क्या आप जानते हैं आपकी यूज की हुई बैटरी कहां है? शायद कूड़ेदान में? भारत में हर साल करीब 230 करोड़ ड्राई सेल बैटरी फेंक दी जाती हैं. 1 बैटरी 167,000 लीटर पेयजल को प्रदूषित कर सकती है. लेकिन इससे बचने का उपाय दो युवाओं ने निकाल लिया है. उन्होंने एलो वेरा का उपयोग करके, एलो ईसेल बनाई है. ये दुनिया की पहले 100% पर्यावरण के अनुकूल और गैर-खतरनाक बैटरी है.
दरअसल, पोर्टेबल बिजली की खपत करने वाले गैजेट्स में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, जिसके कारण बैटरी सेल की वैश्विक मांग बढ़ रही है. हर साल ग्राहक अरबों बैटरियों को फेंक देते हैं, जिनमें से सभी में खतरनाक या कोरोसिव केमिकल होते हैं. कुछ बैटरियों में मरकरी, लीड और लिथियम जैसे जहरीले तत्व होते हैं, जो इसे एक खतरनाक कचरा बना देते हैं, और लैंडफिल से निकलने पर स्वास्थ्य और इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं.
बचाव के लिए बायोफ्यूल एलो-Ecell
एलोवेरा व्यापक रूप से एक प्राकृतिक मॉइस्चराइजर और हर्बल इलाज के रूप में जाना जाता है. लेकिन एलो-Ecell ने इससे बिजली और बिजली बैटरी बनाई है. ये लोग साढ़े तीन साल से इस पर काम कर रहे हैं. इनका मकसद ई-कचरे की चुनौतियों को हल करना है. एलो ईसेल के अनुसार एलो बैटरिया गैर-विस्फोटक हैं और इन्हें घड़ियों, खिलौनों और रिमोट कंट्रोल में इस्तेमाल किया जा सकता है. ये बायोफ्यूल बैटरियां लो, मीडियम और हाई ड्रेन डिवाइस को पावर देने में सक्षम हैं. बैटरी निर्माताओं का अनुमान है कि भारत में इन बैटरियों की औसत लागत लगभग 9-10 रुपये प्रति यूनिट होगी.
बड़े-बड़े पद छोड़ पर्यावरण के लिए कर रहे काम
लखनऊ की इंजीनियरिंग ग्रेजुएट निमिशा वर्मा और बूंदी, राजस्थान के नवीन सुमन ने 2019 में एलो ईसेल की स्थापना की है. इस बायोफ्यूल को बनाने के लिए उन्होंने एलो के अर्क और कॉस्मेटिक वस्तुओं और दवाओं में पाए जाने वाले हर्बल चीजों को मिलाया है. अमेरिका में सिलिकॉन वैली सक्सेस में नेशनल मार्केटिंग हेड, भारत में बिग स्ट्रीट मार्ट में बिजनेस डेवलपमेंट, डॉक-ऑन-डोर में फाउंडर, नीदरलैंड में एसएनसीसी में नेशनल हेड और टेक्निकल एंड प्रोजेक्ट को छोड़कर दोनों ने पर्यावरण के लिए काम करने का सोचा. निमिशा को श्नाइडर इलेक्ट्रिक, गूगल, इंटेल, नासा, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, न्यू इंग्लैंड यूनिवर्सिटी और ड्रेपर यूनिवर्सिटी द्वारा बायोफ्यूल से चलने वाली हर्बल बैटरी के लिए मान्यता दी गई है.
को-फाउंडर नवीन सुमन शुरुआत से ही कचरा प्रबंधन के बारे में कुछ करना चाहते थे. ऐसे में अपनी जांच के दौरान उन्होंने पाया कि रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाली बैटरियां हानिकारक होती हैं; वे ई-कचरे का एक प्रमुख स्रोत हैं और बीमारी का एक प्रमुख कारण हैं. उन्होंने उस समय एलो बैटरी बनाकर एक ग्रीन एनर्जी ऑप्शन की खोज की.
देशभर में चला रहे हैं कैंपेन
एलो इसेल देशभर में ड्राई सेल को भी इकठ्ठा करने का काम करते हैं. इसे लेकर उन्होंने एक कैंपेन भी चलाया गया है. इस कैंपेन को इस्तेमाल की गई बैटरियों को इकट्ठा करने और जिम्मेदारी से रीसायकल करने के लिए डिजाइन किया गया है. इसके लिए स्कूलों, संस्थानों,एनजीओ, यूएलबी, सरकारी निकायों के साथ हाथ मिलाकर टिकाऊ और एनवायरनमेंट फ्रेंडली बैटरी बनाना है. इसका मकसद खतरनाक बैटरी वेस्ट के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना. जिम्मेदार बैटरी उपयोग और निपटान के बारे में जागरूकता बढ़ाना. उपयोग की गई बैटरियों को रीसायकल करना है.