क्या आपने कभी गौर किया है शैम्पू, साबुन, चिप्स, कोलगेट या फिर पारले जी जैसे बिस्किट के पैकेट की कीमत तो वही है लेकिन उनके पैकेट अब पहले से छोटे नजर आते हैं. ज्यादातर लोग इस बात पर गौर नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है सामान तो उन्होंने उसी कीमत पर खरीदा है जितनी कीमत पर पहले खरीदते थे. ये सब हो रहा है Shrinkflation नीति की वजह से.
क्या है Shrinkflation नीति
श्रिंकफ्लेशन ‘श्रिंक’ (सिकुड़ना) और ‘इंफ्लेशन’ (महंगाई) को मिलाकर बना है. इसके तहत सामान का दाम तो उतना ही रहता है लेकिन उसकी मात्रा Shrink यानी सिकुड़ती होती चली जाती है. यानी दाम और मात्रा के बीच आपको इस कदर फंसाया जा रहा है कि आप इसे समझ नहीं पा रहे.
किसने किया था श्रिंकफ्लेशन शब्द का प्रयोग
श्रिंकफ्लेशन शब्द का प्रयोग पहली बार 2009 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री पिप्पा मालमग्रेन ने किया था. एफएमसीजी उद्योग में श्रिंकफ्लेशन अब आम बात हो गई है, खासकर खाने और पीने का सामान बनाने वाली कंपनियों में. यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाज़ारों से निकलकर श्रिंकफ्लेशन भारतीय बाजार में बड़े स्तर पर प्रभावी हो रहा है.
भारत में इसके जरिए कैसे लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है?
दरअसल भारत में एफएमसीजी कंपनियों ने बढ़ती मुद्रास्फीति के दबाव से निपटने के लिए कीमतों में बढ़ोतरी के बजाय पैकेट के आकार को छोटा करने की रणनीति अपनाई है. एफएमसीजी कंपनियां ये बात अच्छे से जानती हैं कि दाम बढ़ाने के बाद प्रोडक्ट के मांग में कमी आएगी. इसलिए शैम्पू, तेल, चिप्स और आपकी जरूरत का हर सामान बनाने वाली कंपनियों ने आपको झांसा देने के लिए अपने प्रोडक्ट के दाम तो वैसे ही रहने दिए हैं लेकिन उनकी मात्रा में कमी कर दी है. यानी पारले- जी के 5 रुपये के पैकेट में मिलने वाले बिस्किट्स की संख्या 10 से घटाकर 8 कर दी गई है. ज्यादातर लोग इसपर गौर ही नहीं करते हैं.
दाम बढ़ाने का जोखिम नहीं उठाना चाहती हैं कंपनियां
वजन घटाकर उसी कीमत पर बेचना एफएमसीजी कंपनियों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है. बढ़ी लागत की भरपाई के लिए कीमत बढ़ाने की तुलना में श्रिंकफ्लेशन ज्यादा आसान तरीका है. कई बड़ी एफएमसीजी कंपनियों ने श्रिंकफ्लेशन का विकल्प चुना है. हिंदुस्तान यूनिलीवर, नेस्ले, डाबर, पीएंडजी, कोका-कोला और पेप्सिको जैसी फर्मों ने भारत में अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए इस पद्धति को अपनाया है क्योंकि उन्हें बाजार में अपनी हिस्सेदारी खोने का डर है. कोविड और रूस यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों की लागत और सप्लाई चेन पर खर्च बढ़ गया है. कमोटिडी, एनर्जी और लेबर की कीमतों का सामना करने के लिए ये लोग श्रिंकफ्लेशन की नीति पर काम कर रहे हैं. भारत में चिप्स, बिस्किट और नमकीन के छोटे पैकेट का मार्केट बहुत बड़ा है. ऐसे में कंपनियां दाम बढ़ाने का जोखिम नहीं उठाना चाहती हैं.