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जानिए कौन हैं Visually Challenged Entrepreneur श्रीकांत बोल्ला, खड़ी की करोड़ों की कंपनी, अब आ रही है इनकी जिंदगी पर फिल्म

अभिनेता राजकुमार राव की फिल्म, Srikanth का ट्रेलर आ चुका है. आपको बता दें कि यह फिल्म भारत के Visually Challenged Entrepreneur, श्रीकांत बोल्ला के जीवन पर आधारित है.

Srikanth Film based on Srikanth Bolla's Life Srikanth Film based on Srikanth Bolla's Life

हाल ही में, अभिनेता राजकुमार राव की आगामी फिल्म, श्रीकांत का ट्रेलर रिलीज हुआ है. ट्रेलर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की एक कोट के साथ शुरू होता है- सपने वो नहीं होते जो आप सोते हुए देखते हैं, बल्कि सपने आपको सोने नहीं देते. यह सिर्फ एक लाइन नहीं है बल्कि हमारे देश में एक ऐसा इंसान है जिसने इस बात को सही साबित करके दिखाया है. और उसी इंसान के जीवन पर आधारित है यह फिल्म, जिसका निर्देशन तुषार हीरानंदानी ने किया है और इसमें ज्योतिका, आलिया एफ और शरद केलकर भी सहायक भूमिकाओं में हैं

यह फिल्म भारत के विजुअली चैलेंज्ड उद्यमी श्रीकांत बोल्ला के जीवन पर आधारित है. आंखों की रोशनी न होने के कारण, बचपन से ही उनकी जिंदगी बहुत मुश्किल रही. यहां तक कि रिश्तेदारों ने उनकी मां से कहा कि वह इस बच्चे को कहीं दे आएं. लेकिन श्रीकांत के माता-पिता ने ऐसा नहीं किया और आज पूरी दुनिया के लिए श्रीकांत मिसाल हैं. 

आसान नहीं थी स्कूलिंग 
श्रीकांत बोल्ला का जन्म 1991 में आंध्र प्रदेश के सीतारामपुरम गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. गरीब होने के अलावा, बोल्ला के न देख पाने के कारण उनके जीवन में और भी मुश्किलें आती रहीं. बोल्ला के माता-पिता को कई लोगों ने सलाह दी कि वे इस बच्चे को अनाथ आश्रम वगैरा में दे दें क्योंकि उनका मानना ​​था कि वह बुढ़ापे में उनकी देखभाल नहीं कर पाएगा. लेकिन बोल्ला के माता-पिता ने किसी की नहीं सुनी और उन्होंनेअपने बेटे को प्यार और स्नेह से बड़ा किया और उसकी शिक्षा को प्राथमिकता दी. 

श्रीकांत को नेत्रहीन बच्चों के लिए एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिला दिलाया गया. इसके बाद उनका परिवार हैदराबाद (तब आंध्र प्रदेश राज्य का शहर) चला गया. अपने माता-पिता से दूर होने के बावजूद, बोल्ला जल्दी ही स्कूल में रम गए. उन्होंने तैरना, शतरंज खेलना और गेंद से क्रिकेट खेलना भी सीखा. 

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स्कूल ने किया साइंस देने से मना 
बोल्ला हमेशा एक इंजीनियर बनना चाहते थे और अपने सपने को पूरा करने के लिए वह साइंस और मैथ से पढ़ना चाहते थे. मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद बोल्ला ने 12वीं में विज्ञान को चुना. हालांकि, उन्हें स्कूल के अधिकारियों ने साइंस देने से मना कर दिया. उनसे कहा गया कि साइंस विषय चित्र और ग्राफ़ जैसे विजुअल एलीमेंट्स के साथ नेत्रहीन छात्रों के लिए चैलेंजिंग है. 

