आपने ऐसा कभी सुना होगा कि किसी माता-पिता ने अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवाया हो, लेकिन उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के एक गांव में ऐसा हो रहा है. यहां पर राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय, कपकोट प्राइवेट स्कूलों को मात देकर एक आदर्श विद्यालय के तौर पर अपनी अलग मिसाल पेश कर रहा है. हालत ये है कि एडमिशन के वक्त यहां पर लंबी कतार लग जाती है और एडमिशन फुल हो जाने के कारण अभिभावक नाराज़ होकर लौट जाते हैं. खास बात यह है कि यहां के बच्चे हर परीक्षा में टॉप करते हैं. कई बच्चे तो ऐसे भी हैं, जो हर विषय में शत प्रतिशत अंक प्राप्त कर रहे हैं. सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि खेलकूद, कला और अन्य गतिविधियों में भी कमाल कर रहे हैं.
विद्यालय के प्राचार्य और प्रमुख केडी शर्मा बताते हैं कि विद्यालय की नींव सन 1872 में रखी गई थी, यानी यह विद्यालय अंग्रेजो के ज़माने से चला आ रहा है. लगभग 150 साल बाद आज यह सरकारी विद्यालय प्राइवेट स्कूलों को मात दे रहा है.
एंट्रेंस एग्जाम के जरिए होता है सेलेक्शन
यहां के शिक्षक भी सिर्फ नौकरी करने के लिए नहीं पढ़ाते. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 6 घंटे की ऑफिशियल ड्यूटी के बाद 12-14 घंटे विद्यालय में रहकर बच्चों की एक्स्ट्रा क्लासेस लेते हैं, डाउट्स क्लियर करते हैं, ट्यूशन लेते हैं और दूसरी गतिविधियों में भी बच्चों को शामिल करते हैं. केडी शर्मा बताते हैं कि वैसे तो उत्तराखंड के सभी विद्यालय साल 2016 से लेटेस्ट मॉडल ऑफ एजुकेशन पर ही चल रहे हैं, लेकिन इस स्कूल में पढ़ने और पढ़ाने का तरीका बहुत अलग है. स्कूल के प्रिंसिपल केडी शर्मा बताते हैं कि इस वक्त स्कूल में करीब 300 बच्चे पढ़ रहे हैं. हर साल एडमिशन के लिए हजारों बच्चों के आवेदन पत्र आते हैं. क्योंकि सीट्स कम होने के कारण सभी बच्चों को नहीं लिया जा सकता, इसलिए एंट्रेंस एग्जाम के जरिए बच्चों का सेलेक्शन किया जाता है.
गौरतलब है कि यहां एक दर्जन से अधिक प्राइवेट स्कूल हैं. बावजूद इसके राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय कपकोट में बच्चे के दाखिले के लिए अभिभावक सुबह नौ से शाम पांच बजे तक चटक धूप में लाइन में खड़े रह रहे हैं. उन्हें यह भी मालूम नहीं है कि उनके बच्चे का एडमिशन होगा या नहीं.
प्रतियोगिताओं में बच्चे हो रहे अव्वल
यहां से प्रतिवर्ष लगभग तीन बच्चे सैनिक स्कूल घोड़ाखाल जा रहे हैं. अब तक 15 बच्चों का चयन हुआ है. प्रतिवर्ष जवाहर नवोदय और राजीव नवोदय के लिए आठ से दस बच्चों का चयन हो रहा है. जवाहर नवोदय में 30 और राजीव में 20 बच्चे पढ़ रहे हैं. हिम ज्योति देहरादून के लिए अभी तक 17 बच्चों का चयन हुआ है. जबकि वहां वर्षभर में केवल 23 बच्चे लिए जाते हैं. जिसमें छह या सात बच्चे प्रतिवर्ष इस सरकारी विद्यालय से जा रहे हैं. जिला और राज्य स्तरीय गणित, जनरल नॉलेज जैसी प्रतियोगिताओं में बच्चे अव्वल हो रहे हैं.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि विद्यालय के प्रिंसिपल केडी शर्मा ने बच्चों को ही परिवार माना है. उन्हें इन सभी बच्चों में अपने बच्चे नजर आते हैं इसलिए उन्होंने अपना परिवार नहीं बसाया. वो पूरी सेवा भाव से इन्हीं बच्चों को अपना परिवार मानकर पढ़ाते हैं.
कुमाऊं क्षेत्र में है स्कूल की चर्चा
बच्चों के अभिभावकों का भी यही कहना है कि प्राइवेट स्कूल से बेहतर शिक्षा इस विद्यालय में मिलती है. इस स्कूल की चर्चा बागेश्वर ही नहीं बल्की आसपास के जिलों और यहां तक कि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में है.
यहां से पढ़कर बच्चे नवोदय, आर्मी स्कूल और वनस्थली विद्यापीठ जैसी जगहों पर सेलेक्ट होते हैं. आगे आने वाले समय में विद्यालय के शिक्षकों और प्राचार्य का यही सपना है कि यहां के बच्चे बड़े से बड़ा मुकाम हासिल करें और उनके विद्यालय का नाम रोशन करें.
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