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Success Story: 10 साल पहले सस्ती ब्रोकरेज सर्विस के आईडिया के साथ शुरू हुई थी जीरोधा, अब "Entrepreneur of the Year" बन चुके हैं नितिन कामथ

ब्रोकरेज फर्म जीरोधा के फाउंडर नितिन कामथ को हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से "एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर" का पुरस्कार मिला है. जिसके बाद ट्विटर पर उन्होंने जीरोधा कैसे शुरू हुआ इसकी कहानी साझा की है.

Entrepreneur of the Year बन चुके हैं नितिन कामथ Entrepreneur of the Year बन चुके हैं नितिन कामथ
हाइलाइट्स
  • Entrepreneur of the Year बन चुके हैं नितिन कामथ

  • 17 साल की उम्र से शुरू की थी ट्रेडिंग

साल 2008 में दुनियाभर में मंदी का दौर चल रहा था, तो उसका असर ब्रोकिंग इंडस्ट्री पर भी पड़ा था. यहां तक की साल 2009-10 में भी कई बिजनेस इसके असर से उबर नहीं पाए थे. कई बड़ी-बड़ी कंपनियां अपना ब्रोकरेज बिजनेस समेट कर निकल रही थीं, लेकिन उस वक्त एक शख्स के दिमाग में कुछ और ही प्लानिंग चल रही थी. हम बात कर रहे हैं Zerodha के फाउंडर नितिन कामथ की. जिस वक्त दुनियाभर में ब्रोकरेज इंडस्ट्री की ग्रोथ नीचे जा रही थी, उस वक्त नितिन कामथ ब्रोकरेज इंडस्ट्री में कदम रखने की सोच रहे थे.

17 साल की उम्र से शुरू की थी ट्रेडिंग
नितिन कामथ खुद एक मंझे हुए ट्रेडर थे, क्योंकि उन्होंने 17 साल की उम्र से ही ट्रेडिंग करना शुरू कर दिया था. उन्होंने 3-4 ट्रेडिंग करके पैसे बचाए, लेकिन उन्हें डेरिवेटिव्स में गंवा दिए. उसके बाद नितिन ने एक कॉल सेंटर कंपनी ज्वाइन की. नितिन दिन में ट्रेडिंग करते और रात में कॉल सेंटर में काम करते थे. साल 2001 से 2004-05 तक नितिन ने कॉल सेंटर में काम किया.
 
उसी दौर में जिम में नितिन की मुलाकात एक बिजनेसमैन से हुई, जो अमेरिका से हाल ही में इंडिया आए थे. एक दिन बातों-बातों में उन्होंने नितिन से पूछा कि काम क्या करते हो? नितिन ने फौरन उन्हें अपना ट्रेडिंग अकाउंट दिखाया. उस शख्स ने फौरन इंप्रेस होकर नितिन को अपने पैसे मैनेज करने को दे दिया. इस तरह नितिन को पहला क्लाइंट मिला, जिसके बाद नितिन ने कॉल सेंटर की जॉब छोड़ दी. धीरे-धीरे नितिन के पास और क्लाइंट आते गए. उसके बाद नितिन ने रिलायंस मनी के लिए सब-ब्रोकर बनने का फैसला किया.

आपदा में निकाला अवसर
फिर आया फाइनेंशियल क्राइसिस वाला दौर यानी साल 2008. उस वक्त मार्केट सिर्फ नीचे जा रहा था. उस वक्त तक नितिन को ट्रेडिंग का अच्छा खासा एक्सपीरियंस हो चुका था, इस वजह से उन्होंने मार्केट को शॉर्ट करके अच्छे खासे पैसे बनाए. उस वक्त तक नितिन 12 ब्रोकरेज फर्म्स के साथ काम कर चुके थे. इस बीच नितिन ने ये भी महसूस किया कि ट्रेडर्स ऑनलाइन शिफ्ट हो रहे हैं, और ब्रोकर्स पुराने हिसाब से ही काम कर रहे हैं. ये ब्रोकर्स हर ट्रांजैक्शन पर ब्रोकरेज चार्जेज लगाते हैं, जो यंग यूजर्स को ट्रेडिंग/इनवेस्टिंग से दूर रख रहे हैं. उनकी टेक्नोलॉजी और तरीका काफी पुराना है. उन्हें उस मौके को एक अपॉर्चुनिटी के तौर पर देखा और इस तरह उनके मन में खुद की ब्रोकरेज फर्म करने का आईडिया आया.

