उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर स्थित मंसूरपुर थाना क्षेत्र के एक स्कूल में बच्चे की पिटाई का वीडियो सामने आने के बाद हड़कंप मचा हुआ है. इसमें एक टीचर बच्चों से एक मुस्लिम बच्चे को थप्पड़ मरवाती नजर आ रही है. टीचर ने आपत्तिजनक टिप्पणी भी की है. इस घटना से लोगों में आक्रोश है. साथ ही सियासी घमासान भी मचा हुआ है. पुलिस ने मामले की जांच के बाद आरोपी टीचर के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है. आइए आज जानते हैं स्कूल में बच्चों को पीटने और दुर्व्यवहार करने पर कानूनी प्रावधान क्या है?
स्कूल परिसर या क्लास में कोई सर या मैडम अगर बच्चों के साथ किसी भी तरह की मारपीट करते हैं, उन्हें दोस्तों के बीच अपमानित या प्रताड़ित करते हैं, शारीरिक दंड देते हैं या फिर उन्हें भद्दे नामों से पुकारते हैं तो यह भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है. बच्चों की पिटाई के मामलों में कमी लाने के लिए केंद्र सरकार ने किशोर न्याय अधिनियम 2015 यानी जुवेनाइल जस्टिस एक्ट लागू किया है. इसके अलावा भी देश में कई कानून और गाइडलाइनंस हैं, जो बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं.
क्या कहता है कानून?
1. संविधान के आर्टिकल 21 के तहत, सभी लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. इसके अलावा राइट टू एजुकेशन एक्ट कहता है कि 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त और अच्छी शिक्षा पाने का अधिकार है. 6 से 14 साल के बच्चे के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था करना सरकार की जिम्मेदारी है.
2. 2009 में आए राइट टू एजुकेशन एक्ट की धारा 17 (1) में लिखा है कि किसी भी बच्चे को 'शारीरिक सजा' और 'मानसिक प्रताड़ना' नहीं दी जा सकती. यदि कोई भी ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
3. इस कानून की धारा 8 और 9 कहती है कि किसी भी बच्चे के साथ उसकी जाति या धर्म देखकर भेदभाव नहीं किया जा सकता और उसे शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता.
4. जुवेनाइल जस्टिस कानून की धारा 23 में लिखा है कि यदि कोई किसी बच्चे या किशोर पर हमला करता है, उसका शोषण करता है, उसकी उपेक्षा करता है, उसे शारीरिक या मानसिक तौर पर प्रताड़ित करता है, तो उसे 6 महीने की कैद या जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है. ये धारा माता-पिता, गार्जियन और टीचर पर भी लागू होती है.
5. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 82 के तहत भी जेल और जुर्माने का प्रावधान है.
6. धारा 82(1) में शारीरिक दंड देने का दोष सिद्ध होने पर शिक्षक पर 10 हजार रुपए जुर्माना और दूसरी बार दोष सिद्ध होने पर तीन माह जेल का प्रावधान है.
7. धारा 82(2) में बच्चे को पनिशमेंट देने पर संबंधित शिक्षक को बर्खास्त करना अनिवार्य है.
8. धारा 82(3) में जांच में सहयोग नहीं करने वाले को तीन माह की सजा और संस्था पर एक लाख का जुर्माना लगाने का प्रावधान है.
9. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 75 में कहा गया है कि बच्चे की देखभाल और उनकी सुरक्षा स्कूल की जिम्मेदारी होगी.
10. बच्चों के साथ गलत व्यवहार करने पर 2012 में एक विधेयक पारित किया गया था, जिसके मुताबिक बच्चों को शारीरिक दंड देने पर शिक्षक को 3 साल की जेल हो सकती है.
मां-बाप थाने में कर सकते हैं शिकायत
बच्चों की पिटाई के मामले में मां-बाप पुलिस में भी शिकायत कर सकते हैं. आईपीसी की धारा 323 (मारपीट), 324 (जख्मी करना), 325 (गंभीर जख्म पहुंचाना) के तहत भी मामला दर्ज हो सकता है. धारा-325 के तहत आरोप सिद्ध होने पर 7 साल तक की जेल का प्रावधान है. यदि बच्चे पर जानलेवा हमला किया गया हो तो फिर धारा-307 लगाया जा सकता है. इसमें अधिकतम 10 साल या फिर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.
NCPCR की क्या है गाइडलाइन
1. नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) की एक गाइडलाइन है. इसके मुताबिक, हर स्कूल में छात्रों को दी जाने वाली सजा की निगरानी करने के लिए कॉर्पोरल पनिशमेंट मॉनिटरिंग सेल (CPMC) का गठन करना जरूरी है.
2. मॉनिटरिंग सेल में दो टीचर, दो पैरेंट्स, एक डॉक्टर, एक वकील, काउंसलर, एक इंडिपेंडेंट चाइल्ड राइट्स एक्विटिविस्ट और उस स्कूल के दो सीनियर छात्र होंगे. इस सेल का काम कॉर्पोरल पनिशमेंट से जुड़ी शिकायतों को देखना होगा.
3. NCPCR की गाइडलाइन के मुताबिक, यदि टीचर की पिटाई से किसी छात्र की मौत हो जाती है या वो आत्महत्या कर ले तो कानूनी कार्रवाई के अलावा टीचर को तुरंत सस्पेंड कर दिया जाएगा. टीचर तब तक सस्पेंड रहेगा जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती है. इतना ही नहीं, ऐसे मामले में SDM को 7 से 10 दिन में प्रारंभिक जांच पूरी करनी होगी.
सीबीएसई की गाइडलाइंस
1. बच्चों की सेफ्टी को लेकर सीबीएसई ने गाइडलाइंस जारी की है और कहा है कि यदि इसका किसी भी तरह से उल्लंघन होता है तो स्कूल की मान्यता भी रद्द हो सकती है.
2. गाइडलाइंस के मुताबिक स्कूल मे काम करने वाले स्टाफ का स्थानीय पुलिस से वेरिफिकेशन होना चाहिए और सेफ्टी ऑडिट कराया जाना चाहिए.
3. नॉन टीचिंग स्टाफ जैसे बस कंडक्टर, ड्राइवर व अन्य सपोर्ट स्टाफ का पूरी सावधानी के साथ वेरिफिकेशन कराया जाए.
4. स्कूल में बाहरी लोगों की एंट्री को मॉनिटर किया जाए. स्टाफ की ट्रेनिंग हो ताकि बच्चों को शोषण से बचाया जा सके.
5. सेक्सुअल हैरसमेंट की शिकायत कमेटी और पोक्सो से संबंधित कमेटी के बारे में जानकारी नोटिस बोर्ड पर लगाई जाए.
6. स्कूलों में बच्चों की सेफ्टी पूरी तरह से स्कूल अथॉरिटी के जिम्मेदारी होगी.
किसी भी तरह की प्रताड़ना कॉर्पोरल पनिशमेंट माना गया है
स्कूल में बच्चों के साथ की जाने वाली किसी भी तरह की प्रताड़ना को कॉर्पोरल पनिशमेंट माना गया है. यदि बच्चों का शारीरिक तौर पर किसी भी तरह से शोषण किया जाता है तो वह कॉर्पोरल पनिशनमेंट है. मिसाल के तौर पर चांटा मारना, कान खींचना इसी के दायरे में आता है.
इसके अलावा यदि उसे किसी खास पोजिशन में खड़ा रखा जाता है, बेंच पर खड़ा किया जाता है, गलत तरीके से उसको पुकारा जाता है या फिर ठेस पहुंचाने वाला कमेंट किया जाता है या कुछ भी ऐसा किया जाता है, जो बच्चे को शारीरिक और मानसिक तौर पर नुकसान पहुंचता है तो वह कॉर्पोरल पनिशनमेंट माना जाएगा. इसके तहत दोषी के खिलाफ सख्त एक्शन का प्रावधान किया गया है. राइट टु एजुकेशन ऐक्ट में भी कॉर्पोरल पनिशमेंट का जिक्र किया गया है. इन नियमों को लागू करना स्कूल की जिम्मेदारी है. इस मामले में दोषी टीचर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के अलावा उसे नौकरी तक से बर्खास्त किया जा सकता है.
हर तीन में से दो बच्चे टीचर की मार का शिकार
भारत में कितने बच्चे कॉर्पोरल पनिशमेंट का शिकार होते हैं, इसका कोई ताजा आंकड़ा नहीं है. लेकिन 2007 में महिला और बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में स्कूलों में पढ़ने वाले 65% छात्र कॉर्पोरल पनिशमेंट का सामना करते हैं. यानी, हर तीन में से दो छात्र इसका शिकार हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, लड़कियों की तुलना में लड़के ज्यादा कॉर्पोरल पनिशमेंट का सामना करते हैं. इसमें सामने आया था 54% लड़के और 46% लड़कियां कॉर्पोरल पनिशमेंट का सामना करती हैं.