जम्मू-कश्मीर में अनंतनाग के एक गांव से ताल्लुक रखने वाले किसान अब्दुल अहद लोन एक उद्यमी है. अपने Vermicompost Business से उन्होंने न सिर्फ अपनी बल्कि राज्य में बहुत से किसानों की जिंदगी बदली है. उन्होंने कमर्शियल वर्मीकम्पोस्ट यूनिट्स स्थापित की हैं और इसके जरिए आजीविका और रोजगार बढ़ा रहे हैं. अब्दुल आज पूरे राज्य के किसानों के लिए एक प्रेरणा हैं. दूर-दूर से किसान उनकेअहद एग्रो फार्म पर ट्रेनिंग के लिए आते हैं.
कैसे हुई शुरुआत
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सब 1994 में अब्दुल कहीं ट्रेन में सफर कर रहे थे. उन्होंने ट्रेन में दो सिक्कम की महिलाओं को केंचुआ खाद यानी कि वर्मीकम्पोस्ट और इसके फायदों के बारे में बात करते सुना. उन्हें इसमें काफी दिलचस्पी आई और उन्होंने अपने यहां केवीके में जाकर इस बारे में जाना. उन्होंने केवीके अनंतनाग की देखरेख और मार्गदर्शन में 6 क्विंटल प्रति गड्ढे की क्षमता वाले 30 कंक्रीट गड्ढों वाली वर्मीकम्पोस्ट इकाई की स्थापना की. लेकिन उस समय वर्मीकंपोस्ट के बारे में जम्मू के लोगों को ज्यादा ठीक से नहीं पता था तो उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला. जिस कारण उन्होंने बिजनेस बंद कर दिया और खेती पर फोकस किया.
लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है और अब अब्दुल को पूरे जम्मू-कश्मीर में जाना जा रहा है. साल 2002 में उन्होंने एक बार फिर छोटे सेटअप से शुरुआत की. पहले उन्होंने इस खाद को अपने खेतों में इस्तेमाल किया. धीरे-धीरे उन्हें ऑर्डर मिलने लगे. सबसे पहले उन्होंने दो ऑर्डर पूरे किए और आज वह हर दिन सैकड़ों ऑर्डर पूरे कर रहे हैं.
किसानों को दी ट्रेनिंग
इस किसान का कहना है, "जब मैंने शुरुआत की तो कश्मीर में वर्मीकम्पोस्ट की कोई अवधारणा नहीं थी और इसे शुरू करने से पहले मुझे खेती में दिलचस्पी थी." लेकिन आज उनका काम बहुत अच्छा चल रहा है. आज उनकी वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट से हर दिन 100 से 120 बैग वर्मीकम्पोस्ट बन रहा है और हर एक बैग में 50 किलो वर्मीकंपोस्ट होता है. आज उनकी दो यूनिट्स काम कर रही हैं.
वर्मीकम्पोस्ट के कई फायदे हैं और रासायनिक उर्वरक मानव स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं हैं. उनके प्रयासों से पूरा गांव जैविक खाद का उपयोग कर रहा है. वह आसपास के गांवों से गाय का गोबर, रसोई का कचरा, पौधों की पत्तियां, मक्के का कचरा, घास आदि लाते हैं और इसे वर्मीकम्पोस्ट में बदल देते हैं. इसके अलावा, वह बहुत से लोगों को ट्रेनिंग भी दे चुके हैं और ये सभी किसान अपना काम भी कर रहे हैं. बात उनके टर्नओवर की करें तो वह सालाना एक करोड़ से ज्यादा टर्नओवर कमाते हैं.