स्कूल ने उनसे कहा कि वह आर्ट्स, लैंग्वेज या सोशल साइंसेज जैसे विषय ले सकते हैं. कई स्कूलों से रिजेक्शन का सामना करने के बाद, बोल्ला ने भारतीय शिक्षा प्रणाली पर मुकदमा करने का फैसला किया. अपने शिक्षक और एक वकील की मदद से, उन्होंने राज्य के शिक्षा कानून में सुधार के लिए आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय में अपील की और छह महीने के बाद मुकदमा जीत लिया. 

MIT से की है पढ़ाई 
इसके बाद उन्होंने स्टेट बोर्ड स्कूल में पढ़ाई की, जहां उन्होंने गणित और विज्ञान से पढ़ाई की और 98% के औसत ग्रेड के साथ अपनी क्लास में टॉप किया. उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के लिए आवेदन किया. सभी भेदभावों का सामना करने के बावजूद, बोल्ला का न देख पाना एक बार फिर उनके दाखिले में बाधा बन गया. हालांकि, उन्होंने उम्मीद नहीं खोई और संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ इंटिट्यूट्स में आवेदन किया. उन्हें MIT, स्टैनफोर्ड, बर्कले और कार्नेगी मेलन सहित टॉप चार संस्थानों में सीटें हासिल कीं.

बोल्ला ने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से पढ़ाई की. यहां दाखिला पाने वाले वह पहले अंतरराष्ट्रीय दृष्टिबाधित छात्र बन गए. शिक्षा में अच्छे प्रदर्शन के अलावा, बोल्ला को भारत के राष्ट्रीय स्तर के विशेष रूप से दिव्यांग क्रिकेट और शतरंज खिलाड़ी के रूप में भी पहचाना जाता है.

शुरू की अपनी Bollant Industries 
MIT से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, बोल्ला को अमेरिका में कई कॉर्पोरेट जॉब के ऑफर मिले. हालांकि, वह भारत में कुछ नया करना चाहते थे. बोल्ला 2005 में एक युवा नेता बने और पूर्व भारतीय राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के लीड इंडिया 2020: द सेकेंड नेशनल यूथ मूवमेंट में शामिल हो गए. इस आंदोलन ने भारत से गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी को खत्म करने पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे इसे 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बनने में मदद मिलेगी.

जल्द ही, बोल्ला अपने वतन लौट आए और 2011 में कई तरह की दिव्यांगता वाले बच्चों के लिए समनवाई सेंटर की सह-स्थापना की, जहां उन्होंने आंखों से दिव्यांग छात्रों के लिए एक कंप्यूटर रिसर्च और ट्रेनिंग सेंटर और डिजिटल लाइब्रेरी लॉन्च की. एक साल बाद, उन्होंने अपना खुद का स्टार्ट-अप व्यवसाय, बोलैंट इंडस्ट्रीज स्थापित करने का फैसला किया. 

बोलैंट इंडस्ट्रीज पर्यावरण-अनुकूल डिस्पोजेबल प्रोडक्ट्स बनाती है जो दिव्यांग लोगों और इनफॉर्मल शिक्षा वाले लोगों को रोजगार देती है. पिछले कुछ सालों में कंपनी की ग्रोथ अच्छी हुई है. इस कंपनी में 600 से ज्यादा कर्मचारी हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत शारीरिक रूप से अक्षम हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक बोल्ला की कंपनी में बिजनेस टाइकून रतन टाटा ने भी निवेश किया है. 

बोल्ला की उपलब्धियां
अपने करियर में बोल्ला को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. 2016 में, उन्हें ECLIF मलेशिया से इमर्जिंग लीडरशिप अवार्ड मिला. इसके अगले साल अप्रैल में, बोल्ला को फोर्ब्स 30 अंडर 30 एशिया सूची में नामित किया गया था, वह उस साल इस श्रेणी में एकमात्र भारतीय थे. बोल्ला को 2019 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय उद्यमिता पुरस्कार से भी सम्मानित किया था. उसी साल, बोल्ला को यूके में वन यंग वर्ल्ड ने एंटरप्रेन्योर ऑफ द ग्लोब पुरस्कार से भी सम्मानित किया था.