
आज की पीढ़ी किसी भी सेक्टर में काम करें लेकिन वे सबसे पहले अपनी मेंटल हेल्थ को रखते हैं. अपनी मेंटल हेल्थ को बैलेंस करने के लिए वे सबकुछ करने को तैयार हैं जैसे टॉक्सिक जॉब छोड़ना या काम से ब्रेक लेना आदि. आज लोग खासकर जेन ज़ी बिना किसी संकोच के वर्क-लाइफ बैलेंस करने के लिए जॉब से छोटे ब्रेक ले रहे हैं और इस ट्रेंड को ही 'माइक्रो-रिटायरमेंट' नाम दिया जा रहा है.
क्या है माइक्रो-रिटायरमेंट
जब कोई कर्मचारी अपने करियर से कुछ महीनों या साल का ब्रेक लेता है तो इसे माइक्रो रिटायरमेंट कहते हैं. इसका मतलब यह हो सकता है कि थकान दूर करने के लिए छुट्टी पर जाना या कोई शौक पूरा करना. कुछ लोग माइक्रो रिटायरमेंट लेक अपने किसी पैशन को फॉलो करते हैं तो कोई साइड बिजनेस को टाइम देता है.
एचआर कंसल्टेंसी द राइज जर्नी के जेस ओस्रो ने बिजनेस इनसाइडर को बताया कि यह फ्लेक्सिबल कॉन्सेप्ट है जो हर इंसान के लिए अलग-अलग हो सकती है. यानी कि लोगों के लिए माइक्रो-रिटायरमेंट लेने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं.
माइक्रो-रिटायरमेंट के फायदे
बताया जा रहा है कि युवा वर्किंग प्रोफेशनल्स ने अपनी मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता देना शुरू किया है. मेंटल हेल्थ को बैलेंस करने के लिए लोग अपने बिजी शेड्यूल से ब्रेक ले रहे हैं. ऐसे लोग, जो अभी भी रिटायरमेंट की उम्र से काफी दूर हैं वे आमतौर पर यात्रा करने के लिए लंबे समय तक काम से छुट्टी लेते हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर आप इस ब्रेक को सही से इस्तेमाल करें तो यह फायदेमंद हो सकता है.
सिग्ना के एक सर्वे से पता चला है कि जेन ज़ी अक्सर ऑफिस में सबसे कम वेतन पाने वाली और सबसे ज्यादा स्ट्रेस में रहने वाली जनरेशन होती है. दूसरी ओर, मिलेनियल्स हैं जो मिडिल लेवल पर काम कर रहे हैं और अब बर्नआउट हो चुके हैं. ऐसे लोगों के लिए ये ब्रेक सबसे ज्यादा फायदेमंद होते हैं. लोगों को ब्रेक में खुद पर ध्यान देने का समय मिलता है, उनका रूटीन बदलता है और इससे मन अच्छा होता है.
बर्नआउट क्या है और इसे कैसे रोकें?
जब लगातार काम करने के कारण किसी व्यक्ति की मेंटल और फिजिकल हेल्थ प्रभावित होने लगती है तो इसे बर्नआउट कहा जाता है. रिसर्चर्स का कहना है कि कम से कम 7% प्रोफेशनल्स बर्नआउट से प्रभावित हैं. बर्नआउट का निगेटिव असर पड़ सकता है जैसे हाई ब्लड प्रेशर, नींद की गड़बड़ी, अवसाद और चिंता आदि. इस कारण लॉन्ग टर्म करियर प्रभावित होता है.
बर्नआउट के कई कारण हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, नौकरी, टीम या संगठनात्मक स्तर पर बदलाव से चिंता हो सकता है या बहुत ज्यादा स्ट्रेस हो सकता है.
इसके लिए, लोग माइक्रो-रिटायरमेंट ले रहे हैं ताकि खुद को फिजिकल और इमोशनल लेवल पर एनर्जेटिक कर सकें. अपने फोकस पर काम करें, अपनी आदतों को सुधारें जैसे नींद की क्वालिटी बेहतर करना, न्यूट्रिशन पर ध्यान देना, अपना कोई शौक जैसे जर्नलिंग, ट्रेवलिंग करना आदि.
माइक्रो-रिटायरमेंट कैसे लें?
जिन कर्मचारियों की कंपनियां छुट्टी नहीं देती हैं, उन्हें अपनी फाइनेंशियल स्ट्रेटजी पर काम करना चाहिए. आपको लॉन्गटर्म सोचना चाहिए ताकि पैसे की दिक्कत न हो. अपनी स्किल्स को अपडेट करते रहें. हर महीने खुद की स्किल्स पर काम करना चाहिए. द लैटिन टाइम्स के अनुसार, इन तरीकों को अपना सकते हैं: