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Gramik: जानिए कैसे बचपन में चाय बेचने वाले इस युवक ने खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी, लाखों किसानों की मदद की

यह कहानी है Gramik कंपनी के फाउंडर, राज यादव की, जो एक सॉफ्वेयर इंजीनियर हैं. राज ने 2012 में सॉफटवेयर कंपनी की शुरुआत की थी और 2021 में एग्रीटेक कंपनी की शुरुआत की जिसके जरिए वह लाखों किसानों की मदद कर रहे हैं.

Gramik helping farmers (Photo: Website/https://www.gramik.in/) Gramik helping farmers (Photo: Website/https://www.gramik.in/)

उत्तर प्रदेश के जौनपुर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर चमरहा गांव के रहने वाले राज यादव ने आज एक सॉफ्टवेयर कंपनी के साथ-साथ एग्रीटेक कंपनी भी चला रहे हैं. राज यादव ग्रामिक नामक कंपनी चला रहे हैं जिसके जरिए वह किसानों को बेहतर खेती के लिए टेक्नोलॉजी, बीज, खाद आदि के साथ-साथ मार्केटिंग में भी मदद कर रहे हैं. राज अपने गांव के पहले सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और अब बिजनेसमैन भी. 

किसान के घर जन्मे राज 
चाय की दुकान चलाने वाले और दिहाड़ी खेत मजदूर के रूप में काम करने वाले एक भूमिहीन किसान के घर जन्मे, राज यादव बचपन से ही खेती में मुश्किलों को देखते हुए बड़े हुए थे. उनके पिता दुकान चलाने के साथ-साथ दूसरों के खेतों में काम भी करते थे. राज भी बचपन में चाय की दुकान पर अपने पिता की मदद करते थे. इस सबके साथ उन्होंने यह भी देखा कि कैसे रसायनिक उर्वरक इस्तेमाल करने से मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है. 

राज हमेशा से इन परेशानियों को हल करना चाहते थे. राज ने अपने गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. उन्होंने 10वीं क्लास में टॉप किया था और तब गांव के लोगों और परिवार ने मेरी बहुत प्रशंसा की. गांव में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, राज ने उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय, (अब डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय), मेरठ से कंप्यूटर साइंस में बी.टेक किया. 

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जॉब के बाद शुरू की अपनी कंपनी 
पोस्ट-ग्रेजुएशन के बाद, राज नौकरी की तलाश में दिल्ली चले गए. उन्होंने एक छोटी आईटी कंपनी में जूनियर एक्जीक्यूटिव के रूप में शुरुआत की. उनकी सैलरी तब मात्र 3000 रुपए थी. उनके पास रहने का भी सही ठिकाना नहीं था लेकिन मेहनत और लगन से उन्होंने अपनी राह बनाई. कुछ सालों में ही वह 80,000 रुपये के मासिक वेतन के साथ अनिल नंदा समूह में डीजीएम के स्तर तक पहुंचे. इसके बाद, राज ने 2012 में लखनऊ में अपना खुद का आईटी बिजनेल, 18 Pixel स्थापित किया. 

18 पिक्सल के साथ उनका लक्ष्य यूपी में युवाओं को नौकरी देना था. उन्होंने अकेले शुरुआत की, लेकिन जैसे-जैसे उन्हें ज्यादा प्रोजेक्ट मिलने लगे तो और लोगों को उन्होंने जोड़ा. उनकी कंपनी स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित वेबसाइट और ऐप डिज़ाइन करती है और उन्हें सरकारी और निजी समूहों को ऑफर करती है. टाटा कैंसर, एम्स और यूपी सरकार आदि को उन्होंने सर्विसेज दी हैं. अब, उनकी कंपनी में 150 इंजीनियर हैं और उनका टर्नओवर सात करोड़ से ज्यादा है. 

लॉकडाउन में आया एग्रो कंपनी का आइडिया 
लॉकडाउन में अपने गांव लौटने से पहले तक राज सॉफ्टवेयर कंपनी में बिजी थे. यहां पर उन्होंने देखा कि घर के बैकयार्ड में घास काफी बढ़ गई है तो वह इसे काटना चाहते थे. साथ ही, अपने घर के पौधों के विकास को बढ़ावा देने के लिए पीजीपीआर इस्तेमाल करने की सोची. लेकिन उन्हें गांव में या इसके आसपास कहीं भी घास काटने वाली मशीन और पीजीपीआर नहीं मिला. उसी साल के अंत में राज वापिस लखनऊ आ गए. 

द वीकेंड लीडर की रिपोर्ट के मुताबिक, एक दिन उन्हें उनके पिता की कॉल आई. जिन्होंने उन्हें बताया कि उन्होंने घास काटने वाली मशीन ऑनलाइन ऑर्डर करके मंगवाई है. तब उन्हें लगा कि जब उनके पिता ऐसा कर सकते हैं तो दूसरे किसान भी खेती के लिए प्रोडक्ट्स मंगवा सकते हैं. यहां से उनके दिमाग में एग्रीटेक कंपनी का विचार आया. 

शुरू में, उन्होंने एग्रीजंक्शन के नाम से कंपनी शुरू की, लेकिन आज इसे 'Gramik' के नाम से जाना जाता है. जून 2021 में, राज ने इसकी शुरुआत की. इसके जरिए उनका लक्ष्य है कि किसानों को बिना शहर जाए अपनी फसल और कमाई बढ़ाने के साधन मिल जाएं. ग्रामिक के तहत वह जिलों के ब्लॉक्स में किसान समूह बनाए जाते हैं. क्लस्टर बन जाने के बाद, ग्रामिक किसानों को बेहतर इनकम देने वाली फसल उगाने से लेकर मार्केटिंग तक में मदद करता है.  

तीन लाख से ज्यादा किसानों की मदद 
ग्रामिक किसानों को बीज, उर्वरक और खेती के उपकरण आदि बहुत ही सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराता है. किसानों को अपना गांव छोड़े बिना उनकी जरूरत की चीजें मिल जाती हैं. ग्रामिक ने भारत में 3 लाख से ज्यादा किसानों की मदद की है. राज के ग्रामिक में अब खेती के विशेषज्ञों से लेकर तकनीकी विशेषज्ञों तक 200 लोग काम करते हैं. लखनऊ के साथ-साथ उनका पुणे में भी ऑफिस है. 

आज उनका टर्नओवर 100 करोड़ से ज्यादा है. अपनी दो कंपनियों के अलावा, राज ने अपने गांव में 'अंकुरन स्कूल ऑफ लीडरशिप' नाम से एक टॉप-क्लास स्कूल शुरू किया है. अंग्रेजी माध्यम के इस स्कूल में LKG से 8वीं कक्षा तक बच्चे पढ़ते हैं. लड़कियों को स्कूल में मुफ्त में शिक्षा दी जाती है. राज का लक्ष्य ग्रामीण भारत की छवि बदलना है.