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Vinay Kumar Balakrishnan: विदेशी ने दिखाई अकड़ तो नौकरी छोड़ लौटे वतन, गेहूं की भूसी से बनाई प्लेट्स तो चावल के आटे से स्ट्रॉ

केरल के कोच्चि के रहने वाले विनय कुमार बालाकृष्णन दुबई में एक पार्टी में भाग लेने के दौरान जिस थाली में उन्हें खाना परोसा गया था, उसे देखकर मोहित हो गए थे. यह थाली गेहूं की भूसी से बनाई गई थी. तभी से उन्होंने ऐसी थाली बनाने की ठान ली थी.

Vinay Kumar Balakrishnan (photo social media) Vinay Kumar Balakrishnan (photo social media)
हाइलाइट्स
  • केरल के कोच्चि के रहने वाले विनय बना रहे गेहूं की भूसी से प्लेट्स

  • राइस ब्रान और बायोप्लास्टिक का भी करेंगे उपयोग

हम घर में शादी-विवाह या कोई अन्य फंक्शन होता है तो लोगों को खाना खिलाते हैं. बर्तन धोने से बचने के लिए डिस्पोजल की थाली, दोने और चम्मच का उपयोग करते है, जो काफी नुकसानदायक होता है. आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बता रहे हैं जो गेहूं के चोकर व भूसी से प्लेट बना रहे हैं तो चावल के आटे से स्ट्रॉ.

ऐसे कंपनी शुरू करने का किया फैसला
केरल के कोच्चि के रहने वाले विनय कुमार बालाकृष्णन 2018 में मॉरीशस स्थित एक बीमा कंपनी के सीईओ के रूप में काम कर रहे थे. दुबई में एक पार्टी में भाग लेने के दौरान जिस थाली में उन्हें खाना परोसा गया था, उसे देखकर वह मोहित हो गए थे. यह थाली गेहूं की भूसी से बनाई गई थी. विनय को मालूम चला कि पार्टी में इस्तेमाल की जाने वाली प्लेट्स पोलैंड की कंपनी ने बनाई है. उन्होंने कंपनी से भारत में प्लांट लगाने के लिए कहा. कंपनी ने ऐसा करने से मना कर दिया. कंपनी ने जवाब दिया था उनके उत्पाद भारतीयों के लिए नहीं थे. विनय कहते हैं इससे मुझे गुस्सा आ गया. मैंने अपनी नौकरी छोड़ने और देश में ऐसी प्लेट बनाने वाली कंपनी शुरू करने का फैसला किया. उनकी पत्नी इंदिरा विनय कुमार ने भी अपनी बैंकिंग की नौकरी छोड़ दी और उनके साथ जुड़ गईं. विनय कुमार कंपनी के संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं जबकि इंदिरा सह-संस्थापक हैं.

अपने देश में रिसर्च 
विनय कहते हैं कि गेहूं और चावल से प्लेट बनाने के लिए रिसर्च की शुरुआत मैंने सबसे पहले अपने देश से की. फिर जानकारी मिली कि CSIR-NIIST ने नारियल के छिलके से इको फ्रेंडली बर्तन बना रहे हैं. मैंने उन्हें गेहूं के चोकर से क्रॉकरी बनाने के बारे में बताया. करीब एक से डेढ़ साल की रिसर्च के बाद वे इस प्रयास में सफल हुए. गेहूं के चोकर से प्लेट बनाने की मशीन का निर्माण भी उन्होंने खुद की. यह मशीन मेड इन इंडिया है, क्योंकि मशीन का हर एक पार्ट देश की कंपनियों से लिया गया है. 

ऐसे दिया नाम
विनय कहते हैं कि यदि बात बायोडिग्रेडेबल प्लेट की है तो केले के पत्ते से बेहतर कुछ नहीं है. सदियों से हम केरल में खाना खाने के लिए केले के पत्तों का उपयोग करते आ रहे हैं क्योंकि यह हमारी संस्कृति है इसलिए मैंने सोचा कि इस कॉन्सेप्ट के अंतर्गत हम और क्या-क्या कर सकते हैं. विनय कहते हैं कि हमने अपने ब्रांड का नाम इसी से दिया है क्योंकि मलयालम में केले के पत्ते को थूशनिला कहते हैं और उसी से हमने अपने उत्पाद का नाम थूशान रखा. 

कैसे करें प्लेटों का यूज
गेहूं और चावल से बने इन प्लेटों को उपयोग करने के बाद खाया भी जा सकता है. साथ ही पशुओं के लिए चारे की तरह भी उपयोग किया जा सकता है. ये प्लेट जमीन के अंदर कुछ ही दिनों में सरलता से गल जाते हैं. यदि इन्हें जंगलो में डाल दिया जाएगा, तो यह कुछ ही समय पश्चात खाद में तब्दील हो जाएंगे. प्लेट की लंबी शैल्फ लाइफ है और यह फंगस और बैक्टीरिया प्रतिरोधी भी है.

सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल करना चाहते हैं कम  
विनय की कंपनी का प्रमुख उत्पाद गेहूं की भूसी से बने डिनर प्लेट और चावल के आटे से बने पीने के स्ट्रॉ हैं. कंपनी का अपकमिंग प्रोडक्ट राइस ब्रान और बायोप्लास्टिक से बना फोर्क है. उन्होंने बताया कि हमारा उद्देश्य थूशन को बायोडिग्रेडेबल प्लेट्स और कटलरी का पर्याय बनाना है. हम जितना हो सके सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करना चाहते हैं. 

कई कंपनियां कर चुकी हैं संपर्क
विनय कुमार ने बताया कि कंपनी की अब तेलंगाना और कोच्चि में अपनी विनिर्माण इकाइयां हैं. हालांकि विनय अभी तक पोलैंड कंपनी के अपमान को नहीं भूले हैं. उन्होंने बताया कि इसी विदेशी कंपनी ने संभावित सहयोग के लिए छह महीने पहले उनसे संपर्क किया था. हालांकि उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा कि पोलैंड कंपनी के विपरीत, मैं अपनी तकनीक को किसी भी व्यक्ति के साथ साझा करने के लिए तैयार हूं, जिसे इसकी आवश्यकता है. पहले ही रूस, ब्रिटेन और नाइजीरिया की कंपनियां हमसे संपर्क कर चुकी हैं. थूशान पीएम किसान सम्मेलन के लिए केरल से चुनी गई पांच कंपनियों में से एक थी. कंपनी ने UNDP, FICCI, स्टार्टअप मिशन, केरल सरकार और EY सहित संगठनों से मान्यता प्राप्त की है. विनय कहते हैं गेहूं की भूसी की खरीद करके स्थानीय किसानों की भी वे आर्थिक मदद करते हैं.