किस्मत ने भी दिया नितिन का साथ
यहां पर किस्मत ने भी नितिन का साथ दिया. स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया NSE उस समय अपने मेंबर्स को फ्री ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर दे रही थी. इसलिए अगर नितिन ब्रोकरेज बिजनेस शुरू करते तो उन्हें बेशक टेक्नोलॉजी पर खर्च नहीं करना पड़ता. सारी चीजों का आकलन करने के बाद उन्होंने भाई  निखिल कामथ और 5 लोगों की टीम के साथ मिलकर अपना फर्म शुरू करने का फैसला किया.

और ऐसे जीता लोगों का भरोसा...
शुरुआत से ही नितिन याहू,  मैसेंजर पर ट्रेडिंग कम्युनिटी के बीच काफी पॉपुलर थे. इस तरह उन्होंने वहां यूजर्स के बीत जीरोधा के बारे में लिखकर लोगों के बीच कंपनी को पॉपुलर किया. शुरुआत में 1000 कस्टमर आने में एक साल लगे. हालांकि ये काफी नहीं था. दरअसल रुपये पैसे के मामले में बिजनेस में भरोसा बहुत बड़ी चीज मानी जाती है. नितिन लोगों के बीच यही भरोसा जीतना चाहते थे. तभी साल 2011 में इकनॉमिक टाइम्स ने डिस्काउंट ब्रोकिंग पर एक आर्टिकल लिखा, जिसमें जीरोधा का जिक्र था.  जिसके बाद लोगों का जीरोधा पर भरोसा बढ़ा. जहां हर महीने 100 अकाउंट खुल रहे थे, वहीं अब 300 से 400 अकाउंट खुलने लगे. 

बिना फंडिंग जुटाए बन गई यूनिकॉर्न
इस कंपनी की सबसे खास बात ये है कि अभी तक बिना कोई फंडिंग जुटाए ये कंपनी यूनिकॉर्न बन चुकी है. नितिन ने इस कंपनी को अपने पैसों से शुरू किया था. ऐसा नहीं है कि नितिन ने कभी फंड जुटाने की कोशिश नहीं की. एक इंटरव्यू में नितिन ने बताया है कि 2009 में जब उन्हें पहली बार जीरोधा का आईडिया आया तो वो कुछ वीसी के पास गए थे. लेकिन वीसी को उन पर भरोसा नहीं हुआ. क्योंकि न तो नितिन का एजुकेशन बैकग्राउंड अच्छा था, न ही बिजनेस बैकग्राउंड. हालांकि नितिन को फंडिंग नहीं मिलने का कोई मलाल नहीं है. नितिन कहते हैं कि अच्छा हुआ कि उन्हें फंडिंग नहीं मिली, क्योंकि उस वक्त उन्होंने कई ऐसी चीजें की जिसकी इजाजत एक वीसी उन्हें कभी नहीं देता.

कॉम्पिटिटर्स से कैसे रहती है अलग
साल 2012 में जीरोधा को सबसे पहला कॉम्पीटीशन मिला. एक और ब्रोकरेज फर्म ने भी लो कॉस्ट ट्रेडिंग फैसिलिटी ऑफर करना शुरू किया. इस वक्त जीरोधा भी लो कॉस्ट और ट्रांसपैरेंसी ऑफर कर रही थी, और दूसरी कंपनी भी. इस बीच जीरोधा ने अपने साथ कुछ ऐसा जोड़ने का सोचा जो बाकी ब्रोकरेज फर्म्स के पास नहीं था. जीरोधा ने ब्रोकरेज कैलकुलेटर के साथ ही मार्केटिंग, इनवेस्टिंग और ट्रेडिंग पर खुद से ब्लॉग पोस्ट लिखने शुरू कर दिए. इससे पहले ब्रोकिंग इंडस्ट्री में ऐसा किसी भी सीईओ ने नहीं किया था. आज भी जीरोधा नए-नए इनोवेशन करती रहती है. 

क्यों पड़ा जीरोधा नाम?
दरअसल जीरोधा एक इंग्लिश और एक संस्कृत शब्द को जोड़कर बना है. जिसमें Zero यानी शून्य और संस्कृत में रोधा का मतलब होता है रुकावट. जीरोधा का मतलब है कोई रुकावट नहीं. यानी कंपनी चैलेंज फ्री ऑनलाइन स्टॉक ब्रोकिंग प्लेटफॉर्म होने का दावा करती है. तभी जीरोधा का टैगलाइन है 'दी फ्री ट्रेड जोन'.