भारत के सुदूर गांव से लेकर मुंबई जैसे शहरों के बच्चों तक हर साल लाखों बच्चे दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए अप्लाई करते हैं. जिसमें से कुल 70,000 बच्चे ही इसमें सीट पा पाते हैं. लेकिन ऐसा क्या है जो डीयू - जो भारत की 40 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में से एक है- को पूरे भारत के छात्रों के लिए इतना बड़ा आकर्षण बनाता है? क्या ये इसका इतिहास है, या सिलेबस या माहौल? या फिर राजधानी में इसकी प्राइम लोकेशन?
दरअसल, इन सभी कारकों के साथ यहां से मिली आजादी, स्वतंत्र विचार-विमर्श और सौहार्द की भावना इसके आकर्षण का सबसे बड़ा कारण है. यही वजह है कि केवल 70 हजार सीटों के लिए हर साल यहां लाखों छात्र एडमिशन के लिए अप्लाई करते हैं.
1922 से हुआ सफर शुरू
दिल्ली यूनिवर्सिटी, साल 1922 में स्थापित किया गया था. हालांकि, इसका साउथ कैंपस 1973 में ही अस्तित्व में आया था. शुरुआत में डीयू के कुल 3 कॉलेज थे. इन तीन में पहला सेंट स्टीफंस कॉलेज था जो एक मिशनरी पहल के तहत कैम्ब्रिज मिशन टू दिल्ली ने 1881 में स्थापित किया था. दूसरा कॉलेज हिंदू कॉलेज है जो 1899 में स्थापित हुआ था. और फिर रामजस कॉलेज, जिसकी स्थापना 14 मई 1917 को की गई थी.
हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि 1922 में इन तीन कॉलेजों और 750 छात्रों के साथ ही इसकी शुरुआत हुई थी. लेकिन आज इससे जुड़े 90 कॉलेज और 86 विभाग हैं. इतना ही नहीं बल्कि भारत के लाखों छात्र इससे जुड़े हुए हैं. इन सभी के साथ डीयू को 100 साल पूरे हो गए हैं.
1911 में आया था इस यूनिवर्सिटी का विचार
इस यूनिवर्सिटी का विचार साल 1911 में आकार लेना शुरू हुआ था जब भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया था. लेकिन पहला विश्व युद्ध, यूनिवर्सिटी की प्रकृति पर मतभेद और धन की कमी की वजह से ये विचार अगले 10 साल तक केवल एक विचार ही बना रहा. 16 जनवरी, 1922 को ब्रिटिश भारत की राजधानी में इंपीरियल विधान सभा में दिल्ली यूनिवर्सिटी बिल पेश किया गया था. उस समय, दिल्ली में तीन कला महाविद्यालय थे- सेंट स्टीफंस कॉलेज, जिसकी स्थापना 1882 में कैम्ब्रिज मिशन ने की थी, हिंदू कॉलेज, जिसकी स्थापना 1899 में हुई थी, और रामजस कॉलेज जिसकी स्थापना 1917 में हुई थी—और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज. ये तीन कॉलेज डीयू के पहले कॉलेज थे.
22 फरवरी को विधानसभा में हुआ था बिल पारित
इस बिल को 22 फरवरी को विधानसभा में पारित कर और 28 फरवरी को राज्य परिषद में पारित किया गया था. वायसराय ने 6 अप्रैल को इसपर अपनी सहमति दी, और डीयू अधिनियम 1 मई, 1922 को लागू हुआ. इसके सबसे पहले चांसलर वायसराय लॉर्ड रीडिंग बने और हरि सिंह गौर को पहला कुलपति बनाया गया. इनके अलावा, मुहम्मद शफी पहले प्रो-चांसलर, जी. एम. डी. सूफी प्रथम रजिस्ट्रार, एफ.जे. वेस्टर्न प्रथम रेक्टर; और केसी रॉय पहले कोषाध्यक्ष बने. उस समय में डीयू की शुरुआत केवल दो फैकल्टी- आर्ट्स और साइंस और 8 डिपार्टमेंट- अंग्रेजी, इतिहास, अर्थशास्त्र, संस्कृत, अरबी, फारसी, केमिस्ट्री और फिजिक्स के साथ हुई.
कब स्थापित किए गए और कॉलेज?
शुरुआती समय में यूनिवर्सिटी में कई बड़े और नए बदलाव किए गए. जैसे लॉ फैकल्टी की स्थापना 1924 में हुई, दिल्ली कॉलेज- जिसका इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है - को उसी साल एंग्लो-अरबी कॉलेज के रूप में फिर से रेनोवेट किया गया और डीयू (आज का जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज) से एफिलिएट किया गया. आज का श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स - 1926 में शुरू हुआ; और लेडी इरविन कॉलेज का उद्घाटन 1932 में हुआ था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इन कुछ शुरुआती सालों में ये यूनिवर्सिटी किराए की इमारतों के बीच घूमती रही. रिट्ज सिनेमा भवन में, अलीपुर रोड पर कर्जन हाउस में और पुराने सचिवालय भवन के एक हिस्से में. लेकिन आखिरकार साल 1923 में रिज के पास वाइसरीगल लॉज एंड एस्टेट में इसे अपना घर मिल ही गया.
विभाजन के बाद भी बने कई कॉलेज
1942 में सेंट स्टीफंस को आज के नॉर्थ कैंपस में स्थापित किया गया. इसके बाद हिंदू, रामजस और एसआरसीसी को भी वहीं जगह दी गई. लेकिन विभाजन के साथ, शहर की जनसांख्यिकी और चरित्र में बड़े बदलाव आए. पश्चिम पंजाब से विस्थापित छात्रों को सेटल करने की जरूरत महसूस हुई और इसी तरह हंसराज कॉलेज (1948), एसजीटीबी खालसा कॉलेज (1951), देशबंधु कॉलेज (1952), और किरोड़ीमल कॉलेज (1954) जैसे नए कॉलेजों अस्तित्व में आए.
इस दौरान आने वाले कुछ सालों में दूर से आ रहे छात्रों का भी ध्यान रखा गया. उन्हें ही देखते हुए बवाना में अदिति महाविद्यालय, द्वारका में दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज, पीतमपुरा में केशव महाविद्यालय, यमुना विहार में डॉ. भीम राव अम्बेडकर कॉलेज स्थापित किया गया.
डीयू की राजनीति भी है काफी पॉपुलर
100 साल पुराना इतिहास, राजधानी में प्राइम लोकेशन और बेहतरीन माहौल से इतर कई छात्रों को डीयू की राजनीति भी काफी आकर्षित करती है. हालांकि, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) की तरह डीयू कभी भी राजनीतिक रूप से उतना इच्छुक नहीं रहा, लेकिन देश के कई बड़े राजनेता इसी यूनिवर्सिटी ने दिए हैं. 1970 और 1975 के बीच की अवधि में डीयू में कुछ प्रमुख छात्रों और शिक्षकों के आंदोलन देखे गए. 1975 में आपातकाल के दौरान, 300 से अधिक छात्र संघ नेताओं - जिनमें दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष अरुण जेटली भी शामिल थे - उन्होंने जयप्रकाश नारायण के शुरू किए गए सत्ता-विरोधी आंदोलन में भाग लिया था, को जेल भेज दिया गया था. इनके अलावा न जाने कितने राजनेताओं ने यही से शिक्षा पाई और क्रांति करने में बड़ी भूमिका निभाई.