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17th July in History: जब सपनों की उड़ान और खुद को साबित करने के लिए मिले थे पंख, आज का दिन इस मायने में भारतीय महिलाओं के लिए है ऐतिहासिक

76 साल पहले आज के दिन यानी 17 जुलाई 1948 को महिलाओं को सिविल सर्विस परीक्षा में शामिल होने का ऐलान किया गया था. सरकार की इस घोषणा ने महिलाओं को सशक्त बनाने का काम किया. सरकार ने साफ कर दिया था कि संविधान के आर्टिकल 14 और 15 को ध्यान में रखते हुए महिलाएं भी IAS या IPS अधिकारी बनकर देश की सेवा कर सकती हैं. अन्ना राजम मल्होत्रा और किरण बेदी भारत की पहली महिला IAS और IPS अधिकारी बनकर बाकी महिलाओं के लिए मिसाल बनकर उभरी.

Union Public Service Commission Union Public Service Commission

आज के समय में महिलाएं हर वो मुकाम हासिल कर रही हैं जो आजादी के पहले और आजादी के कुछ सालों बाद भी सोच से परे था. इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अपने हक पाने के लिए कई तरह की परेशानियों  का सामना करना पड़ा है और ये जंग अब भी जारी है. अपनी आजादी और हक की लड़ाई लड़ते-लड़ते महिलाएं आज पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर साथ चल रही हैं. आज यानी 17 जुलाई का दिन महिलाओं के हक की जंग के लिहाज से बेहद खास है. 17 जुलाई 1948 को ही महिलाओं को खुद को साबित करने का सुनहरा मौका मिला था. अपनी लगन और मेहनत से कई महिलाएं समाज में उभर कर आई और देश की सेवा और प्रगति में अपना योगदान दिया.

क्यों खास है 17 जुलाई का दिन-
ये सभी जानते हैं कि महिलाओं को उनके हक के लिए कई लड़ाइयां लड़नी पड़ी हैं, चाहे वह सरकार चुनने के लिए हो या अपना भविष्य. लेकिन 17 जुलाई का दिन महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया था. हमारे देश की आजादी के एक साल बाद ठीक आज ही के दिन 17 जुलाई 1948 को महिलाओं के सिविल सर्विस परीक्षा में शामिल होने की आजादी की घोषणा हुई थी और यह स्पष्ट किया गया था की हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 को ध्यान में रखते हुए महिलाएं भी IAS या IPS अधिकारी बनकर देश की सेवा में अपना योगदान दे सकती हैं. सरकार की इस घोषणा ने महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका दिया और उन्हें सशक्त बनाने का काम किया.

संविधान में भले ही बिना भेदभाव के महिलाओं के योगदान का जिक्र किया गया हो लेकिन आजादी के एक साल बाद भी उनके सिविल सेवा परीक्षा में बैठने को लेकर कई सवाल थे. लेकिन 17 जुलाई 1948 में हुए एक सरकारी एलान के बाद यह साफ हो गया कि महिलाओं को सिविल सेवा की परीक्षा में बैठने से रोका नहीं जा सकता है.

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क्या है अनुच्छेद 14 और 15-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 से इस घोषणा को बल मिला. हालांकि अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 इस घोषणा के हिस्सा नहीं थे लेकिन ये दोनों ही अनुच्छेद महिलाओं की सरकारी परीक्षा में भागीदारी की योग्यता की तस्दीक करते हैं. अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत में रहने वाले सभी लोग कानून के सामने समान हैं, चाहे वह महिला हो या पुरुष. कानून और सजा किसी के लिए नहीं बदलेगी तो वहीं अनुच्छेद 15 के अनुसार महिला और पुरुष के बीच किसी भी तरीके के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. आजादी के बाद सिविल सर्विस में महिलाओं की भागीदारी को लेकर  कई सवाल उठने लगे थे लेकिन अनुच्छेद 14 और 15 में समान अधिकार मिलने और लिंग के आधार पर भेदभाव न होने के कारण महिलाओं को उनके सपने पूरे करने की नई राह मिल गई.

महिलाओं पर पाबंदी क्यों?
1947 में आजादी की एक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद भारत के लिए ये अहम फैसले लेने का वक्त था. कई सालों की अंग्रेजों की गुलामी के बाद देश की आजादी भी महिलाओं को अपना हक नहीं दिला पाई थी. आजादी के बाद भी महिलाएं भेदभाव का सामना कर रहीं थी.

ब्रिटिश राज भारत में 1947 तक रहा और इस दौरान महिलाएं सिविल सर्विस जैसे IAS या IPS जैसी परीक्षाएं इसलिए नहीं दे सकती थी क्योंकि अंग्रेज उन्हें इसके योग्य नहीं मानते थे. दूसरा कारण यह भी है कि उस समय समाज इसे पुरुषों का काम समझता था तो महिलाओं के लिए घर के कामों को ही सबसे अच्छा माना जाता था. कोई भी महिलाओं को ज्यादा पढ़ता लिखता नहीं देखना चाहता था और अगर कोई महिला इसके खिलाफ आवाज उठाती थी तो उसकी आवाज दबा दी जाती थी.

संघर्ष-
आजादी के पहले अंग्रेजों ने महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने दिया तो आजादी के बाद समाज ने पाबंदियां लगा दी लेकिन संविधान की मदद और खुद के हौसले से 17 जुलाई 1948 के फैसले के बाद महिलाओं ने समाज की बेड़ियां तोड़कर सिविल परीक्षा में बैठना शुरू कर दिया.

साल 1948 में भारत की सबसे कठिन परीक्षा पास करके चोनिरा बेलियप्पा मुथम्मा 1949 में भारत की पहली IFS अधिकारी बनीं. जिसके बाद अन्ना राजम मल्होत्रा साल 1951 में महाराष्ट्र कैडर की भारत की पहली महिला IAS अधिकारी बनीं तो किरण बेदी साल 1972 में भारत की पहली महिला  IPS अधिकारी बनकर बाकी महिलाओं के लिए मिसाल बन कर उभरी.

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