन और काली हल्दी की खेती करने का मन बनाया. उन्होंने पीटीआई को बताया, "हर किसी का विचार था कि चंदन केवल दक्षिण भारत में ही उगाया जा सकता है. लेकिन मैंने विस्तार से स्टडी की कि हम उत्तर भारत में भी ऐसा कर सकते हैं. मैंने बेंगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईडब्ल्यूएसटी) से एक कोर्स पूरा किया, जो चंदन रिसर्च के लिए एक सर्वश्रेष्ठ संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है."
परिवार शुरू में नहीं था खुश
शुरुआत में उनका परिवार उनके नौकरी छोड़ने से खुश नहीं था. परिवार के सदस्यों के मन में कुछ आशंकाएं थीं, लेकिन उन्होंने धीरे-धीरे अपने मेहनत से सबकी धारणा बदल दी. उन्होंने अपनी चार एकड़ पैतृक कृषि भूमि से काम शुरू किया. उन्होंने प्राकृतिक और जैविक खेती को समझने के लिए विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों का भी दौरा किया और किसानों से मुलाकात की.
दुनिया में चंदन की कमर्शियल तौर पर अच्छी मांग है. इसका उपयोग मुख्य रूप से इत्र बनाने में किया जाता है, लेकिन इसमें औषधीय गुण भी हैं. इसकी कीमत वृक्षारोपण के लगभग 14 से 15 वर्षों के बाद मिलती होती है. इसलिए उन्होंने इसकी खेती शुरू की. हालांकि, चंदन की कई किस्में हैं, लेकिन सफेद और लाल रंग की खेती ज्यादातर देश के दक्षिणी भाग में की जाती है. अपने चिकित्सीय और कॉस्मेटिक मूल्य के कारण, सफेद चंदन अधिक महंगा है.
काली हल्दी का मिलता है अच्छा मूल्य
उत्कृष्ट के अनुसार, एक किसान 14-15 वर्षों में चंदन के लगभग 250 पेड़ों के पूरी तरह से विकसित हो जाने पर उनसे 2 करोड़ रुपये से ज्यादा कमा सकता है. इसी तरह, काली हल्दी की कीमत उसकी गुणवत्ता के आधार पर लगभग 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम है. उन्होंने कहा कि घरेलू बाजार में इस चंदन और काली हल्दी की भारी मांग है. यह खेती रोजगार सृजन में मदद करती है, किसानों की आय बढ़ाती है और भविष्य को सुरक्षित करने में मदद करती है.
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पांडे खेतों में गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहे हैं. आगे चलकर वह निर्यात शुरू करने के लिए और ज्यादा जमीन पर फसल बढ़ाना चाहते हैं. उनके फार्म पर आठ नियमित कर्मचारी हैं, जो प्रति माह 7000 रुपये से 9000 रुपये के बीच कमाते हैं. लगभग 15 और लोग प्रतिदिन 300 रुपये पर काम करते हैं.
अगर कोई उनसे काम मांगता है, तो वह उसे काम पर रख लेते है हैं, चाहे उन्हें लोगों की जरूरत हो या नहीं. ऐसा इसलिए है क्योंकि वह यहां के लोगों की आर्थिक स्थितियों को जानते हैं और उन्हें लोगों की मदद करके खुशी मिलती है.